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Gaza पर इजराइल और यूएन महासचिव में ठनी, क्या United Nations चाहे तो युद्ध को रुकवा सकता है, जानें क्यों विवादों में घिरा रहा यह संगठन

Israel-Hamas War: इजराइल ने संयुक्त राष्ट्र संघ से जो पंगा लिया है, उसका असली मकसद यही है कि संयुक्त राष्ट्र भी हमास और हिजबुल्लाह को आतंकी संगठनों की लिस्ट में शामिल करे. यदि ऐसा हो जाता है तो फिर गुतारेस भी इजराइल के खिलाफ बयान नहीं दे पाएंगे.

यूएन में इजराइल के राजदूत गिलाद एर्दान और एंटोनियो गुटेरेस यूएन में इजराइल के राजदूत गिलाद एर्दान और एंटोनियो गुटेरेस
हाइलाइट्स
  • इजराइल ने की है यूएन महासचिव से इस्तीफे देने की मांग

  • गुतारेस ने कहा था- हमास का हमला अकारण नहीं है

इजराइल और हमास के बीच संघर्ष रुकने की बजाय और तेज होता जा रहा है. इसमें अबतक कई लोगों की जानें जा चुकी हैं. इजराइल गाजा पर जमीनी हमला भी करने के लिए तैयार है. इसी बीच इजराइल और यूएन महासचिव में ठन गई है. आइए आज जानते हैं क्या यूनाइटेड नेशंस चाहे तो इजराइल-हमास युद्ध को रुकवा सकता है? क्यों विवादों में घिरा रहा यह संगठन?

यूएन चीफ ने बमबारी के लिए की इजराइल की आलोचना
इजराइल के गाजा पट्टी में हवाई हमलों से यूएन चीफ ने नाखुशी जताई है. यूएन महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने गाजा में आम लोगों पर बमबारी के लिए इजराइल की आलोचना की है. साथ ही कहा है कि हमास का हमला अकारण नहीं है. इस पर इजराइल ने एंतोनियो गुतारेस पर बरसते हुए कहा है कि वह पद पर रहने के लायक ही नहीं हैं. 

इजराइल की ओर से इस्तीफे की मांग किए जाने के बाद एंटोनियो गुटेरेस ने बुधवार सुबह फिर से ट्वीट करते हुए कहा है कि हमास ने जो किया, उसकी सजा फिलीस्तीन के लोगों को देना जायज नहीं ठहराया जा सकता है. संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने तुरंत संघर्ष विराम की अपील की है. उन्होंने जोर देकर कहा है कि सशस्त्र संघर्ष में कोई भी पक्ष अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून से ऊपर नहीं है.

शांति बनाए रखना है यूएन का मकसद
20वीं सदी के मध्य से लेकर अब तक कई युद्ध हुए. कई अब भी जारी हैं. ये सबकुछ यूएन की आंखों के नीचे हो रहा है. साल 1945 जब ये इंटरनेशनल संगठन बना तो सबसे बड़ा मकसद था शांति बनाए रखना. दुनिया कुछ ही समय के भीतर दो विश्व युद्ध झेल चुकी थी. ऐसे में ताकतवर देशों ने मिलकर तय किया कि एक अंब्रेला बनाया जाए और कई काम किए जाएं. साथ ही उन देशों पर शांति के लिए दबाव बनाया जाए जो लड़ाई का इरादा रखते हों.

इस तरह बना यूनाइटेड 
नेशन्स जून 1945 में सेन फ्रांसिस्को में एक बैठक हुई, जिसमें 50 देशों के लोग शामिल हुए. इनका नेतृत्व ब्रिटेन, अमेरिका, सोवियत संघ और चीन ने किया. भारत भी फाउंडिंग सदस्यों में से था. यहीं पर संयुक्त राष्ट्र चार्टर तैयार हुआ. चार्टर की लाइन थी- वी द पीपल ऑफ द यूनाइटेड नेशन्स यानी हम संयुक्त राष्ट्र के लोग! धीरे-धीरे इस संगठन में 193 देश शामिल हो गए.

दो देशों की लड़ाई में यूएन क्यों बनता है मुखिया
जैसे घर के हेड का काम परिवार को चलाए रखना होता है, वैसा ही जिम्मा यूएन का भी है. यूएन की एक सिक्योरिटी काउंसिल है, जिसमें 15 सदस्य हैं. ये संगठन का सबसे शक्तिशाली हिस्सा माना जाता है, जो किसी देश पर पाबंदियां लगा सकता है या मिलिट्री दखल भी दे सकता है. 

सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी सीटें चीन, फ्रांस, रूसी संघ, ब्रिटेन और अमेरिका की हैं और 10 गैर-स्थायी सीटें हैं जो संयुक्त राष्ट्र के अन्य सदस्य देशों के बीच चुनाव द्वारा घूमती हैं. अक्सर कहा जाता रहा कि सिक्योरिटी काउंसिल बड़े देशों की गलतियों को अनदेखा करती है. मजे की बात ये है कि दुनिया से शांति की अपील करने वाली इस शाखा के परमानेंट सदस्य वो देश हैं, जिन्होंने दूसरे वर्ल्ड वॉर के दौरान तमाम कत्लेआम मचाया.

