इंडोनेशिया दक्षिण पूर्व एशिया का पहला देश बन गया है, जहां हाई स्पीड रेलवे लॉन्च हुई है. राष्ट्रपति जोको विडोडो ने 142 किलोमीटर वाले इस रेलवे परियोजना का उद्घाटन किया. इस बुलेट ट्रेन क वूश नाम दिया गया है. इस परियोजना को पूरा करने में 7.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च हुआ है. इस परियोजना को चीन की मदद से पूरा किया गया है. यह इंडोनेशियाई संघ और चीन रेलवे इंटरनेशनल कंपनी लिमिटेड का एक संयुक्त उद्मम है.
3 घंटे का सफर 40 मिनट में-
यह रेल लाइन पश्चिम जावा प्रांत की राजधानी बांडुंग और जकार्ता के बीच बनाई गई है. वूश नाम की ये बुलेट ट्रेन एक बार में 600 मुसाफिरों को लेकर जा सकती है. अभी इतनी दूरी तय करने में 3 घंटे का समय लगता था. लेकिन इस बुलेट ट्रेन से ये सफर सिर्फ 40 मिनट में पूरा हो जाएगा. यह बुलेट ट्रेन बिजली से चलेगी. जिससे कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी. इस ट्रेन की स्पीड 350 किलोमीटर प्रति घंटे है. यह ट्रेन 209 मीटर लंबी है. इसको इस तरह से डिजाइन किया गया है, जो भूकंप, बाढ़ और दूसरे आपातकालीन स्थितियों में खास तरह से रिस्पांस कर सकती है.
इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने इस बुलेट ट्रेन में पूर्वी जकार्ता में हलीम से बांडुंग के पदालारंग स्टेशन तक सफर किया. राष्ट्रपति ये यात्रा 13 सितंबर को की थी. इस दौरान वो 25 मिनट इस ट्रेन में सफर किया.
टिकट की कीमत अभी तय नहीं-
आम मुसाफिरों को इस ट्रेन में कितना किराया देना पड़ेगा? ये अभी तय नहीं हुआ है. लेकिन एक अनुमान के मुताबिक सेकंड क्लास के लिए 16 अमेरिकी डॉलर से लेकर वीआईपी सीटों के लिए 22.60 अमेरिकी डॉलर हो सकती है. दरअसल एक डॉलर की कीमत 15000 इंडोनेशियाई रुपए के बराबर है. इस तरह से बुलेट ट्रेन में सफर के लिए ज्यादा कीमत देनी पड़ सकती है.
7.3 बिलियन डॉलर की लागत-
इंडोनेशिया ने इस परियोजना पर साल 2016 में काम शुरू किया था. इस लाइन पर बुलेट ट्रेन की परिचालन साल 2019 में शुरू होने वाली थी. लेकिन भूमि अधिग्रहण, पर्यावरण संबंधी मुद्दों और कोरोना के चलते इसमें देरी हुई. शुरुआत में इसकी लागत 66.7 ट्रिलियन इंडोनेशियाई रुपए रखी गई थी. लेकिन बाद में इसे बढ़ाकर 113 ट्रिलियन इंडोनेशियाई रुपए कर दी गई. इसका मतलब है कि इस परियोजना की लागत 7.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च है.
इस परियोजना को लेकर अक्टूबर 2015 में रेल सौदे पर सिग्नेचर किए गए थे. उस समय इंडोनेशिया के सामने चीन और जापान का विकल्प था. लेकिन इंडोनेशिया ने चीन के साथ समझौता किया. इसकी लागत का 75 फीसदी चीनी विकास बैंक से कर्ज मिला ता. जबकि 25 फीसदी कंसोर्टियम के अपने फंड से आया.
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