आपसी तालमेल बढ़ाने और आयत-निर्यात के लिए जल्द ही एक नया जॉइंट इंफ्रास्ट्रक्चर बनाया जा सकता है. अमेरिका, सऊदी अरब, यूएई और भारत मिलकर जल्द ही एक जॉइंट इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित कर सकते, ये खाड़ी और अरब देशों को रेलवे नेटवर्क के जरिए जोड़ेगा. Axios की रिपोर्ट के मुताबिक, ये शिपिंग लेन के जरिए भारत तक भी फैला हुआ होगा. कहा जा रहा है कि इसको लेकर इन देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सऊदी अरब में मिलने वाले हैं. अगर यह बनता है तो आने वाले समय में भारत की इकॉनमी और ट्रेड सेक्टर को इसका काफी फायदा मिलेगा.
सऊदी अरब में होने वाली है बैठक
एक्सियोस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इन देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों (एनएसए) की सऊदी अरब में बैठक हो रही है. जिसमें इस तरह के इन्फ्रास्ट्रक्चर पर चर्चा हो सकती है. रिपोर्ट में कहा गया है, "इसके तहत अरब देशों को लेवंत और खाड़ी में रेलवे के एक नेटवर्क के माध्यम से जोड़ा जाएगा. इतना ही नहीं बल्कि, ये नेटवर्क खाड़ी में बंदरगाहों के माध्यम से भारत से भी जुड़ेगा.” कहा जा रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने कथित तौर पर सऊदी-यूएई-भारत एनएसए की बैठक की योजना बनाई है.
पहले भी हो चुकी है इसके बारे में बात
दरअसल, इसके बारे में पहले भी चर्चा हो चुकी है. इस तरह के एक जॉइंट इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोग्राम के बारे में पहली बार 18 महीने पहले I2U2 नाम के एक अन्य फोरम में बात की गई थी. इस फोरम में भारत, इजरायल, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात शामिल हुए थे. इससे पहले जेक सुलिवन ने वाशिंगटन इंस्टीट्यूट फॉर नियर ईस्ट पॉलिसी में इस सप्ताह के शुरू में अपने भाषण के दौरान इस बात का संकेत दिया था कि ये फोरम वाली चर्चा जहां छोड़ी गई है उसे फिर से शुरू किया जाए.
गोंद बनने के लिए भारत?
वियोन की रिपोर्ट की मानें तो विशेषज्ञों इस पहल को बड़ी सकारात्मकता के साथ देख रहे हैं. उनका मानना है कि भारत इसमें एक ऐसे गोंद की तरह हो सकता है जो इस पूरे ग्रुप को बांध सकता है. जहां तक सऊदी अरब और यूएई का सवाल है, भारत इस क्षेत्र से महत्वपूर्ण ऊर्जा उपभोक्ता है.
उद्योग के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल में भारत के तेल आयात में ओपेक (पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन) की हिस्सेदारी अब तक के सबसे निचले स्तर 46 प्रतिशत पर आ गई, क्योंकि इस दौरान रूस से सस्ता तेल खरीदा जा रहा था. ओपेक एक समय में भारत से आयात किए जाने वाले सभी कच्चे तेल का 90 प्रतिशत तक पूर्ति करता था. लेकिन जब रूस ने कम कीमत पर तेल देना शुरू किया तो ओपेक से आने वाले तेल को भारत ने कम कर दिया.