सरस्वती नदी को श्राप क्यों मिला था?

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भारत में महाकुंभ का आगाज 13 जनवरी से हो गया है. प्रयागराज में लोग महाकुंभ के दौरान त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाने जाते हैं.

संगम में स्नान करने से आपके कई जन्मों के पाप धुल जाते हैं. गंगा, यमुना और सरस्वती नदी के संगम को त्रिवेणी संगम कहा जाता है.

संगम में गंगा और यमुना के मिलन को सब देखते हैं लेकिन किसी को यहां पर सरस्वती नदी का संगम नहीं दिखता है.  

सरस्वती नदी का उल्लेख प्राचीन शास्त्रों में मिलता है. महाभारत में भी सरस्वती नदी का उल्लेख किया गया है. हालांकि इस नदी को यहां भी लुप्त ही बताया गया है.

हिंदू कथाओं के मुताबिक सरस्वती नदी देवी सरस्वती का ही एक रूप थीं. माता सरस्वती को ज्ञान, संगीत और रचनात्मकता की देवी के रूप में पूजा जाता है, इसी वजह से इस नदी का भी महत्व है.

शास्त्रों के मुताबिक वेदव्यास सरस्वती नदी के तट पर भगवान गणेश को महाभारत की कथा सुना रहे थे. उस समय ऋषि ने नदी को धीरे बहने का अनुरोध किया ताकि वह पाठ पूरा कर सकें.

शक्तिशाली सरस्वती नदी ने उनकी बात नहीं मानी और अपने तेज बहाव में बहती रहीं. 

इस वजह से गुस्सा होकर भगवान गणेश ने सरस्वती नदी को पाताल से होकर बहने का श्राप दे दिया ताकि आगे से उसका धरती बहाव ही ना रहे.

और शायद इसी वजह से सरस्वती नदी का घरती से निशान मिट गया. हालांकि इस नदी का महत्व आज भी है.