जब ज्वालामुखी विस्फोट होता है तो उसके निकटवर्ती क्षेत्रों में हलचल होती है, जिसे भूकंप कहते हैं.
पृथ्वी के सिकुड़ने से इसके चट्टानों में अव्यवस्था उत्पन्न होती है, जिससे कंपन पैदा होता है और भूकंप आता है.
जमीन के नीचे टेक्टोनिक प्लेट के आपस में टकराने से भूकंप आते हैं. जब प्लेटों के खिसकने की दर कम होगी तो भूकंप भी कम आएंगे.
बलन और भ्रंश का संबंध क्रमशः संपीड़न व तनाव से है, जिससे चट्टानों में हलचल होती है और भूकंप आते हैं.
पृथ्वी की ऊपरी परत सियाल निचली परत सीमा पर तैर रही है. ऊपरी परत पर स्थित हल्की चट्टानों ने ऊपर-नीचे होकर संतुलन की व्यवस्था बना ली है. जब कभी संतुलन बिगड़ता है तो भूकंप आ जाता है.
नदियों पर बांध बनाकर बड़े-बड़े जलाशयों का निर्माण किया जाता है. चट्टानों पर जल का दबाव जब बढ़ जाता है तो उनके आकार में परिवर्तन होने लगता है. जब यह परिवर्तन आकस्मिक होता है तो भूकंप आता है.
कृत्रिम भूकंप मनुष्य के क्रियाकलापों के कारण आते हैं. बम विस्फोट, ट्रेन के चलने और कारखानों में भारी मशीनों के चलने से भी पृथ्वी में कंपन होता रहता है.
हिमखंडों या शिलाओं के खिसकने और गुफाओं की छतों के धंसने या खानों की छतों के गिरने से भी भूकंप आते हैं.