पेरिस में बीते दिन यानी सोमवार से फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF)को लेकर बैठक शुरू की गई, जिसमें यह फैसला लिया जाना है कि पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में रखा जाएगा या नहीं. साथ ही बैठक के दौरान आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला करने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित आतंकी समूहों के नेताओं की जांच और मुकदमा चलाने के पाकिस्तान के प्रयासों का आकलन किया जाएगा.
FATF के कार्यकारी समूह और पूर्ण बैठकें 4 मार्च तक जारी रहेंगी, जिसके बाद बहुपक्षीय वित्तीय निगरानी संस्था यह घोषणा करेगी कि क्या पाकिस्तान को ग्रे सूची में रखा जाना है. दरअसल, पिछले साल अक्टूबर में अपनी बैठक के बाद, एफएटीएफ ने पाकिस्तान से आतंकवादी समूहों के नेताओं और कमांडरों की जांच और मुकदमा चलाने का आग्रह किया था.
क्या है FATF ?
पूरा मामला समझने से पहले यह जानना जरूरी है कि FATF क्या है. FATF यानी फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स, इसका मकसद मनी लॉड्रिंग, आतंकवादी वित्तपोषण जैसे खतरों से निपटना है. इसकी स्थापना वर्ष 1989 में एक अंतर-सरकारी निकाय के रूप में G7 के पहल पर हुई थी. FATF की सिफरिशों को साल 1990 में पहली बार लागू किया था.
FATF द्वारा दो लिस्ट जारी की जाती हैं. इसमें 'ग्रे लिस्ट' और 'ब्लैक लिस्ट' शामिल हैं. यह दोनों ही एक तरह के दंड हैं जो देशों को मनी लॉड्रिंग और आतंकवादी फंडिंग में शामिल होने को लेकर दिया जाता है.
FATF की 'ग्रे' लिस्ट
FATF की 'ग्रे' लिस्ट में शामिल होने वाले देश वह होते हैं, जहां मनी लॉड्रिंग और आतंकवाद सबसे ज्यादा होता है और वह इसमें अंकुश लगाने में भी असफल होते हैं. इसके साथ ही इस लिस्ट में आने वाले देशों को इंटरनेशनल मॉनेटरी बॉडी यानी IMF, ADB, वर्ल्ड बैंक से कर्ज लेने में खासी परेशानी आती है और अगर कर्ज मिल भी जाए तो कड़ी शर्तों से गुजरना पड़ता है. फिलहाल पाकिस्तान के 'ग्रे' लिस्ट में आने को लेकर फैसला लिया जाना है.
FATF की 'ब्लैक' लिस्ट
ब्लैक लिस्ट में उन देशों को डाला जाता है जो यह साबित करने की कोशिश नहीं करते हैं कि उन पर टेरर फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप बेबुनियाद हैं. यह टेरर फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग की गतिविधियों का समर्थन करते हैं. 2019 में FATF ने ईरान और नार्थ कोरिया को ब्लैक लिस्ट किया था. इस लिस्ट में आने वाले देशों को IMF, ADB और वर्ल्ड बैंक कोई मदद नहीं देता है. एक्सपोर्ट-इंपोर्ट पर कई तरह की पाबंदियां होती हैं.
क्या है पूरा मामला ?
दरअसल, पाकिस्तान को 2008 में सबसे पहले ग्रे लिस्ट में शामिल किया गया था. इसके बाद 2009 में देश को इस लिस्ट से निकाल दिया गया. 2012 में फिर से इसे लिस्ट में रखा गया और 2018 में पाक को एक बार फिर लिस्ट में जोड़ा गया. इसका मकसद था पाक में मनी लॉड्रिंग और आतंकवाद को खत्म करना, इसके तहत उसे 27 सूत्रीय कार्य योजना दी गईं थी. इसके बाद जून में FATF ने पाकिस्तान में मनी लॉन्ड्रिंग के मामले को गंभीर होता देख एक बार फिर सात-सूत्रीय कार्य योजना लागू करने के लिए कहा था.
काफी दवाब बनाने के बाद पाकिस्तान ने लश्कर-ए-तैयबा (LET) के संस्थापक हाफिज सईद और उसके कुछ करीबी सहयोगियों को कई आतंकी वित्तपोषण मामलों में गिरफ्तार किया और उन पर मुकदमा चलाया. हालांकि, आतंकी समूहों के कमांडरों को निशाना बनाने के लिए पिछले साल इस्लामाबाद में एफएटीएफ द्वारा बुलाए जाने के कुछ ही हफ्तों बाद, लश्कर के तीन प्रमुख नेताओं - मलिक जफर इकबाल, याह्या मुजाहिद और हाफिज सईद के बहनोई अब्दुल रहमान मक्की के खिलाफ मामला पूरा नहीं हो सका.
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