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शरद पूर्णिमा का सनातन धर्म में खास महत्व है. इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के साथ चंद्रमा की भी पूजा की जाती है.
यह त्योहार हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है.
शरद पूर्णिमा की पूजा के बाद खीर को चंद्रमा की रोशनी में रखने की परंपरा है, लेकिन ऐसा क्यों है...
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन भगवान कृष्ण ने गोपियों के संग रास रचाया था इसलिए इसे रास पूर्णिमा भी कहते हैं.
दरअसल, इस दिन चंद्रमा, पृथ्वी के सबसे पास होता है. अंतरिक्ष के सभी ग्रहों से निकलने वाली पॉजिटिव एनर्जी चांद की किरणों के माध्यम से पृथ्वी पर पड़ती हैं.
इस दिन चावल की खीर बनाकर, और जालीदार कपड़े से ढककर चांद की रोशनी में रखा जाता है.
अगली सुबह ब्रह्म मुहूर्त में भगवान विष्णु को इस खीर का भोग लगाकर परिवार में बांटकर खाया जाता है.
ऐसा माना जाता है कि चंद्रमा की किरणों से इस खीर में अमृत जैसे औषधीय गुण आ जाते हैं. जो आपको कई बीमारियों से बचाता है.
अगर विज्ञान के नजरिए से देखें तो, दूध में भरपूर मात्रा में लैक्टिक एसिड होता है और चांद की चमकदार रोशनी दूध में मौजूद बैक्टिरिया को बढ़ाने में मददगार होती है.