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Arab Capital of Israel: इसराइल का वो शहर जहां नहीं बसते इसराइली... क्या है Nazareth में यहूदियों के न होने की कहानी?

Arab Capital of Israel: हिज़्बुल्लाह ने मंगलवार को उत्तरी इसराइल के कई शहरों पर हमले किए. इन शहरों में एक नाम नज़ारेथ का भी है. इस शहर से जुड़ी एक हैरतंगेज़ बात है कि यहां यहूदियों की संख्या न के बराबर है जिसकी वजह से इसे इसराइल की अरब राजधानी भी कहा जाता है.

Nazareth Nazareth

इसराइल और हिज्बुल्लाह (Israel and Hezbollah conflict) के बीच गहमागहमी जारी है. इसराइली हमलों में लेबनान (Lebanon) के 450 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. जबकि 1600 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं. हिज्बुल्लाह के हमलों को बेअसर करने के लिए इसराइल के पास आयरन डोम है. लेकिन एक शहर है जहां लेबनान के लगातार हमले आयरन डोम की सुरक्षा भेदने में कामयाब रहे हैं. इस शहर का नाम है नज़ारेथ. 

खास बात यह है कि आसपास के शहर यहूदी-बाहुल्य होने के बावजूद नज़ारेथ (Nazareth) में यहूदियों की आबादी सिर्फ 0.2 प्रतिशत है. इसराइल के कब्जे में आने के बावजूद नज़ारेथ में रहने वाले 99.8 प्रतिशत लोग फलस्तीनी अरब हैं. इसके पीछे इसराइल के एक कमांडर की कहानी है जो हमें 1948 में ले जाती है.

क्या है नज़ारेथ का इतिहास? 
नज़ारेथ की मौजूदा स्थिति समझने के लिए हमें पहले इसकी तारीख जाननी होगी. नज़ारेथ दरअसल फलस्तीन का एक प्राचीन शहर है. यह शहर धार्मिक रूप से भी अहम है क्योंकि बाइबिल के अनुसार ईसा मसीह यहीं रहा करते थे. 

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ईसा मसीह के 2024 साल बाद नज़ारेथ में यहूदी न के बराबर हैं लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था. चौथी शताब्दी में सिप्रस (Cyprus) के सलामी समुदाय के बिशप अपनी किताब 'पैनेरियन' में लिखते हैं कि उस समय नज़ारेथ में सिर्फ यहूदी आबादी रहा करती थी. छठी शताब्दी में जब स्थानीय ईसाई इस शहर से जुड़ी धार्मिक लोकोक्तियां सुनाने लगे तो मुसाफिरों की इसमें दिलचस्पी बढ़ने लगी. 

इस शहर को ईसाई तीर्थयात्रियों के व्यापार से लाभ हुआ लेकिन सातवीं शताब्दी की शुरुआत में जब फारसियों ने फिलिस्तीन पर आक्रमण किया तो ईसाई विरोधी भावनाओं ने शहर को जकड़ लिया. 

बाइज़ैंटीन साम्राज्य (Byzantine Empire) के ईसाई लेखक यूटीचियस दावा करते हैं कि यहूदी समुदाय के लोगों ने फारसियों के साथ मिलकर ईसाईयों के कत्लेआम में हिस्सा लिया. इसलिए जब बाइज़ैंटीन साम्राज्य के राजा हेराक्लियस ने 629-30 ईसवी में फारसियों को इस शहर से बाहर निकाला तो यहूदियों को भी बाहर निकाल दिया गया. इस तरह नज़ारेथ पूरी तरह एक ईसाई शहर बन गया.

1948 के नकबा में भी नहीं बदली आबादी
सन् 1948 के नकबा (Nakba) में जब इसराइली सेना ने सात लाख से ज्यादा फलस्तीनियों को उनके घर से निकाल दिया था, तब भी नज़ारेथ के हालात नहीं बदले थे. दरअसल जब लिद्दा और रामल्लाह जैसे शहरों से लोगों को निकाल दिया गया तो नज़ारेथ ने इसराइली पैरामिलिट्री के आगे सरेंडर कर दिया.

इसराइल ने नज़ारेथ का जिम्मा कनाडाई मूल के कमांडर बेन डंकेलमैन (Ben Dunkelman) को दिया. डंकेलमैन ने सरेंडर समझौते पर हस्ताक्षार कर दिए. अगले दिन इसराइली सेना के ब्रिगेडियर जनरल चैम लास्कोव ने डंकेलमैन को नज़ारेथ से अरब आबादी को निकालने का आदेश दिया. इसराइली पत्रकार पेरेट्ज़ केड्रोन द्वारा लिखी गई डंकेलमैन की जीवनी बताती है डंकेलमैन ने इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया.
 

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डंकेलमैन से एक दिन बाद उनकी जिम्मेदारियां वापस ले ली गईं लेकिन नज़ारेथ से अरब आबादी को बाहर निकालने की इसराइल की मंशा पूरी नहीं हो सकी. 

अब क्यों मंडराया नज़ारेथ पर खतरा?
इसराइल के साथ नवीनतम गहमागहमी में हिज़बुल्लाह उत्तरी इसराइल के कई शहरों पर मिसाइल हमले कर रहा है. इन हमलों से नज़ारेथ हिल गया है. एनजीओ 'सेंड रिलीफ' (Send Relief) के अनुसार अन्य इसराइली शहरों की तुलना में नज़ारेथ में अंडरग्राउंड शेल्टर कम हैं. जिसकी वजह से स्थानीय लोगों को हवाई हमलों के समय शरण लेने में परेशानी होती है. 

इसी कारण अन्य इसराइली शहरों की तुलना में नज़ारेथ के लोगों की जान को ज्यादा खतरा है. टाइम्स ऑफ इसराइल के अनुसार, उत्तरी इसराइल के कई राज्यों में आज स्कूल बंद कर दिए गए हैं. जबकि कई उड़ानें भी रद्द की गई हैं.