हाल के सालों में ईरानी हुकूमत अब तक के सबसे बड़े सरकार विरोधी प्रदर्शनों का सामना कर रही है. 22 साल की महसा अमीनी की मौत 6 सितंबर को हिजाब ठीक से न पहनने के कारण हुई. क्योंकि ईरानी हुकूमत की मॉरल पुलिस ने हिजाब ठीक से न पहनने के जुर्म में महसा को गिरफ्तार कर लिया था. आरोप है कि मॉरल पुलिस ने महसा के साथ मारपीट की थी और उसे इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था. लेकिन तीन दिन बाद उसकी मौत हो गई. कहा जाता है कि इसके बाद पूरे देश में हिंसा भड़क उठी और ईरान सरकार के प्रति वफादार रहने वाले बासिज यानी की (रेड आर्मी) ने ही विरोध प्रदर्शन को कुचलने का जिम्मा उठाया है.
पूरे ईरान में हो रहे विरोध प्रदर्शन
बता दें कि महसा के परिवारवाले पुलिस पर हत्या का आरोप लगा रहे हैं और महसा अमीनी की मौत के बाद से पूरे ईरान में सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का सिलसिला दिनों दिन और तेज होता जा रहा है.
वहीं हिजाब विरोधी प्रदर्शनों को कुचलने के लिए ईरान के सुरक्षाबलों ने सख्त रुख अख्तियार कर लिया है. और इन विरोध प्रदर्शनों में अब तक 200 से ज्यादा प्रदर्शनकारियों की मौत भी हो चुकी है, लेकिन प्रदर्शनकारी किसी भी कीमत पर पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हैं. लेकिन इन प्रदर्शनों के दौरान बंदूक और डंडे लिए वे बाइक सवार भी खूब चर्चा में हैं. जो लगातार महिलाओं की आवाज को दबाने की कोशिश में जुटे हैं. इन्हें ईरान में बासिज यानी रेड आर्मी के नाम से जाना जाता है.
क्या है बासिज?
बता दें बासिज उन लोगों का समूह है, जो ईरान की सरकार के प्रति बफादार हैं और खुद को अर्धसैनिक बलों की तरह पेश करता है. ईरान में बासिज पिछले दो दशकों से सरकार के खिलाफ किसी भी असंतोष को खत्म करने में अहम भूमिका निभाता रहा है. जब पूरे ईरान में महसा अमीनी की मौत को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, तब बासिज ने ही इन प्रदर्शनों को खत्म करने का जिम्मा उठाया है. ये हर शहर में तैनात हैं और प्रदर्शनकारियों पर हमला कर रहे हैं. यही वजह है कि महसा अमीनी की मौत को लेकर विरोध प्रदर्शनों में बासिज के खिलाफ भी जमकर नारेबाजी हो रही है.
वहीं बासिज ने देशभर में अपनी ब्रांच खोल रखी है. यहां तक कि उसका छात्र संगठन, व्यापार संघ और मेडिकल फेकल्टी हैं. हालांकि, अमेरिका ने इसके व्यापार संघ पर प्रतिबंध लगा रखा है. बासिज में आर्म्ड ब्रिगेड, एंटी राइट फोर्स और जासूसों का एक बड़ा नेटवर्क शामिल है. बासिज के ईरान भर में करीब 10 लाख सदस्य हैं. ये लोग बिना वर्दी के सामान्य नागरिकों की तरह रहते हैं. इन्हें सरकार अपना समर्थक मानती है और इनमें से ज्यादातर को सरकार की ओर से सैलरी भी मिलती है.
खामनेई ने की बासिज की स्थापना
1979 की इस्लामी क्रांति के तुरंत बाद अयातुल्लाह खामनेई ने बासिज की स्थापना की थी. इसे खड़ा करने का मुख्य मकसद ईरान में शरिया को लागू करना और देश के भीतर के दुश्मनों से मुकाबला करना था. वहीं 1980 के दशक में ईरान-इराक युद्ध के दौरान बासिज ने सद्दाम हुसैन की सेना के खिलाफ मोर्चा संभाला था. धीरे-धीरे बासिज ईरान की इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड के तहत आ गई. ये सुप्रीम नेता अयातुल्लाह खामेनेई के प्रति वफादार है. वहीं ईरान के सुप्रीम नेता भी इस्लामिक गणराज्य के स्तंभ के रूप में बासिज की तारीफ करते रहे हैं.
जानकारों का कहना है कि बासिज में लोग इसलिए शामिल होते हैं, क्योंकि उन्हें आर्थिक अवसर मिलते हैं. साथ ही यूनिवर्सिटी में एडमिशन और सार्वजनिक क्षेत्र में रोजगार भी आसानी से मिल जाता है.