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देश में 7 सितंबर से गणेश उत्सव मनाया जाएगा. क्या आप जानते हैं कि भगवान गणेश का सिर कट जाने के बाद उन्हें हाथी का सिर ही क्यों लगाया गया था? चलिए बताते हैं.
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पौराणिक कथा के मुताबिक एक बार माता पार्वती ने अपने शरीर पर लगी हल्दी उतारकर एक बालक का पुतला बनाया और दिव्य शक्तियों से उसमें प्राण डाल दिए. माता पार्वती ने उस बालक का नाम विनायक रखा.
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उसके बाद माता पार्वती जब स्नान के लिए जाने लगीं तो उन्होंने विनायक से कहा कि तुम द्वार पर बैठो और किसी को अंदर मत आने देना. भगवान गणेश ने माता की आज्ञा का पालन करते हुए किसी को अंदर नहीं जाने दिया.
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भगवान शिव को भी गणेश जी ने मां पार्वती के कहने पर बाहर ही रोक दिया. जिससे भगवान शिव क्रोधित हो गए. भोलेनाथ को यह नहीं पता था की गणेश जी कौन हैं और उन्होंने त्रिशूल से उनका सिर काट दिया.
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जब माता पार्वती लौटीं तो यह देखकर वो रोने लगीं. उन्होंने क्रोध में भगवान शिव से गणेश जी को फिर से जीवित करने को कहा.
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भगवान शिव ने अपने गणों से कहा कि उत्तर दिशा में जाओ और सबसे पहले जो दिखे उसका सिर लेकर आओ. गण इंद्र के हाथी ऐरावत का सिर ले आए. इसके बाद भगवान शिव ने पुत्र गणेश जी को हाथी का सिर लगा कर जीवित किया.
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इसको लेकर एक और कथा प्रचलित है. जो गजासुर राक्षस से जुड़ी है. कूर्म पुराण के मुताबिक गजासुर भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था. भगवान शिव उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वरदान मांगने को कहा.
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गजासुर ने भगवान शिव को अपने पेट में निवास करने को कहा. भगवान शिव उसके पेट में समा गए. जब भोलेनाथ को मां पार्वती खोजने लगीं तो वो कहीं नहीं मिले. फिर उन्होने भगवान विष्णु को भगवान शिव को ढूंढने को कहा.
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इसके बाद विष्णु, ब्रह्मा और नंदी गजासुर के महल में नाचने के लिए गए. नंदी का अद्भुत नृत्य देखकर गजासुर प्रसन्न हो गया और नंदी को वरदान मांगने को कहा. नंदी ने अपनी चतुराई से भगवान शिव को मांग लिया.
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गजासुर ने अपना वचन निभाया. इसके बदले में भगवान विष्णु ने उसे वरदान दिया कि समय आने पर उसे ऐसा मान-सम्मान मिलेगा कि लोग उसकी पूजा करेंगे.
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जब भगवान शिव ने गणेश भगवान का सिर काटा था, तब श्रीहरि ने गजासुर का ही शीश काट कर लगाने को दिया और इस तरह से भगवान गणेश के धड़ पर एक हाथी का सिर लग गया.
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