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दुबई में आज से शुरू हो रही है COP28 समिट, जानिए क्या है यह और इसमें भारत की भूमिका क्यों है महत्वपूर्ण

Cop 28 Dubai Summit 2023: विकासशील देश और ग्रीनहाउस गैसों के टॉप उत्सर्जक के रूप में COP 28 में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण है. जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से ख़त्म करना और नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों के लिए फाइनेंस सिक्योर सुरक्षित करना प्रमुख चिंताएं हैं.

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संयुक्त अरब अमीरात (UAE) संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP 28) की मेजबानी के लिए पूरी तरह तैयार है. यह वार्षिक जलवायु शिखर सम्मेलन 30 नवंबर को शुरू होगा और 12 दिसंबर, 2023 को समाप्त होगा. ऊर्जा परिवर्तन (एनर्जी ट्रांजिशन) को तेज़ करने और उत्सर्जन में कटौती करने के उद्देश्य से 70,000 से अधिक प्रतिनिधियों के COP28 में भाग लेने की उम्मीद है. 

क्या है COP 28
आधिकारिक तौर पर, COP 28 का मतलब जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के पक्षों के सम्मेलन (Confrence of the Parties) की 28वीं बैठक है. यह हर साल होता है, और जलवायु परिवर्तन पर दुनिया का एकमात्र बहुपक्षीय निर्णय लेने वाला मंच है, जिसमें दुनिया के हर देश की लगभग पूर्ण सदस्यता प्राप्त है. 
इज़राइल-हमास युद्ध और यूक्रेन में रूस के चल रहे "विशेष सैन्य अभियान" के बाद सामने आए भू-राजनीतिक जोखिमों के मद्देनजर इस वर्ष की सीओपी महत्वपूर्ण है.

COP 28 में भारत की भूमिका 
एक विकासशील राष्ट्र होने के नाते, इस वर्ष COP28 शिखर सम्मेलन में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण बनी हुई है. भारत ग्रीन हाउस गैसों के शीर्ष उत्सर्जकों में से एक है. यहां दुनिया की सबसे बड़ी आबादी भी रहती है. इसलिए, देश के लिए यह महत्वपूर्ण होगा कि वह महत्वाकांक्षी (दूरदर्शी) रहे, साथ ही न्यायसंगत भी रहे. भारत के लिए, बातचीत देने और लेने के बारे में होगी.

काउंसिल ऑन एनर्जी, इनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) के सीईओ डॉ. अरुणाभा घोष ने इस पर कहा, “जलवायु वार्ताओं को सफल होने और महज चर्चा करने तक सीमित न रहने के लिए जरूरी है कि वे इन तीन उद्देश्यों को पूरा करें: एजेंडा व लक्ष्यों का निर्धारण,  जमीन पर उतारने की प्रक्रिया का निर्धारण, और कार्यान्वयन व प्रगति की निगरानी. वर्ष 2023 ने स्पष्ट रूप से रेखांकित किया है कि क्यों संयुक्त राष्ट्र का जलवायु सम्मेलन अब जलवायु न्याय, जलवायु कार्रवाई और जलवायु वित्त को आगे के लिए नहीं टाल सकता है. यह साल न केवल रिकार्ड स्तर पर सबसे गर्म वर्ष रहा है, बल्कि बाढ़, सूखे और जंगल की आग (दावानल) जैसी जलवायु प्रेरित आपदाओं के साथ-साथ भू-राजनीतिक रूप से भी अशांत रहा है. इस साल कॉप में पूरा हो रहा ग्लोबल स्टॉकटेक हमारी अब तक की सामूहिक प्रतिज्ञाओं के लिए एक रिपोर्ट कार्ड की तरह होगा. 

COP28 में इन प्रमुख विषयों पर ध्यान देना होगा: उत्सर्जन शमन (Emmission Mitigation) लक्ष्य, जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना, विकसित देशों से वित्तपोषण, इंडस्ट्रीसे मिलने वाले समाधानों पर फोकस, कम कार्बन नवाचार, विकसित और विकासशील देशों के बीच मतभेद, पेरिस समझौते के अनुच्छेद को क्रियान्वित करने में प्रगति, अन्य मुद्दों और संबंधों की बहाली के लिए निजी क्षेत्र के निवेश और प्रॉक्सी की सुधार भूमिका.