युद्ध को रोकने के लिए यूएन क्या कर सकता है
संकटों से निपटने के दौरान सुरक्षा परिषद कई कदम उठा सकती है. परिषद किसी विवाद के पक्षकारों से इसे शांतिपूर्ण तरीकों से निपटाने के लिए कह सकती है. यह विवादों को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) में भेजने की सिफारिश भी कर सकती है. कुछ मामलों में सुरक्षा परिषद प्रतिबंध लगाने का सहारा ले सकती है. वहीं अंतिम उपाय के रूप में जब किसी विवाद को निपटाने के शांतिपूर्ण साधन समाप्त हो जाते हैं, तो सदस्य देशों गठबंधनों द्वारा बल के उपयोग को अधिकृत भी कर सकती है. पहली बार परिषद ने 1950 में कोरिया गणराज्य से उत्तर कोरियाई सेना की वापसी सुनिश्चित करने के लिए सैन्य कार्रवाई के तहत बल के उपयोग को मंजूरी दी थी.

जब सुरक्षा परिषद युद्ध रोकने में असमर्थ हो तो क्या विकल्प हैं?
यदि सुरक्षा परिषद स्थायी सदस्यों के बीच समन्वय की कमी के कारण कार्य करने में असमर्थ है, तो जिम्मदारी संयुक्त राष्ट्र महासभा के पास जाती है. महासभा अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखने या बहाल करने के लिए सामूहिक उपायों के लिए व्यापक संयुक्त राष्ट्र सदस्यता के लिए सिफारिशें कर सकती है. 

इसके अलावा, सुरक्षा परिषद के नौ सदस्यों या महासभा के अधिकांश सदस्यों द्वारा अनुरोध किए जाने पर महासभा आपातकालीन विशेष सत्र में बैठक कर सकती है. अभी तक महासभा ने 11 आपातकालीन विशेष सत्र आयोजित किए हैं. हालांकि, सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के उलट महासभा के प्रस्ताव बाध्यकारी नहीं होते हैं, जिसका अर्थ है कि देश उन्हें लागू करने के लिए बाध्य नहीं हैं.

यूएन इन युद्धों को रोकने में रहा नाकामयाब 
इसका जवाब जानने के लिए थोड़ा पीछे चलते हैं ताकि देख सकें कि क्या ये संगठन कभी युद्ध रुकवा सका है. जवाब है- नहीं. पहला मामला इजराइल-फिलिस्तीन का ही लें. साल 1948 में यहूदी देश बनने के बाद से लगातार इजराइल और फिलिस्तान के बीच तनाव रहा. इससे अगले तीन ही सालों के भीतर हजारों नागरिक मारे गए, और फिलिस्तीन के लाखों लोग शरणार्थी बन गए. यूनाइटेड नेशन्स की सिक्योरिटी काउंसिल ने कई बार कोशिश की लेकिन लड़ाई अब भी जारी है. 

रूस और यूक्रेन के बीच भी इसने दखल देने की कोशिश की, लेकिन फायदा नहीं हुआ. इराक और ईरान के बीच करीब 8 सालों तक युद्ध चला, 10 लाख लोग मारे गए. लेकिन यूएन खास कुछ नहीं कर सका. वियतनाम और अमेरिका की जंग को रोकने में ये पूरी तरह से नाकामयाब रहा. कई अफ्रीकी देशों के गृहयुद्ध में भी सिक्योरिटी काउंसिल ने अंदर जाना चाहा, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला, जैसे सोमालिया.

क्या है फेल्योर की वजह
इसका कोई पक्का कारण नहीं, लेकिन एक्सपर्ट मानते हैं कि सारी ताकत दो-चार देशों के पास रह जाना ही असल गड़बड़ी है. वर्तमान में अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस को वीटो पावर मिला हुआ है. ये सभी देश अपनी-अपनी तरह से यूएन को देख रहे हैं. सबके अपने हित भी हैं. जैसे कोई किसी एक देश को सपोर्ट करेगा, तो दूसरा किसी और को. ऐसे में कोई भी बड़ फैसला यूनाइटेड नेशन्स की सिक्योरिटी काउंसिल नहीं ले पाती है.

लड़ाई शुरू होने के बाद यूएन और उसके संगठनों ने क्या कदम उठाए 
7 अक्टूबर 2023 को इजराइल पर हमास के हमले के बाद 8 अक्टूर को न्यूयार्क स्थित मुख्यालय में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपातकालीन बैठक हुई. इस बैठक में संयुक्त राष्ट्र ने गाजा पट्टी के नजदीक स्थित इजराइली शहरों और आबादियों पर किए गए हमलों की कठोर निन्दा की. यूएन के शीर्ष अधिकारियों ने सभी पक्षों से आग्रह किया कि हिंसक टकराव को और भड़कने से रोकना होगा और आम नागरिकों की रक्षा सुनिश्चित की जानी होगी.

