यूक्रेन और रूस में इन दिनों जंग छिड़ने जैसे हालात पैदा हो रहे हैं. यूक्रेन पर रूस के हमले की आशंकाओं के बीच NATO की सेनाएं भी तैयार हैं. यूक्रेन की सीमा पर रूस की घेराबंदी देखते हुए NATO अपनी सेनाएं तैयार रख रहा है. वहीं पूर्वी यूरोप में जहाज और फाइटर जेट की संख्या में भी इजाफा हो रहा है. हाल ही में आ रही खबरों के बीच आपके मन में भी सवाल उठ रहा होगा कि आखिर ये नाटो है क्या और ये कैसे काम करता है. तो आईए जानते हैं.
NATO क्या है?
NATO का फुल फॉर्म North Atlantic Treaty Organization है. इसका गठन 1949 में अमेरिका कनाडा और कई पश्चिमी देशों ने मिलकर किया था. इस वक्त नाटो में कुल 30 देशों की भागीदारी है.
सोवियत यूनियन के खिलाफ हुआ था नाटो का गठन
सोवियत संघ के खिलाफ मजबूत मोर्चा तैयार करने के लिए अमेरिका, कनाडा, 27 यूरोपीय देश और एक यूरेशियाई देश ने मिलकर NATO का गठन किया था. बोस्निया और हर्ज़ेगोविना, यूरेशियाई देश जॉर्जिया और यूक्रेन जैसे देशों के नाटो का सदस्य बनने की संभावना जताई जा रही है. इसके साथ ही 20 और देश भी NATO के Partnership for Peace में शामिल होने आते हैं. इसका हेडक्वाटर बेल्ज़ियम के ब्रसेल्स शहर में है.
क्यों पड़ी NATO की जरूरत
दूसरे विश्व युद्ध प्रलय के बाद जहां एक तरफ यूरोपीय देश अपनी अर्थव्यवस्था सुधारने में लगे हुए थे, वहीं दूसरे तरफ उनके लिए अपनी सुरक्षा व्यवस्था को भी मजबूत करना जरूरी था. इसके लिए बेहद जरूरी था कि युद्ध से परेशान इन देशों को अच्छी मदद मिल सके. इस सब के बीच उन्हें खुद को सोवियत यूनियन से भी बचाना था. अमेरिका की नजर में सोवियत युनियन को रोकने का केवल एक ही तरीका था, और वो था यूरोपीय देशों का मजबूत होना. ग्रीस और तुर्की में चल रहे सिविल वॉर के दौरान अमेरिका ने दोनों देशों के आर्थिक और सामरिक मदद देने का वादा किया था. इसके अलावा जिस भी यूरोपीय देश को मदद की जरूरत होगी अमेरिका उसकी मदद करने का वादा किया था. इसी बीच सोवियत यूनियन के नेता स्टालिन ने पश्चिमी बर्लिन के सामने दीवार खड़ी कर दी थी. उस वक्त बर्लिन को संकट से निकालने के लिए अमेरिका ने पश्चिमी यूरोप की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया था. नाटो की जरूरत भी इसी आधार पर पड़ी थी.