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Early Warning System for Pandemic: किसी भी तरह की महामारी से निपटने के लिए ब्रिटेन ने ईजाद की तकनीक, जानिए क्या है ये अर्ली वॉर्निंग सिस्टम?

साल 2019 के अंत में आई कोरोना महामारी ने लोगों को संभलने का मौका नहीं दिया. इस महामारी ने पूरी की पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया. लेकिन ब्रिटेन में अब ऐसे तकनीक की खोज की गई है जो भविष्य में होने वाली महामारियों की जानकारी पहले से ही दे देगी. वक्त रहते महामारियों का सामना करने के लिए दवाइयां और वैक्सीन तैयार किए जा सकेंगे. ब्रिटेन में की गई ये खोज महामारियों के खिलाफ गेम चेंजर का काम करेगी. इसकी मदद से महामारी के खतरों को टाला जा सकेगा.

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हाइलाइट्स
  • महामारी से निपटने के लिए ब्रिटेन ने ईजाद की तकनीक

  • अर्ली वार्निंग सिस्टम जेनेटिक है

कोरोना महामारी ने अब तक कई लोगों की जान ली है. कोरोना के शुरुआती दिनों में किसी को भी महामारी से कैसे बचना है इसका अंदाजा नहीं था. जिस कारण देशों की सरकारें भी कई बार सही कदम नहीं उठा सकीं. लेकिन क्या आने वाले वक्त में कोरोना जैसी महामारी का पता लगाया जा सकता है. क्या किसी महामारी को फैलने से पहले ही उसकी रोकथाम की जा सकती है. कोरोना महामारी के बाद ऐसे तमाम सवाल लोगों के जेहन में है. जिस तरह से कोरोना ने जिंदगी का पहिया रोका, अब कोई नहीं चाहता कि दोबारा हालात उस तरह के बनें. अच्छी खबर ये है कि ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उन्होंने महामारी का वार्निंग सिस्टम बना लिया है. 

महामारी से निपटने के लिए ब्रिटेन ने ईजाद की तकनीक
कोरोना जैसी महामारियों से निपटने के लिए ब्रिटेन में ऐसी तकनीक ईजाद की है, जो भविष्य में होने वाली महामारियों की सूचना पहले ही दे देगा. ब्रिटेन के वैज्ञानिकों फ्यूचर पैनडेमिक के लिए अर्ली वॉर्निंग सिस्टम बनाया है. अब ऐसा नहीं होगा कि कोरोना की तरह कोई बीमारी तेजी से फैले और उसे रोकने में दुनिया का हालत खराब हो जाए. चेतावनी मिलने से महामारी के हिसाब से समय रहते वैक्सीन या  दवा बनाई जा सकेगी. 

क्या है ये अर्ली वार्निंग सिस्टम?
ये अर्ली वार्निंग सिस्टम जेनेटिक है. ये सिस्टम सटीकता के साथ बता देगा कि कौन-सा रेस्पिरेटरी वायरस खतरनाक रूप ले सकता है. ये सिस्टम से रेस्पिरेटरी वायरस और माइक्रोबायोम इनिशिएटिव का पता किया जा सकेगा. ताकि ऐसी डीएनए सिक्वेंसिंग टेक्नोलॉजी बनाई जा सके जो वायरल, बैक्टीरियल और फंगल प्रजातियों के फैलने और भविष्य में आने वाली महामारियों का पता कर सके. इसमें इन्फ्लूएंजा वायरस, रेस्पिरेटरी सिनशियल वायरस, कोरोना वायरस और दूसरे पुराने पैथोजन का पता किया जा सकेगा. अभी तक अर्ली वार्निंग सिस्टम की मदद से रेस्पिरेटरी वायरसों के 2000 जीनोम सिक्वेंसिंग की जा चुकी है. मुख्यतौर पर इसके लिए मरीजों के नाक से लिए गए सैंपल ही मुख्य आधार बनेंगे.

इस यूनिवर्सिटी ने बनाई तकनीक
ब्रिटेन के कैंब्रिजशायर के वेलकम सैंगर इंस्टीट्यूट में वैज्ञानिकों की टीम ये अर्ली वॉर्निंग सिस्टम बनाया है. ये सेंटर जेनेटिक रिसर्च और डीएनए सिक्वेंसिंग करने वाली दुनिया की सबसे बेहतरीन जगह है. इंस्टीट्यूट इस कोशिश में लगा है कि अर्ली वॉर्निंग सिस्टम को इतना सस्ता और आसानी से मिलने वाली तकनीक के रूप में डेवलप किया जाए, ताकि दुनिया के हर देश को ये सिस्टम देकर वायरसों पर निगरानी रखी जा सके.