प्रभावित क्षेत्रों में में चलाया राहत अभियान 
यूएन और इसकी तमाम एजेंसियों ने जानकारी दी है कि संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में अनेक कर्मचारी अभी भी काम कर रहे हैं. स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े कुछ सहयोगी भी काम में लगे हैं. हमारे कई लोग आश्रय स्थलों में लोगों की मदद कर रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) के सहयोग से, वे उन्हें गद्दे, सोने की जगह, साफ पानी, भोजन आदि मुहैया करवा रहे हैं. 

...तो क्या यूएन का काम राहत बचाव का ही है
यूएएन और इसकी एजेंसियां लगातार संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में मदद पहुंचाने का दावा कर रही हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यूएन की जिम्मेदारी यही है तो शांति की पहल कौन करता है. यूएएन का काम फिलहाल युद्ध से जूझ रहे, या गरीब देशों को खाना-पानी और दवाएं पहुंचाने तक सीमित दिख रहा है. वो पैसों की मदद भी करता है. लेकिन सीधे-सीधे जंग रोकने की ताकत का कोई उदाहरण वो अब तक नहीं दे सका है.

हमास और हिजबुल्लाह को आतंकी संगठन नहीं मानता यूएन
हमास और हिजबुल्लाह दोनों ही संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी संस्था के लिए आतंकवादी संगठन नहीं हैं. दरअसल, इजरायल के लिए तो हमास और हेजबुल्ला दोनों ही आतंकी संगठन रहे ही हैं, लेकिन 8 अक्टूबर, 1997 वो तारीख थी, जब अमेरिका ने भी हमास और हिजबुल्लाह दोनों को ही आतंकी संगठन करार दिया था.

यूरोपियन यूनियन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान और ब्रिटेन भी हमास को आतंकी ही मानते हैं. वहीं, लेबनान वाले हिजबुल्लाह को तो ये देश आतंकी मानते ही मानते हैं. इनके अलावा, अरब लीग, अर्जेंटिना, बहरीन, कोलंबिया, जर्मनी, होंडुरस, मलेशिया, पराग्वे, सउदी अरब और यूएई भी आतंकी ही मानते हैं, लेकिन पूरी दुनिया में शांति स्थापित करने के उद्देश्य से बना संगठन संयुक्त राष्ट्र संघ इन दोनों ही वैश्विक आतंकी संगठनों को आतंकी संगठन मानता ही नहीं है. 

फिलस्तीनियों को मिलने वाला फंड हमास तक कैसे पहुंचता है
इसकी वजह से संयुक्त राष्ट्र संघ के भी पैसे हमास को मिल जाते हैं, जिनसे वो हथियार खरीदकर इजराइल पर हमला कर रहा है. दरअसल, होता ये है कि यूनाइटेड नेशंस की एक संस्था है यूएनआरडब्ल्यूए यानी कि यूनाइटेड नेशंस रिलीफ एंड वर्क्स एजेंसी फॉर पेलेस्टीन रिफ्यूजी इन द नियर ईस्ट. इस संस्था का मकसद फिलस्तीनी शरणार्थियों की मदद करना है.

संस्था को पैसे मिलते हैं यूनाइटेड नेशंस के बजट से और इस पैसे से ही ये एजेंसी फिलस्तीन में शिक्षा, स्वास्थ्य, राहत और तमाम दूसरे कार्यक्रम करती है. अकेले 2021 में ही इस संस्था को यूनाइडेट नेशंस के सदस्य देशों से करीब 15 मिलियन डॉलर की रकम मिली थी. पैसे देने वालों में अमेरिका, जर्मनी, यूरोपियन यूनियन, स्वीडन, जापान, ब्रिटेन, स्विटजरलैंड, नॉर्वे, फ्रांस और कनाडा जैसे देश शामिल हैं और सबसे ज्यादा पैसे तो अमेरिका ही देता है.

हमास को आतंकी संगठन घोषित करने की मांग
ये सभी देश पैसे इसलिए देते हैं ताकि फिलस्तीनी शरणार्थियों की मदद हो सके. हालांकि, ऐसा होता नहीं है. पैसे फिलस्तीन की गाजा पट्टी में पहुंचते हैं आम शरणार्थियों के राहत-बचाव के लिए, लेकिन वहां हमास का कब्जा है, जो इन पैसों को अपने हवाले कर लेता है. ऐसा नहीं है कि ये बात अमेरिका या फिर इजराइल को नहीं पता है. 

उन्हें ये बात बखूबी पता है, तभी तो अमेरिका में राष्ट्रपति पद के चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी की उम्मीदवार और संयुक्त राष्ट्र संघ में अमेरिकी राजदूत रहीं निक्की हेली भी बार बार संयुक्त राष्ट्र संघ से अपील करती रहीं हैं कि हमास को आतंकी संगठन की लिस्ट में शामिल किया जाए. अभी इजराइल ने संयुक्त राष्ट्र संघ से जो पंगा लिया है, उसका असली मकसद यही है कि संयुक्त राष्ट्र भी हमास और हिजबुल्लाह को आतंकी संगठनों की लिस्ट में शामिल करे. यदि ऐसा हो जाता है तो फिर एंटोनियो गुटेरेस भी इस तरह का बयान नहीं दे पाएंगे.