वैज्ञानिकों के मुताबिक धरती के वातावरण में स्मॉल पार्टिकल्स (धूल) होते हैं. जिन्हें आप खुली आंखों से देख नहीं सकते हैं.
इन स्मॉल पार्टिकल्स पर जब सूर्य की रोशनी पड़ती है तो यह सात रंगों (वॉयलेट, इंडिगो, ब्लू, ग्रीन, येलो, ऑरेंज और रेड) में बिखर जाते हैं. जिसे विबग्योर कहा जाता है.
जब सूर्य की किरणें टूटती हैं तो उनमें से सबसे कम तरंगदैर्घ्य ब्लू और इंडिगो की होती है, वहीं सबसे अधिक तरंगदैर्घ्य रेड की होती है.
ब्लू और इंडिगो कलर पूरे आकाश में फैल जाते हैं, जिसके कारण आकाश का रंग नीला दिखाई देता है.
सुबह और शाम के समय आकाश का रंग ऑरेंज या लाल हो जाता है.
इसके पीछे का भी साइंस है. जिसके मुताबिक सूर्योदय और सूर्यास्त के वक्त धरती सूरज के करीब होती है.
उस समय सूर्य का ताप धरती पर कम पड़ता है. जिसके कारण नीले और हरे रंग की तुलना में नारंगी रंग अधिक परिवर्तित होता है.
जिसके चलते सुबह और शाम के समय आकाश का रंग लाल या नारंगी दिखाई देता है.
इसकी खोज करने वाले लॉर्ड रेले के नाम पर इसका नाम रेले स्कैटरिंग रखा गया है.