गाज़ा एक कोस्टल स्ट्रिप है जो भूमध्यसागरीय तट के साथ पुराने व्यापारिक और समुद्री मार्गों पर स्थित है. 1917 तक यह क्षेत्र ऑटोमन साम्राज्य के कब्जे में रहा था और पिछली सदी में यह ब्रिटिश से मिस्र और इजरायली सैन्य शासन में चला गया. अब यह एक बाड़ से घिरा क्षेत्र है जिसमें 2 मिलियन से अधिक फिलिस्तीनी रहते हैं.
साल 1948 में जैसे ही फिलिस्तीन में ब्रिटिश कॉलोनियल शासन समाप्त हुआ, यहूदियों और अरबों के बीच हिंसा तेज हो गई और इस कारण मई 1948 में तब नए बने इज़राइल स्टेट और इसके अरब पड़ोसियों के बीच युद्ध शुरू हो गया.
अपने घरों से भागने या निकाले जाने के बाद हजारों फिलिस्तीनियों ने गाजा में शरण ली.
हमलावर मिस्र की सेना ने 25 मील (40 किमी) लंबी एक संकीर्ण तटीय पट्टी पर कब्जा कर लिया था, जो सिनाई से अश्कलोन के ठीक दक्षिण तक जाती थी. शरणार्थियों के आने से गाजा की आबादी तिगुनी होकर लगभग 200,000 हो गई.
1950 और 1960 - मिस्र का सैन्य शासन
मिस्र ने दो दशकों तक गाजा पट्टी को एक सैन्य गवर्नर के अधीन रखा, जिससे फिलिस्तीनियों को मिस्र में काम करने और पढ़ने की अनुमति मिल गई. लेकिन इस दौरान बहुत से फिलिस्तीनी लोगों ने मिलकर हथियार उठा लिए और इस संगठन को "फ़ेदायीन" कहा. इनमें से कई शरणार्थी थे. इन्होंने इज़राइल में हमले किये और बदला लिया.
संयुक्त राष्ट्र ने एक शरणार्थी एजेंसी, UNRWA की स्थापना की, जो आज गाजा में 1.6 मिलियन रजिस्टर्ड फिलिस्तीन शरणार्थियों के साथ-साथ जॉर्डन, लेबनान, सीरिया और वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनियों के लिए काम करती है.
1967 का युद्ध और इज़रायली सेना का कब्ज़ा
1967 के मिडिल-ईस्ट वॉर में इज़राइल ने गाज़ा पट्टी पर कब्ज़ा कर लिया. उस वर्ष इज़रायली जनगणना के अनुसार गाज़ा की जनसंख्या 394,000 थी, जिनमें से कम से कम 60% शरणार्थी थे. मिस्रवासियों के चले जाने के बाद, कई गाज़ा के श्रमिकों ने इज़राइल के अंदर कृषि, निर्माण और सेवा उद्योगों में नौकरियां ले लीं, जहां तक वे उस समय आसानी से पहुंच सकते थे. यहां इज़रायली सैनिक उन जगहों और बस्तियों की रक्षा करने के लिए बने रहे जिन्हें इज़रायल ने अगले कुछ सालों में बनाया. इजरायली सेना की मौजूदगी फ़िलिस्तीनी आक्रोश का कारण बनी.
पहला फ़िलिस्तीनी विद्रोह और हमास का गठन
1967 के युद्ध के बीस साल बाद, 1987 में फ़िलिस्तीनियों ने अपना पहला इंतिफ़ादा या विद्रोह शुरू किया. इसकी शुरुआत दिसंबर 1987 में एक यातायात दुर्घटना के बाद हुई थी जिसमें एक इजरायली ट्रक गाज़ा के जबल्या शरणार्थी शिविर में फिलिस्तीनी श्रमिकों को ले जा रहे एक वाहन से टकरा गया था, जिसमें चार लोग मारे गए थे. इसके बाद पत्थरबाजी, हड़ताल और बंद जैसे मामले सामने आए.
इस गुस्से को भांपते हुए, मिस्र स्थित मुस्लिम ब्रदरहुड ने गाज़ा में एक सशस्त्र फिलिस्तीनी शाखा- हमास बनाई. हमास, इजरायल द्वारा कब्जे वाले फिलिस्तीन में इजरायल के विनाश और इस्लामी शासन की बहाली के लिए समर्पित, यासिर अराफात की धर्मनिरपेक्ष फतह पार्टी का प्रतिद्वंद्वी बन गया. अराफात ने फिलिस्तीन मुक्ति संगठन का नेतृत्व किया था.
1993 में हुआ ओस्लो समझौता
इज़राइल और फिलिस्तीनियों ने 1993 में एक ऐतिहासिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसके परिणामस्वरूप फिलिस्तीनी प्राधिकरण का निर्माण हुआ. अंतरिम समझौते के तहत, फिलिस्तीनियों को पहले गाज़ा और वेस्ट बैंक के जेरिको में सीमित नियंत्रण दिया गया था. उस समय दशकों के निर्वासन के बाद अराफात गाज़ा लौट आए.
