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Interpol क्या है, भारत कब बना था इसका सदस्य, जानें कैसे काम करती है यह एजेंसी और क्या होता है रेड कॉर्नर नोटिस

What is Interpol: इंटरपोल का प्रमुख कार्य विभिन्न देशों के पुलिस बलों के बीच समन्वय स्थापित करना है. यह एक अंतरराष्ट्रीय पुलिस समूह है जो वैश्विक स्तर पर हो रहे संगठित अपराध, साइबर अपराध और आतंकवाद के खिलाफ लड़ने के लिए अपने सदस्य देशों की पुलिस को एक साथ काम करने के लिए सक्षम बनाती है.

Interpol Interpol
हाइलाइट्स
  • 7 सितंबर 1923 को इंटरपोल की हुई थी स्थापना

  • उस समय इसे कहा जाता था इंटरनेशनल क्रिमिनल पुलिस कमीशन 

इंटरपोल एक अंतरराष्ट्रीय आपराधिक पुलिस संगठन है. इसके भारत सहित दुनियाभर में 195 देश सदस्य हैं. इसका मुख्यालय फ्रांस के लियोन में है. इसके अलावा इसके दुनिया भर में सात क्षेत्रीय ब्यूरो भी हैं. यह एक अंतरराष्ट्रीय केंद्रीय ब्यूरो है, जो इसे दुनिया का सबसे बड़ा पुलिस संगठन बनाता है. 

7 सितंबर 1923 को ऑस्ट्रिया के विएना में इसकी स्थापना हुई थी. लेकिन तब इसे अंतरराष्‍ट्रीय आपराधिक आयोग (इंटरनेशनल क्रिमिनल पुलिस कमीशन) कहा जाता था. 1956 से इसे इंटरपोल (इंटरनेशनल क्रिमिनल पुलिस ऑर्गनाइजेशन) कहा जाने लगा. 

क्यों इंटरपोल की जरूरत हुई महसूस
इंटरपोल की जरूरत पहले विश्व युद्ध के बाद महसूस हुई जबकि यूरोप में अपराधी काफी बढ़ गए थे. ये एक देश में मनमानी करते और फिर दूसरे देश में जाकर छिप जाते. ऐसे अपराधियों को पकड़ने के लिए 1923 में आस्ट्रिया की राजधानी वियना में वहां के पुलिस अध्यक्ष जोहान्न स्कोबर ने अपनी सरकार की अनुमति से कई देशों के पुलिस अधिकारियों की मीटिंग बुलाई. फिर 20 देशों ने साथ मिलकर इंटरपोल की स्थापना की. 

इंटरपोल की संरचना
इंटरपोल का जनरल असेंबली शासकीय निकाय है. इसकी बैठक हर वर्ष एक बार होती है. इसके सभी सदस्य देशों को बराबर मत प्राप्त है. जनरल असेंबली में पारित प्रस्तावों को लागू करवाने के लिए एक एग्जीक्यूटिव कमेटी होती है जिसे गवर्निंग बॉडी भी कहा जाता है. इसके 13 सदस्य होते हैं. इसके मुखिया को इंटरपोल का अध्यक्ष कहा जाता है और उसका कार्यकाल 4 साल का होता है. इसके तीन उपाध्यक्ष होते हैं और 9 डेलीगेट होते हैं, जिनका कार्यकाल 3 साल का होता है.

इन सभी की नियुक्ति चुनाव के माध्यम से होती है, जिसमें सभी सदस्य देश मतदान करते हैं. सचिवालय के कार्यों की देखरेख के लिए एक महासचिव की नियुक्ति 5 साल के लिए एग्जीक्यूटिव कमेटी की ओर से की जाती है. महासचिव का कार्य दिन प्रतिदिन की गतिविधियों को देखना और जनरल असेंबली और एग्जीक्यूटिव कमेटी की ओर से पारित किए गए निर्णय को लागू करना होता है. 

इंटरपोल का प्रमुख कार्य
इंटरपोल का प्रमुख कार्य विभिन्न देशों के पुलिस बलों के बीच समन्वय स्थापित करना है. यह एक अंतरराष्ट्रीय पुलिस समूह है जो वैश्विक स्तर पर हो रहे संगठित अपराध, साइबर अपराध और आतंकवाद के खिलाफ लड़ने के लिए अपने सदस्य देशों की पुलिस को एक साथ काम करने के लिए सक्षम बनाती है और अपराध को कम करने के लिए अपने सदस्य देशों को आतंकवाद और साइबर अपराध से लड़ने के लिए  तकनीक मुहैया कराती है. ताकि वैश्विक स्तर पर हो रहे अपराधों पर लगाम लगाई जा सके. 

काफी खुफिया स्तर पर होता है काम 
अपराधी के टॉप स्तर पर बचने की कोशिश का पता चलते ही इंटरपोल सक्रिय हो जाता है. ये तुरंत काम शुरू करता है. इसके तहत सूचनाओं का लेन-देन होता है और रिसर्च होती है कि कोई व्यक्ति या संगठन किस तरह से क्राइम को अंजाम दे रहा है और कैसे उसे खत्म किया जा सकता है. काफी खुफिया स्तर पर काम होता है जिसमें कोड लैंग्वेज का इस्तेमाल होता है. इसमें कलर कोड की भी काफी अहमियत होती है. इसी के तहत चार तरह के नोटिस इंटरपोल जारी करता है, जो इसकी सबसे बड़ी ताकत है.

