होली के दिन हम एक-दूसरे को रंग -गुलाल लगाकर होली की बधाई देते हैं. लेकिन क्या आपके मन में कभी ये सवाल आया कि होली पर रंग लगाने का प्रचलन आया कहां से? आइए जानते हैं.
होलिका लकड़कियों के ढ़ेर पर प्रहलाद को लेकर बैठ गई. हवा के झोंके से अग्नि से रक्षा करने वाले वस्त्र प्रहलाद पर आ गए और होलिका मर गई. तब से लोग रंग गुलाल के साथ इस उत्सव को मनाते हैं.
जब कामदेव ने शिव जी की तपस्या भंग की थी उसी दौरान शिव जी ने पहली बार मां पार्वती को देखा था. शिव जी के मिलन और कामदेव को पुनः जीवन मिलने की खुशी में देवताओं ने रंगोत्सव मनाया था.
पूतना ने श्री कृष्ण का अपहरण कर लिया था, लेकिन श्री कृष्ण ने उसके प्राण छीन लिए और उसकी मृत्यु हो गई. इसी के बाद रंगोत्सव मनाना शुरू हो गया.
भगवान श्री कृष्ण राधा के गांव बरसाने जाकर गोपियों संग होली खेलते थे. इसी परंपरा के तहत बरसाने और नंद गांव में रंग गुलाल के साथ लट्ठमार होली खेली जाती है.
श्री कृष्ण ने राधा को होली पर तरह-तरह के रंगों से रंगा था. तभी से ब्रजवासियों में रंग खेलने का प्रचलन शुरू हो गया.
ढुंढी राक्षसी ने राजा पृथु के राज में हाहाकार मचा रखा था. लेकिन वो बच्चों के आनंद और शोर से मुक्त नहीं थी इसलिए बच्चों ने लकड़ी जलाकर शोर मचाया और राक्षसी भाग गई.
इसके बाद लोगों ने रंग-गुलाल उड़ाकर इस उत्सव को मनाया.
जीवन में हर रंग की अपनी विशेषता होती है. होली के मौके पर एक-दूसरे को रंग में रंगने का जो मजा है वो किसी और त्योहार में नहीं है. रंगों का हमारी जिंदगी से गहरा नाता है.