ऑस्कर अवॉर्ड और नोबेल प्राइज दुनिया के दो सबसे बड़े अवार्ड हैं. जहां ऑस्कर अवॉर्ड सिनेमा के फील्ड में अच्छा काम करने के लिए दिया जाता है तो वहीं नोबेल पुरस्कार शांति, साहित्य, भौतिकी, रसायन, चिकित्सा विज्ञान और अर्थशास्त्र के लिए दिया जाता है. दुनियाभर में केवल दो ही लोगों को ये दोनों अवॉर्ड एक साथ मिले हैं. इनमें से एक हैं लिटरेचर की दुनिया के बादशाह कहे जाने वाले जॉर्ज बर्नार्ड शॉ. हालांकि, बर्नार्ड शॉ के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने पूरे जीवन में कई लोगों को नाराज किया, लेकिन यही लोग उनकी सफलता की सीढ़ियां बनते चले गए. उनकी सफलता का रहस्य बड़ी संख्या में लोगों को नाराज करना कहा जाता है.
बेबाकी से लिखना नहीं छोड़ा
जॉर्ज बर्नार्ड शॉ के कठोर शब्दों से भले ही कई लोग नाराज हुए हों लेकिन उन्होंने बेबाकी से लिखना और जीना नहीं छोड़ा. और उनकी इसी अदा ने दुनिया को उनका मुरीद बना दिया. एक समाजवादी, कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी, नाटककार, एक लेखक और एक आलोचक के रूप में जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने अपनी पहचान बनाई. हालांकि, उन्होंने अपनी कलम नहीं रोकी. उन्होंने पूरी जिंदगी अपनी कलम नहीं रोकी. वे फासीवाद से लेकर नाजीवाद और स्टालिनवाद से संबंधित विचार भी लिखते रहे.
ऑस्कर के साथ मिल चुका है नोबेल पुरस्कार भी
जॉर्ज बर्नार्ड शॉ उन दो लोगों में से एक हैं जिन्होंने लिटरेचर के लिए अकादमी पुरस्कार और नोबेल पुरस्कार दोनों जीते हैं. उन्हें 1925 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. हालांकि, ये नोबेल प्राइज उन्होंने यह कहते हुए स्वीकार करने से इनकार कर दिया था कि "मैं डायनामाइट का आविष्कार करने के लिए नोबेल को माफ कर सकता हूं, लेकिन केवल मानव रूप में एक राक्षस ही नोबेल पुरस्कार का आविष्कार कर सकता था". लेकिन बाद में वह नरम पड़ गए थे और उन्होंने पुरस्कार स्वीकार कर लिया था. पर उन्होंने प्राइज की राशि नहीं ली थी. जॉर्ज ने यह सुझाव दिया था कि इसका उपयोग स्वीडिश नाटककार ऑगस्ट स्ट्रिंडबर्ग के कार्यों के अंग्रेजी में अनुवाद के लिए किया जाए.
जॉर्ज बर्नार्ड का अपना ड्रीम ऑफिस
जॉर्ज बर्नार्ड और उनकी पत्नी चार्लोट 1906 में हर्टफोर्डशायर के अयोट सेंट लॉरेंस गांव में एक घर में चले गए थे, जिसे मूल रूप से 1902 में न्यू रेक्टरी के रूप में बनाया गया था, लेकिन बाद में इसे शॉ कॉर्नर के रूप में जाना जाने लगा. इतना ही नहीं बल्कि शॉ ने शॉ कॉर्नर के बगीचे में एक बहुत ही खास और काफी शानदार 'राइटिंग हट' बनवाया था, जिसका इस्तेमाल वह काम करने के लिए करता था. मूल रूप से ये छोटा सा गार्डन शेड, झोपड़ी को विशेष रूप से घूमने के लिए डिजाइन किया गया था, ताकि शॉ को पूरे दिन सबसे अच्छी रोशनी मिल सके. इसे एक घूमने वाली मशीन पर लगाया गया था, ताकि सुबह वह इसे पूर्व की ओर घुमा सकें, और जैसे-जैसे दिन बढ़ता गया और सूरज निकलता गया.
तीन अलग-अलग स्कूलों में पढ़ाई की
जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने 1865 और 1871 के बीच, तीन अलग-अलग स्कूलों में पढ़ाई की. बचपन से लेकर बड़े होने तक उन्होंने आयरलैंड की राष्ट्रीय गैलरी के कमरों में संग्रह की खोज में घूमते हुए कई घंटे बिताए. जॉर्ज बर्नार्ड के मरणोपरांत रॉयल्टी का एक तिहाई गैलरी को दे दिया था. इन यात्राओं के माध्यम से ही उन्हें कलात्मक शैली और इतिहास की शिक्षा मिली, जिससे जॉर्ज बर्नार्ड को कला समीक्षक के रूप में बाद के काम करने में मदद मिली और कला में भी उनकी रुचि बढ़ती चली गई.
शुरुआत के 5 नॉवेल हुए थे रिजेक्ट
जॉर्ज बर्नार्ड शॉ 1876 में 20 साल की उम्र में अपनी बहन और मां के पास लंदन चले गए, जो 1873 में वहां चली गई थीं. उन्होंने अपने पिता से बहुत कम पैसों पर भरोसा करते हुए एक लेखक बनने की ठानी. जॉर्ज ने 1879 और 1883 के बीच लगातार पांच उपन्यास लिखे, जिनमें से सभी को पब्लिशर्स ने रिजेक्ट कर दिए, हालांकि उनका पांचवां उपन्यास समाजवादी पत्रिका टू-डे में धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुआ था. 1885 में, उन्हें एक आर्ट रिव्यूअर के रूप में लगातार काम मिलना शुरू हुआ और 1895 में वे द सैटरडे रिव्यू के लिए नाटक समीक्षक बन गए. इसके दो साल बाद जॉर्ज बर्नार्ड जब 41 साल के थे, तब उनका पहला सफल नाटक, द डेविल्स चेले, आया, इससे उन्हें 2000 पाउंड की कमाई हुई थी. जॉर्ज बर्नार्ड का मानना था कि अगर आपके रहने की गारंटी है, तो आप खुद को राजा मान सकते हैं.