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UAE की दो साल की मासूम बच्ची में धड़केगा भारत की नन्ही परी का दिल...अपोलो में हुआ सफल ट्रांसप्लांट, 4 महीने से आर्टिफिशियल दिल पर जी रही थी बच्ची

कुछ लोग अपनी जिंदगी खोकर भी अंगदान से ऐसा काम कर जाते हैं जो दूसरों के लिए नजीर बन जाता है। अंगदान का ऐसा ही एक मामला सामने आया है. एक 2 साल की विदेशी बच्ची को एक 5 साल की भारतीय बच्ची का दिल लगाया गया है.

Heart Transplant Heart Transplant

UAE की रहने वाली एक दो साल की बच्ची को नया जीवन दान मिला है. बच्ची का भारत में अर्टिफिशयल हार्ट ट्रांसप्लांट हुआ था और वो बर्लिन हार्ट (आर्टिफिशियल हार्ट) पर चार महीने तक जीवित रहने वाली एकमात्र बच्ची भी बन गई है. कुछ दिनों पहले ही अपोलो अस्पताल में सफल हृदय प्रत्यारोपण कर उसे रियल हार्ट लगाया गया है. बच्ची को एक 5 साल की बच्ची का दिल लगाया गया जिसे डॉक्टरों ने ब्रेन डेड बता दिया था. अपोलो अस्पताल के अनुसार किसी जगह से गिरने के कारण उस बच्ची को गंभीर चोट लग गई थी. मुंबई के वाडिया अस्पताल में उसका इलाज चल रहा था, जहां रविवार को वह ब्रेन डेड हो गई. इसके बाद परिजनों ने अंगदान का फैसला किया.

बच्ची को क्या हुआ था?
बर्लिन हार्ट एक प्रकार का वेंट्रिकुलर असिस्ट डिवाइस (VAD) है. यह हृदय प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा कर रहे रोगियों के लिए एक अस्थायी समाधान है. बच्ची को कार्डियोमायोपैथी (cardiomyopathy) डिटेक्ट हुआ थी. हृदय की मांसपेशियों की यह बीमारी अंग के लिए शरीर के बाकी हिस्सों में ब्लड पंप करना कठिन बना देती है. यह हार्ट फेल्योर का कारण बन सकता है. बच्ची की हालत सुधारने के लिए 29 जुलाई को एक विशेष उपकरण प्रत्यारोपित किया गया था जोकि हार्ट की तरह ही काम करता था. लड़की इससे अच्छा रिकवर भी कर रही थी. इस बीच बच्ची को ब्रेन-डेड बच्ची का दिल मुंबई से मिल गया और सफलतापूर्वक इसका ट्रांसप्लांट किया गया.

अपोलो प्रशासन के अनुसार, इस प्रत्यारोपण की सफलता BJWHC के समय पर अंग पहुंचाने से ही संभव हो सकी. नेशनल ऑर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट संगठन (एनओटीटीओ) ने आवंटन प्रक्रिया के समन्वय और नैतिक और पारदर्शी प्रक्रियाओं को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

बिगड़ रही थी हालत
कार्डियोथोरेसिक और हृदय और फेफड़े के प्रत्यारोपण सर्जरी के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. मुकेश गोयल ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि मरीज को मई में असाध्य कार्डियोजेनिक शॉक और सेप्टीसीमिया के साथ अस्पताल में भर्ती कराया गया था. "हमें उसे वेंटिलेटर पर रखना पड़ा और वासोएक्टिव दवाएं शुरू करनी पड़ीं (रक्तचाप को बनाए रखने के लिए ताकि महत्वपूर्ण कार्यों को बनाए रखा जा सके). हालांकि मरीज की हालत बिगड़ रही थी, उन्होंने उसके जीवन को सुरक्षित रखने और कुछ समय बिताने के लिए आर्टिफिशयल हार्ट ट्रांसप्लांट किया ताकि आर्गन मिलने के लिए कुछ समय मिल सके."

क्यों विदेश के बच्चे का लगाया गया
दिल्ली में मौजूद राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (नोटो) को मुंबई में बी पॉजिटिव ब्लड ग्रुप का डोनर उपलब्ध होने की सूचना मिलने पर उसने देश में हृदय प्रत्यारोपण के लिए अधिकृत सभी अस्पतालों में तुरंत इसकी सूचना दी. ताकि किसी बच्चे को हृदय प्रत्यारोपण किया जा सके. दिल्ली के अपोलो अस्पताल में विदेश का एक बच्चा वेटिंग में था इसलिए ये उसे लगा दिया गया. नोटो द्वारा दिल अपोलो अस्पताल को आवंटित किए जाने के बाद सुबह में इस अस्पताल के डाक्टरों की टीम मुंबई गई. वहां अंगदान की प्रक्रिया पूरी होने के बाद चार्टर्ड विमान से दिल लेकर डाक्टर करीब ढाई बजे एयरपोर्ट पहुंचे. दिल्ली की ट्रैफिक पुलिस ने दिल को जल्दी अस्पताल में पहुंचाने के लिए एयरपोर्ट से अपोलो अस्पताल तक ग्रीन कॉरिडोर बनाया. अपोलो अस्पताल के अनुसार मुंबई में भी वाडिया अस्पताल से दिल को एयरपोर्ट पहुंचाने के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया था.