हम बचपन से सुनते या पढ़ते आ रहें हैं कि इस अमुख आतंकवादी और वैश्विक ड्रग माफिया को रेडकॉर्नर नोटिस जारी किया गया है. यह नोटिस इंटरपोल ही जारी करता है. इसमें रेड नोटिस सबसे महत्वपूर्ण है. यह एक प्रकार का गिरफ्तारी वारंट होता है. लेकिन यह किसी भी देश के द्वारा लागू करना बाध्यकारी नहीं है. उदारहण के लिए जैसे आतंकी दाऊद इब्राहिम के खिलाफ भारत ने रेड नोटिस इश्यू करा रखा है, लेकिन पाकिस्तान उसपर पर कारवाई नहीं कर रहा. 

इंटरपोल के पास अरेस्ट की ताकत नहीं होती. यदि कोई सदस्य देश इस तरह की रिक्वेस्ट करता है तो इंटरपोल उस संदेश को दूसरे देशों को भेजता है. वहां से जो संदेश मिलते हैं, वो उस देश तक पहुंचाए जाते हैं, जिसने रिक्वेस्ट की है. इंटरपोल आमतौर पर टॉप लेवल पर बैठे लोगों के लिए रेड नोटिस निकालता है ताकि अरेस्ट की प्रक्रिया आसान हो सके. भारत में भी सीबीआई ने कुछ ही समय पहले नीरव मोदी, मेहुल चोक्सी और विजय माल्या को आर्थिक घपलों के आरोप में देश लौटाने के लिए इंटरपोल की मदद मांगी थी.

भारत में CBI है नोडल एजेंसी
1949 में भारत इंटरपोल का सदस्य बना था. इंटरपोल में सभी सदस्य देश एक प्लेटफॉर्म के तहत अपने देश में मौजूद बड़े अपराधियों की जानकारी एक-दूसरे के साथ शेयर करते हैं. भारत में सीबीआई ऐसे मामलों में इंटरपोल के संपर्क में रहती है. सीबीआई ही इंटरपोल और अन्य जांच एजेंसियों के बीच नोडल एजेंसी का काम करती है. भारत से जब भी कोई अपराधी विदेश भाग जाता है या उसके विदेश भागने की आशंका होती है तो उसके खिलाफ लुकआउट या रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया जाता है. 

किस तरह के नोटिस जारी करता है इंटरपोल
रेड नोटिस: इसके तहत आरोपी/दोषी को किसी खास देश के अनुरोध पर उस देश से सौंपने की रिक्वेस्ट करना है, जहां वो है. इसके लिए पक्का नेशनल अरेस्ट वारंट चाहिए होता है तभी इंटरपोल ऐसी रिक्वेस्ट कर पाता है. हालांकि, भगोड़े की गिरफ्तारी उस सदस्य राष्ट्र के शासन पर आधारित होती है, जहां वह है.

यलो नोटिस: लापता लोगों का पता लगाने में मदद करने के लिए यलो नोटिस जारी किया जाता है. ये अक्सर नाबालिगों या ऐसे लोगों के लिए जारी होता है जो खुद अपनी पहचान में असमर्थ होते हैं, जैसे मानसिक तौर पर दिव्यांग लोग. मानव तस्करी का रैकेट बड़े स्तर पर काम करता है. तब इंटरपोल इसे पहचानने में काफी काम आता है. इसी तरह से किसी प्राकृतिक आपदा के दौरान काफी लोग लापता हो जाते हैं. तब भी उनका पता लगाने के लिए इंटरपोल मदद करता है.

ब्लू नोटिस: किसी अपराध के संबंध में किसी खास की पहचान, स्थान या गतिविधियों के बारे में अतिरिक्त जानकारी जमा करने के लिए ब्लू नोटिस जारी किया जाता है. हालांकि यह व्यक्ति के प्रत्यर्पण या गिरफ्तारी की गारंटी नहीं देता है.

ऑरेंज नोटिस भी है महत्वपूर्ण:  इसी तरह से ब्लैक, ग्रीन, ऑरेंड और पर्पल नोटिस भी होते हैं. सबके अलग-अलग मकसद हैं. ऑरेंज नोटिस भी काफी महत्वपूर्ण है. इसके तहत इंटरपोल किसी ऐसी घटना के बारे में अलर्ट जारी करता है, जिस दौरान काफी बड़ी साजिश का डर हो. जैसे किसी उत्सव के दौरान बम ब्लास्ट की प्लानिंग या कोई और आतंकी गतिविधि का सुराग मिलना. इंटरपोल की ओर से पहला नोटिस 1947 में एक पुलिसकर्मी की हत्या के केस में रूसी व्यक्ति के खिलाफ जारी किया गया था.