आज से ठीक एक साल पहले इजरायल और हमास (Israel-Hamas War) के बीच एक ऐसी जंग शुरू हुई थी जिसने अभी तक भी रुकने का नाम नहीं लिया है. 7 अक्टूबर 2023 को, गज़ा पट्टी से कुल चार मील दूर एक खेती करने वाले गांव ने बड़ी हिम्मत दिखाई. जहां इजरायल और हमास की लड़ाई में लाखों लोगों की जान गईं, वहां एक गांव ऐसा भी था जहां के लोगों का कोई बाल भी बांका नहीं कर पाया. हालांकि, हमला इस गांव पर भी हुआ, लेकिन इसकी कहानी बर्बादी की नहीं; बल्कि साहस, दृढ़ता और सामुदायिक भावना की है.
सीबीएन की रिपोर्ट के मुताबिक, ऐन हाबेसोर (Ein HaBesor) गांव में न तो किसी की मौत हुई और न ही कोई किडनैपिंग. तेल अवीव यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. यिफ्ताख गेपनर उस सुबह को याद करते हुए कहते हैं, "हमें पहले ही पल से एहसास हो गया था कि कुछ अलग होने वाला है."
सिक्योरिटी चीफ ने उन्हें एक मैसेज भेजा, जिसमें लिखा था, “फेंस की तरफ गेट पर जाओ. वहां से डिफेंड करो. लोग इजरायल पर हमला कर रहे हैं." मैसेज देखते ही ऐन हाबेसोर के लोग तुरंत कार्रवाई में जुट गए.
हमास आतंकवादियों ने उठाया पीले गेट का फायदा
दरअसल, इजरायल के लगभग हर छोटे से छोटे गांव की एंट्री पर एक बड़ा पीला सिक्योरिटी गेट होता है, और ये गेट आमतौर पर लोगों की सुविधा के लिए खुले रहते हैं. हमास आतंकवादियों ने इन गेटों का ही सहारा लिया. यही तरीका था जब वे आसानी से लोगों पर अटैक कर सकते थे.
लेकिन ऐन हाबेसोर में, गार्ड ने तुरंत एक बड़ा निर्णय लिया जिसकी वजह से अनगिनत जानें बचाई गईं. उसने समय रहते गेट बंद कर दिया, जिससे आतंकवादियों को गांव में घुसने से रोका जा सका.
गांववालों के पास नहीं थे हथियार
गांववाले खुद को भारी संख्या में हथियारों से लैस आतंकियों के सामने पाकर बहुत कमजोर महसूस कर रहे थे. हमास आतंकवादी पिकअप ट्रक और मोटरसाइकिलों पर पूरी तरह से हथियारों से लैस होकर आए थे. जबकि गांववालों के पास केवल एक राइफल थी. वह राइफल डॉ. गेपनर के भाई के पास थी.
सामने खड़े थे 30 आतंकवादी
गांववालों के साहस की असली परीक्षा तब हुई जब प्रोफेसर डॉ. यिफ्ताख गेपनर के भाई को कंधे में गोली लगी. चोट लगने के बावजूद, उन्होंने तब तक लड़ाई जारी रखी जब तक स्थिति गंभीर नहीं हो गई. डॉ. गेपनर जानते थे कि उन्हें अपने भाई को अस्पताल तक पहुंचाना होगा. वे अपने भाई को अपनी कार में लादकर पिछले गेट की ओर तेजी से रवाना हुए. लेकिन उनके रास्ते में दो पिकअप और कई मोटरसाइकिलों पर लगभग तीस आतंकवादी उनका इंतजार कर रहे थे.
प्रोफेसर डॉ. यिफ्ताख गेपनर कहते हैं, "हमने देखा कि दो पिकअप और कई मोटरसाइकिलों पर लगभग तीस आतंकवादी सामने हैं, उन्होंने कार पर भारी गोलीबारी शुरू कर दी.” प्रोफेसर के भाई को फिर से गोली लगी, इस बार ये पेट में लगी थी. हालात और भी गंभीर हो गए थे. लेकिन प्रोफेसर गेपनर ने हार नहीं मानी. उन्होंने कार को रिवर्स में तेजी से चलाया और वे बच निकले.
किसी की नहीं हुई मौत
चमत्कारिक रूप से, इस हमले में ऐन हाबेसोर से कोई भी व्यक्ति न तो मारा गया और न ही किडनैप हुआ. तैयारी न होने के बावजूद उन्होंने हिम्मत रखी. जब सिक्योरिटी चीफ ने लोगों को बुलाया, तो सत्तर लोग बिना किसी हिचकिचाहट के आगे बढ़ गए थे. वे सैनिक नहीं थे; वे किसान, शिक्षक और परिवारवाले लोग थे. लेकिन उनके मन में केवल एक बात थी कि उन्हें केवल अपने गांव की रक्षा करनी है.
CBN न्यूज से प्रोफेसर कहते हैं कि 7 अक्टूबर का हमला उन्हें तोड़ने के इरादे से किया गया था, लेकिन इसका उल्टा असर हुआ. इसने एक ऐसा समुदाय बना दिया जो अब पहले से भी ज्यादा मजबूत, एकजुट और दृढ़ है.
ऐन हाबेसोर की कहानी हिम्मत और आशा की कहानी है. यह दिखाती है कि जब सब कुछ खो गया सा लगता है, तब भी इंसानियत जीवित रहती है. गांववाले भले ही गोली-बारूदों से लैस आतंकियों का सामना कर रहे थे, लेकिन उनके पास लड़ाई लड़ने के लिए उनका साहस, घरवालों का प्यार और एक-दूसरे की रक्षा करने का उनका दृढ़ संकल्प था.