COP28 में भारत की चुनौतियां
1. भारत कृषि-प्रधान देश है और इस कारण यह हाई मीथेन एमिशन के लिए जिम्मेदार है. इसलिए, भारत के लिए मीथेन उत्सर्जन में कटौती सीओपी 28 सम्मेलन में विवाद का मुद्दा हो सकता है. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) के विशेषज्ञों के अनुसार, कृषि क्षेत्र से होने वाला उत्सर्जन "सर्वाइवल एमिशन" है. इसके अलावा, कृषि से उत्सर्जन में कटौती का मतलब फसल पैटर्न में बदलाव हो सकता है.  इसका भारत की फूड सिक्योरिटी पर भी बड़ा प्रभाव पड़ सकता है. इस मामले पर विशेषज्ञों ने कहा कि भारत को देश में "लक्जरी एमिशन" में कटौती करने की जरूरत है. सिर्फ कृषि ही नहीं, बल्कि तेल और गैस तथा अपशिष्ट/कचरा भी देश में मीथेन उत्सर्जन के लिए समान रूप से जिम्मेदार हैं.

2. इसके अलावा, नए सीएसई-डाउन टू अर्थ आकलन से पता चला है कि भारत ने इस साल के पहले नौ महीनों में लगभग हर दूसरे दिन एक चरम मौसम की घटना देखी. अतः देश को "लॉस और डैमेज फाइनेंस" पर विशेष जोर देने की जरूरत है. सीएसई ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा, "जलवायु परिवर्तन के चल रहे और भविष्य के प्रभावों के कारण आर्थिक, गैर-आर्थिक और पारिस्थितिक नुकसान के अनुमान को हानि और क्षति (एल एंड डी) कहा जाता है."

3. कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों को तत्काल बंद करने की मांग भी है लेकिन भारत इसे स्वीकार नहीं करेगा. इंडिया एक्सप्रेस के मुताबिक, देश इस बात पर जोर दे रहा है कि उसे कम से कम डेढ़ दशक तक बिजली उत्पादन के लिए कोयले पर निर्भर रहना होगा.
यहीं पर भारत जैसे कई विकासशील देशों के लिए जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से ख़त्म करना एक बड़ा काम बन जाता है. हालांकि, भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा की जरूरतों के बारे में कुछ भी कहने में संकोच नहीं कर रहा है. रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में खपत होने वाली लगभग 73 प्रतिशत बिजली कोयले का उपयोग करके उत्पादित की जाती है, भले ही देश ने अपनी गैर-जीवाश्म क्षमता को अपनी कुल स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता का 44 प्रतिशत तक बढ़ा दिया है. 

4. भारत को नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने के लिए धन की जरूरत होगी. समाचार एजेंसी एएनआई ने बताया कि भारत स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों के एक बड़े हिस्से में बदलाव कर रहा है. देश को ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर के विकास के लिए एक बेहतर ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर के सपोर्ट के लिए फाइनेंस की जरूरत है. जी20 नई दिल्ली नेताओं की घोषणा में विकासशील देशों के लिए नेट जीरो लक्ष्य को पूरा करने के लिए 2030 से पहले की अवधि में 5.8-5.9 ट्रिलियन डॉलर की जरूरत को रेखांकित किया गया था.

5. इंडिया एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, स्पष्ट किया गया है कि भारत की जलवायु कार्रवाइयां उत्सर्जन की तीव्रता, या जीडीपी की प्रति इकाई उत्सर्जन के संदर्भ में तय की गई हैं, न कि सीधे उत्सर्जन पर. इसका मतलब है कि जबकि भारत का उत्सर्जन बढ़ता रहेगा, अल्प और मध्यम अवधि में, सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में उत्सर्जन में गिरावट आएगी. परिणामस्वरूप, भारत उत्सर्जन के लिए किसी भी शिखर, या शिखर-वर्ष को परिभाषित करने के किसी भी सुझाव को खारिज कर देता है.

सीओपी 28 शिखर सम्मेलन में, वार्ता दो सप्ताह तक चलने वाली है. दो सप्ताह के शिखर सम्मेलन में "ग्लोबल स्टॉकटेक" शामिल होगा ताकि यह पता लगाया जा सके कि दुनिया ग्लोबल वार्मिंग को 1.5C से नीचे रखने में कितनी दूर है और अंतर को कम करने के लिए और क्या करने की जरूरत है.