भारत में बहुत से फेमस बाबा हैं, जिनके फॉलोअर्स दुनियाभर में हैं. इन्हीं में से एक हैं 'ओशो'. जिनका आध्यात्मिक साम्राज्य दूसरे देशों में भी फैला हुआ है. ब्रिटेन की प्रेम सरगम नाम की एक महिला ने ओशो आश्रम का सच बताया है. हाल ही में ओशो पर एक डॉक्यूमेंट्री आई है जिसमें एक महिला ने ओशो के आश्रम में कथित तौर पर अपने अनुभव साझा किए हैं, जिसमें उन्होंने अपने साथ हुए यौन शोषण की बात कही है. टाइम्स के साथ एक इंटरव्यू में, 54 वर्षीय महिला ने भारतीय रहस्यवादी भगवान श्री रजनीश के बारे में बात की, जिन्हें आमतौर पर उनके उपनाम 'ओशो' से जाना जाता है.
पुणे लेकर आए माता-पिता
प्रेम सरगम ने बताया कि उनके माता-पिता ओशो के संन्यासी आध्यात्मिक आंदोलन में शामिल हो गए थे. सरगम भारत में पुणे के एक संन्यासी कम्यून में रह रही थीं. उनका परिवार ब्रिटेन के डेवोन से यहां आ गया था. उनके पिता का नौकरी से मोहभंग हो गया था और वे ओशो से जुड़ना चाहते थे.
ओशो मूवमेंट का मानना था कि बच्चे अपने माता-पिता की सेक्सुअल जर्नी में रुकावट बनते हैं. इसलिए सरगम अपने माता-पिता से दूर बच्चों के क्वार्टर में रहती थीं, जहां उन्हें पढ़ने को नहीं मिलता था और वह रसोई में दिन में 12 घंटे काम करती थीं. ओशो के आश्रमों में बच्चों के साथ किस तरह का व्यवहार होता था, इस बारे में अपकमिंग डॉक्यूमेंट्री, Children of the Cult में बताया जा रहा है. यह डॉक्यूमेंट्री फिल्म सरगम सहित तीन ब्रिटिश महिलाओं की कहानी बताएगी, जो इस कल्ट से भागने में कामयाब रहीं.
तीन साल पहले बताई सच्चाई
सरगम ने तीन साल पहले फेसबुक पर अपनी जिंदगी के इस सच के बारे में बताया. उन्होंने अपने साथ गलत करने वाले इंसान को ओपन लेटर लिखा. उन्होंने लिखा कि वह सात साल की थीं और उन्हें समझ आ रहा था कि कुछ अजीब हो रहा है. वह मानसिक और भावनात्मक रूप से बहुत भ्रमित हो रहा था.
द टाइम्स के अनुसार, ओरेगन पंथ में अमेरिकी बाल संरक्षण सेवाओं ने सिर्फ एक बार जांच की. नेटफ्लिक्स ने 2018 में पंथ की ओरेगन शाखा के बारे में एक डॉक्यूमेंट्री, 'वाइल्ड वाइल्ड कंट्री' जारी की, लेकिन इसमें बच्चों के यौन शोषण और उपेक्षा के अनुभवों का कोई उल्लेख नहीं था. ओशो की अपरंपरागत मेडिटेशन तकनीकों ने दुनिया भर से हजारों अनुयायियों को आकर्षित किया, जिनमें मशहूर हस्तियां और अन्य प्रसिद्ध लोग शामिल थे. उन्होंने 1970 में मुंबई (पूर्व में बॉम्बे) के पास पुणे में एक आध्यात्मिक आंदोलन और कम्यून की स्थापना की थी.
अमेरिका के 'रोल्स रॉयस गुरु'
अमेरिका में ओशो को 'रोल्स रॉयस गुरु' कहा जाता था. उनके पास 93 लग्जरी कारें थीं. ओशो के अनुयायी अक्सर उच्च शिक्षित प्रोफेशनल होते थे जो मध्यवर्गीय सोच को अस्वीकार करते थे और पहले भारत में और बाद में अन्य कम्यूनों में ज्ञान लेने के लिए तैयार थे. बहुत सारे अनुयायियों ने अपने जीवनसाथी और बच्चों को छोड़ दिया, जबकि बहुत से लोगों ने पंथ के लिए अपना सब कुछ दान कर दिया.
उनके संन्यासी आध्यात्मिक आंदोलन ने ओरेगन में 100 मिलियन डॉलर शहर बनाने का प्रयास किया. हालांकि, यह यूटोपिक आइडिया अस्सी के दशक में समूह का पतन बन गया.
50,000 निवासियों के लिए एक आत्मनिर्भर 'रजनीश' शहर पर एक निर्माण शुरू किया गया था. बस्तियों में घर, दुकानें, रेस्तरां और यहां तक कि एक हवाई अड्डा भी शामिल था. हालांकि, ओशो को स्थानीय राजनेताओं के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा, जिनका मानना था कि वह एक खतरनाक पंथ का नेतृत्व कर रहे थे. रजनीश पर कथित तौर पर इमिग्रेशन धोखाधड़ी के आरोप लगे थे, जिसे बाद उन्हें भारत वापस भेज दिया गया. 1990 में दिल का दौरा पड़ने से ओशो की मौत हो गई थी.