एक ही रात में टूटकर बिखर गया था सोवियत संघ, जानिये इसके पीछे की पूरी कहानी
सोवियत संघ 15 गणतांत्रिक गुटों का समूह था जो एक रात में ही टूटकर बिखर गया था. रूस, जॉर्जिया, यूक्रेन, मालदोवा, बेलारूस, अजरबैजान, कजाकस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, किर्गिजस्तान, तजाकिस्तान, एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया सोवियत संघ का हिस्सा थे. सोवियत संघ कितना बड़ा था इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि धरती का 1/6 हिस्सा सोवियत संघ का था.
रूस और यूक्रेन के बीच जंग छिड़ चुकी है - नई दिल्ली,
- 24 फरवरी 2022,
- (Updated 24 फरवरी 2022, 2:11 PM IST)
रूस(Russia) और यूक्रेन(Ukraine) के बीच जंग शुरू हो गई है. रूस ने गुरुवार सुबह यूक्रेन पर हमला बोल दिया. लंबे समय से दोनों देशों के बीच तनाव चल रहा था और गुरुवार को अचानक रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सैन्य ऑपरेशन शुरू करने का आदेश दे दिया. रूस और यूक्रेन कभी सोवियत संघ(USSR) का हिस्सा थे. सोवियत संघ टूटने के बाद दोनों अलग हो गए.
दरअसल, सोवियत संघ 15 गणतांत्रिक गुटों का समूह था जो एक रात में ही टूटकर बिखर गया था. सबसे पहले ये बताते हैं कि कौन-कौन से देश सोवियत संघ का हिस्सा थे. रूस, जॉर्जिया, यूक्रेन, मालदोवा, बेलारूस, अजरबैजान, कजाकस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, किर्गिजस्तान, तजाकिस्तान, एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया सोवियत संघ का हिस्सा थे. सोवियत संघ कितना बड़ा था इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि धरती का 1/6 हिस्सा सोवियत संघ का था. लेकिन, ऐसा क्या हुआ कि सोवियत संघ रातों रात बिखर गया और सभी देश अलग हो गए. तो आइये इसे विस्तार से समझते हैं.
- 1917 में बोल्शेविक क्रांति के बाद सोवियत संघ का गठन किया गया था. तब व्लादिमीर लेनिन सत्ता में आए और उन्होंने रूस का विस्तार किया. दूसरे राज्यों को रूस में मिलाया. जार निकोलस-2 को हटाकर लेनिन ने सत्ता हासिल की थी. जार की तानाशाही से लोग काफी परेशान थे और इसलिए सोवियत संघ को लोकतंत्र बनाने की कोशिश की गई. लेकिन, ऐसा नहीं हुआ. कुछ वक्त बाद स्टालिन ने सत्ता मिलते ही तानाशाही रवैया अपनाया और आखिरकार तानाशाही की ही स्थापना हो गई.
- सोवियत संघ के विघटन या टूट के लिए तानाशाही रवैया और केंद्रीकृत शासन(centralized governance) बड़ी जिम्मेदार थी. इतिहासकार बताते हैं कि स्टालिन जब सत्ता में थे तब से ही राजनीति, अर्थव्यवस्था और आम लोगों पर पार्टी ने जबरदस्त रूप से नियंत्रण किया. जो स्टालिन के विरोधी थे उन्हें प्रताड़ित किया जाता था और यातनाएं दी जाती थी.
- सोवियत संघ की जनता स्टालिन की तानाशाही से तो परेशान थी ही, इसके साथ ही नौकरशाही की वजह से भी जनता त्रस्त थी. लोगों को हर चीज के लिए कागजी प्रक्रिया, स्टांप और पहचान की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता था जिसकी वजह से लोग काफी परेशान थे.
- सोवियत संघ में अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे खराब होती गई. इसकी वजह से कई संकट पैदा हो गए. अस्सी के दशक में तो सोवियत संघ की जीडीपी अमेरिका से लगभग आधी रह गई. अर्थव्यवस्था चरमराने की वजह से सभी सेक्टर पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा.
- सोवियत संघ के टूटने की वजह में गोर्बाचोफ के आर्थिक सुधारों और लोकतांत्रिक कदम को बड़ा कारण माना जाता है. गोर्बाचोफ ने प्रतिबंधों में काफी ढील दी. जैसे लोगों को अभिव्यक्ति की आजादी दी गई. इसके बाद हुआ ये कि जो लोग वर्षों ने अपनी कसक दबाए बैठे थे, वो खुलकर लिखने लगे. गोर्बाचोफ के बारे में यह कहा जाता है कि उन्होंने खुद ही अपनी कब्र खोद ली थी. गोर्बाचोफ उदारवादी विचारों के थे और उन्होंने तो मजदूरों को हड़ताल करने और हक की लड़ाई लड़ने का अधिकार दे दिया ताकि मजदूरों का जो हक है उन्हें मिल सके.
- गोर्बाचोफ 1985 में कम्यूनिस्ट पार्टी के महासचिव बने थे. उन्होंने सभी चीजों में पारदर्शिता लाने की कोशिश की और कई चीजों को बदलने का काफी प्रयास किया. अखबारों से प्रतिबंध हटाया गया. इसके बाद सरकार की खुलकर आलोचना होने लगी. लेकिन, गोर्बाचोफ के ये सारे कदम उनके ही खिलाफ गए और 25 दिसंबर की रात उन्होंने इस्तीफा दे दिया. साथ ही सोवियत संघ के अलग होने वाले दस्तावेज पर साइन कर दिए. इसके बाद सोवियत संघ में शामिल सभी राष्ट्र अलग हो गए और एक ही रात में USSR बिखर गया.