आखिर प्रधानमंत्री लाल किलेसे ही क्यों फहराते हैं तिरंगा
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आजादी के बाद से ही लालकिले पर झंडा फहराने की परंपरा रही है और इसी किले की प्रचीर से प्रधानमंत्री हमेशा से संबोधन देते आए हैं.
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इसकी कोई सटीक वजह या फिर कोई लिखित दस्तावेज नहीं है लेकिन ऐसे कई कारण रहे हैं जिसकी वजह से लालकिले पर तिरंगा फहराने की एक परंपरा बन गई.
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साल 1639 से 1649 के दौरान मुगल बादशाह शाहजहां ने दिल्ली में लाल किले का निर्माण कराया था.
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दिल्ली के युमना किनारे बना ये किला शुरू से ही सत्ता का केंद्र रहा है.
आक्रमणकारियों ने जब-जब दिल्ली पर हमले किए तो उनके निशाने पर मुख्य तौर पर लाल किला ही रहा है.
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साल 1857 में पहले स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र भी एक तरह से लालकिला ही रहा.
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महान क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने साल 1940 में बहादुर शाह जफर की समाधि पर रंगून जाकर श्रद्धांजलि दी और दिल्ली चलो का नारा भी दिया था.
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इस नारे को दिया जाना देश की राजधानी पर जाकर अपनी ताकत दिखाने जैसा था. दिल्ली की सत्ता का केंद्र भी उस वक्त लाल किला ही हुआ करता था.
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आखिर में जब साल 1947 में देश आजाद हुआ तो प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने लाल किले पर तिरंगा फहराया और देश को संबोधित किया.
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इसे एक बार फिर से लाल किले को सत्ता के केंद्र के रूप में स्थापित करने के तौर पर देखा गया और यही परंपरा चलती आ रही है.