एक समय था जब दक्षिण भारत के जंगलों में खौफ का दूसरा पर्याय रहे वीरप्पन के नाम की तूती बोलती थी.
रिपोर्ट के अनुसार चंदन और हाथी के दांत की तस्करी करने वाले वीरप्पन ने 184 लोगों की हत्या की थी. चौंकाने वाली बात ये कि इनमें 97 लोग तो पुलिस के ही थे.
ऐसे में पुलिस के लिए वीरप्पन कितना बड़ा सिरदर्द बन चुका था इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. पुलिस उसे जल्द से जल्द गिरफ्तार करना चाहती थी लेकिन वह हर बार चकमा देकर निकल जाता था.
कुख्यात वीरप्पन न सिर्फ खूंखार था बल्कि तेज दिमाग का भी था. तीन राज्यों की पुलिस और आर्मी उसको पकड़ने की तलाश 20 साल से ज्यादा तक करती रही. तमिलनाडु सरकार ने इसके लिए करोड़ों रुपए खर्च किए.
महज 17 साल की उम्र से ही हाथियों का शिकार करने वाले वीरप्पन का जन्म 1952 में हुआ.
साल 1987 में पहली बार वीरप्पन का नाम सुर्खियों में आया था. उस समय उसने फॉरेस्ट अफसर को अगवा कर लिया. ठीक इसके बाद उसने पुलिस के एक जत्थे को उड़ा दिया. इस घटना में 22 लोग मारे गए थे.
साल 1993 में एक बार वीरप्पन चारों तरफ से पुलिस से घिर गया. उसे लगा कि उसकी नवजात बेटी के रोने की वजह से वह पकड़ा जा सकता है. ऐसे में उसने अपने बेटी का गला ही घोंट दिया.
2000 तक आते आते वीरप्पन का नाम पूरे भारत में कुख्यात हो चुका था. यही वो साल था जब उसने दक्षिण भारत के सुपरस्टार और पहले महानायक डॉ. राजकुमार को अगवा कर लिया था.
तीन दशक तक वीरप्पन खौफ का पर्याय बना रहा. लेकिन 18 अक्टूबर 2004 को इस खौफ का अंत हो गया. एनकाउंटर में पुलिस ने उसे मार गिराया.
वीरप्पन अपने साथियों के साथ मोतियाबिंद का इलाज कराने जा रहा था. इसी समय पुलिस ने उसे एनकाउंटर में मारा गिराया. बता दें कि वीरप्पन पर अब तक कई किताबें और कई फिल्में बन चुकी है.