ओस्लो प्रक्रिया ने नव निर्मित फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण को कुछ स्वतंत्रता दी, और इसमें परिकल्पना की गई कि पांच वर्षों के बाद राज्य का दर्जा दिया जाएगा. लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ. इज़राइल ने फ़िलिस्तीनियों पर सुरक्षा समझौतों से मुकरने का आरोप लगाया, और फ़िलिस्तीनी इज़रायली बस्तियों के निर्माण को जारी रखने से नाराज़ थे.
हमास और इस्लामिक जिहाद ने शांति प्रक्रिया को पटरी से उतारने की कोशिश के लिए बमबारी की, जिसके कारण इज़राइल को गाज़ा से फिलिस्तीनियों की आवाजाही पर और अधिक प्रतिबंध लगाने पड़े. साल 2000 में, दूसरे फिलिस्तीनी इंतिफादा के फैलने के साथ इजरायल-फिलिस्तीनी संबंध और खराब हो गए. फ़िलिस्तीनियों ने आत्मघाती बम विस्फोटों और गोलीबारी से हमला किया और इज़रायल ने हवाई हमलों, विध्वंस, नो-गो ज़ोन और कर्फ्यू के दौर की शुरुआत की.
गाज़ा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा कभी आर्थिक स्वतंत्रता के लिए विफल फिलिस्तीनी आशाओं का प्रतीक था और फिलिस्तीनियों का बाहरी दुनिया से एकमात्र सीधा संबंध था. जिस पर इज़राइल या मिस्र का नियंत्रण नहीं था. 1998 में इसे खोला गया था. इज़राइल ने इसे सुरक्षा के लिए खतरा माना और संयुक्त राज्य अमेरिका पर 11 सितंबर, 2001 के हमलों के कुछ महीने बाद रडार एंटीना और रनवे को नष्ट कर दिया. एक अन्य नुकसान गाज़ा की फिशिंग इंडस्ट्री को कम करना था, जो हजारों लोगों की आय का स्रोत थी.
गाज़ा से हटी इजरायली सेना
अगस्त 2005 में इज़राइल ने गाज़ा से अपने सभी सैनिकों और निवासियों को हटा लिया. हालांकि, तब तक इज़राइल ने गाज़ा को बाहरी दुनिया से पूरी तरह से अलग कर दिया था. इजरायली बस्तियों को हटाने से गाज़ा के भीतर आवाजाही की ज्यादा स्वतंत्रता हुई और "टनल इकॉनोमी" में तेजी आई क्योंकि सशस्त्र समूहों, तस्करों और उद्यमियों ने तेजी से मिस्र में कई सुरंगें खोद दीं.
2006 में, हमास ने फिलिस्तीनी संसदीय चुनावों में आश्चर्यजनक जीत हासिल की और फिर अराफात के उत्तराधिकारी, राष्ट्रपति महमूद अब्बास के प्रति वफादार बलों को उखाड़ फेंककर गाज़ा पर पूर्ण नियंत्रण हासिल कर लिया. इसके बाद ज्यादातर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने हमास-नियंत्रित क्षेत्रों में फ़िलिस्तीनियों को मदद में कटौती कर दी क्योंकि हमास एक आतंकवादी संगठन है.
इज़राइल ने हजारों फिलिस्तीनी श्रमिकों को देश में प्रवेश करने से रोक दिया, जिससे उनकी आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत बंद हो गया. इज़रायली हवाई हमलों ने गाज़ा के एकमात्र विद्युत ऊर्जा संयंत्र को नष्ट कर दिया, जिससे बड़े पैमाने पर ब्लैकआउट हो गया. सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए, इज़राइल और मिस्र ने भी गाज़ा क्रॉसिंग के माध्यम से लोगों और सामानों की आवाजाही पर कड़े प्रतिबंध लगाए.
लगातार चल रहा है संघर्ष
इजरायल और फिलिस्तीनी आतंकवादी समूहों के बीच संघर्ष, हमले और प्रतिशोध के कारण गाज़ा की अर्थव्यवस्था को बार-बार नुकसान उठाना पड़ा है. 2023 से पहले, सबसे खराब लड़ाई 2014 में हुई थी, जब हमास और अन्य समूहों ने इज़रायल के प्रमुख शहरों पर रॉकेट दागे थे. इज़राइल ने हवाई हमले और तोपखाने बमबारी की जिससे गाज़ा में बस्तियां तबाह हो गईं. इसमें 2,100 से अधिक फ़िलिस्तीनी मारे गए, जिनमें अधिकतर नागरिक थे. इज़रायल ने अपने मृतकों की संख्या 67 सैनिक और छह नागरिक बताई है.
7 अक्टूबर 2023 को, हमास के आतंकियों ने इज़राइल पर अचानक हमला किया, कस्बों में तोड़फोड़ की, सैकड़ों लोगों को मार डाला और दर्जनों बंधकों को वापस गाज़ा ले गए. इसके बाद इजरायल ने हमास को खत्म करने का वादा किया और अब लगातार जंग जारी है.