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रूस-यूक्रेन युद्ध में डॉल्फिन की एंट्री! अभी ही नहीं बल्कि सदियों से होता आ रहा है युद्ध में इनका इस्तेमाल, जानें कब से हुई थी शुरुआत 

साल 1959 में, अमेरिकी नेवी ने पहली बार डॉल्फिन पर अपनी स्टडी शुरू की. हालांकि, उस वक़्त केवल इस बात की टेस्टिंग की गई कि आखिर डॉल्फिन इतनी हाइड्रोडायनेमिक कैसे होती हैं. इसके बाद साल 1967 आते आते अमेरिकी नौसेना का ये मरीन मैमल प्रोग्राम एक मेजर प्रोजेक्ट में बदल गया.

Dolphins Dolphins
हाइलाइट्स
  • सदियों से युद्ध में ली जा रही है जानवरों की मदद 

  • रूस ने 2016 में खरीदी थीं डॉल्फिन 

रूस (Russia)  और यूक्रेन युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा है. अब इसी कड़ी में रूस ने मिसाइल, आर्मी, गोलियों, बंदूक और तोप के साथ-साथ मैदान में डॉल्फिन को भी उतार दिया है. रूसी सेना ने काला सागर में मौजूद अपने नौसैनिक अड्डों पर डॉल्फिन को तैनात कर दिया है. जी हां, डॉल्फिन! हालांकि, ये पूरी तरह से ट्रेन्ड (Trained) हैं. इसकी जानकारी सैटेलाइट तस्वीरों के जरिए मिली है. यूएस नेवल इंस्टीट्यूट (USNI) ने इन सैटेलाइट तस्वीरों की जांच की है, जिसमें पाया गया कि जब रूस यूक्रेन पर युद्ध करने वाला था उससे पहले ही दो डॉल्फिनों को सैन्य अड्डे पर लगा दिया गया था.

डॉल्फिनों को सैन्य कार्यों के लिए ट्रेन्ड करने का रूस का लंबा इतिहास रहा है. रूस इनका इस्तेमाल समुद्र के नीचे मौजूद चीजों को खोजने और दुश्मनों का पता लगाने के लिए करता है. 

सदियों से युद्ध में ली जा रही है जानवरों की मदद 

हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं है कि किसी युद्ध में जानवरों पशु-पक्षियों को ट्रेन करके इस्तेमाल किया जा रहा है. इतिहास गवाह है कि युद्ध में दुश्मनों से लड़ने के लिए इंसान जानवरों की मदद लेता आया है. सदियों से युद्ध में अलग-अलग पशु-पक्षियों का इस्तेमाल होता आया है. इसमें कबूतर, भालू, हाथी, ऊंट, कुत्ते, घोड़े, डॉल्फिन, सी-लायंस, मधुमक्खियों, मच्छरों आदि का इस्तेमाल होता गया है. 

सबसे पहले कब हुई डॉल्फिन पर स्टडी शुरू?

साल 1959 में, अमेरिकी नेवी ने पहली बार डॉल्फिन पर अपनी स्टडी शुरू की. हालांकि, उस वक़्त केवल इस बात की टेस्टिंग की गई कि आखिर डॉल्फिन इतनी हाइड्रोडायनेमिक कैसे होती हैं. इसके बाद साल 1967 आते आते अमेरिकी नौसेना का ये मरीन मैमल प्रोग्राम एक मेजर प्रोजेक्ट में बदल गया. जिसके बाद से डॉल्फिन को माइंस ढूंढने (Mine hunting) और फाॅर्स-प्रोटेक्शन मिशन के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा. इसमें सी-लायंस को भी जोड़ा गया और ट्रेन किया गया.

किस लिए किया गया डॉल्फिन का इस्तेमाल?
 
माइन हंटिंग के दौरान डॉल्फ़िन को पानी के नीचे की खदानों का पता लगाने और उस जगह वॉर्निंग साइन जैसा लगाने के लिए ट्रेन किया गया, ताकि नेवी द्वारा पता लगाया जा सके कि कहां खतरा है. इसकी मदद से नौसेना को सहूलियत  मिल गई कि वे आसानी से अपने हथियारों को सुरक्षित रूप से साफ कर सके. 

गौरतलब है कि 2003 में इराक युद्ध के दौरान, इस तरह डॉल्फिन उम्म क़सर के बंदरगाह में 100 से अधिक खानों को साफ करने में मदद की थी. 

आपको बता दें, कि डॉल्फिन आसानी से पता लगा लेती हैं कि शिकार कितना बड़ा और कितने पास है. यह 60 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से तैर सकती हैं. इसके अलावा ये 10 से15 मिनट तक पानी के अंदर रह सकती हैं. यही कारण है कि मरीन वॉर में डॉल्फिन का इस्तेमाल किया जाता है. ये इंसानों से ज्यादा तेजी से तैर सकती है. 

रूस ने 2016 में खरीदी 5 डॉल्फिन 

आपको बताते चलें कि युद्ध में या आर्मी में डॉल्फिन का इस्तेमाल करने वाला अमेरिका अकेला नहीं है. रूस भी इन्हीं में से एक है. रूस के पास अपने खुद के मिलिटराइज्ड डॉल्फिन डिवीजन भी हैं. डॉल्फ़िन डिवीजन पहली बार सोवियत यूनियन द्वारा बनाई गई थी. हालांकि, 2016 में मार्च की शुरुआत में, रूस ने जानकारी दी थी कि वह यूनिट के लिए पांच और डॉल्फिन खरीदना चाहता है.