कांग्रेस पार्टी ने दिग्गज लीडर संजय निरुपम के खिलाफ पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए कार्रवाई की है. पार्टी ने उनको 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया है.
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अक्सर पार्टियों से नेताओं के निकाले जाने की खबरें आती रहती हैं. ज्यादातर नेताओं को 6 साल के लिए ही पार्टी से निकाला जाता है. इतनी ही अवधि के लिए क्यों निकाला जाता है? चलिए बताते हैं.
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6 साल के लिए ही पार्टी से निकाले जाने का कोई नियम नहीं है. लेकिन इसके पीछे एक सोच काम करती है. इसका मकसद नेताओं को सबक सिखाना होता है.
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पार्टी से नेताओं को निकाले जाने का मकसद उनको सजा देना होता है और पार्टी के महत्व को समझाना होता है. पार्टी में एक अनुशासन रखना होता है.
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भारत में ज्यादातर चुनाव 5 साल बाद होते हैं. ऐसे में लीडर को पार्टी की तरफ से चुनाव नहीं लड़ने देने और पार्टी गतिविधियों से कम से कम एक चुनाव तक बाहर रखने के लिए निष्कासन की कार्रवाई की जाती है.
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कम से कम एक चुनाव तक पार्टी से बाहर रखने के लिए 5 साल से ज्यादा समय तक पार्टी से दूर रखना पड़ता है, इसलिए सजा देने के लिए कम से कम 6 साल के लिए निष्कासन की परंपरा बन गई है.
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किसी भी लीडर को पार्टी से निकालने का मकसद लीडर को नुकसान पहुंचाना नही होता है, बल्कि उसे पार्टी के महत्व और अनुशासन को समझाना होता है.
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पार्टी विरोधी गतिविधियों को लेकर किसी भी लीडर के निष्कासन से कार्यकर्ताओं को भी संदेश जाता है कि पार्टी में रहना है तो अनुशासन में रहना होगा.
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भले ही पार्टी किसी सांसद, विधायक को निष्कासित कर देती है. लेकिन उस जनप्रतिनिधि का महत्व सदन में उतना ही रहता है. उसकी जो सीट तय होती है, वो उसपर तब तक बैठता है, जब तक वो खुद पार्टी ना छोड़ दे.
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