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Israel Lebanon Tension History: हमास के हमले के बाद इजरायल और लेबनान में क्यों बढ़ गया है तनाव? क्या है इसका इतिहास, Hezbollah की क्या है भूमिका

Israel Hamas War: हमास के हमले और इजरायल के पलटवार के बाद लेबनान बॉर्डर पर भी एक्टिविटी बढ़ गई है. आतंकी संगठन हिजबुल्लाह और इजरायली सेनाएं एक-दूसरे पर गोलीबारी कर रही हैं. फिलिस्तीन और इजरायल के संघर्ष में लेबनान और हिजबुल्लाह की भी अहम भूमिका रही है. चलिए इजरायल और लेबनान के संघर्ष के इतिहास को जानने की कोशिश करते हैं.

इजरायल और लेबनान में तनाव का इतिहास जानिए इजरायल और लेबनान में तनाव का इतिहास जानिए

बीते 7 अक्टूबर को आतंकी संगठन हमास ने इजरायल पर हमला किया था. इसके बाद इजरायल ने हमास के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया. उसके बाद से लगातार इजरायल और हमास के बीच संघर्ष चल रहा है. हमास के हमले में इजरायल के करीब 1400 लोग मारे गए हैं. वहीं इजरायल के हमले में 2800 से ज्यादा फिलिस्तीनियों की मौत हो चुकी है.

इजरायल और हमास के बीच जारी इस हिंसा ने ईरान समर्थित हिजबुल्लाह को फिलिस्तीनी लोगों के साथ एकजुटता दिखाने का मौका दे दिया है. हमास का हमला और इजरायली की जवाबी कार्रवाई ने हिजबुल्लाह के साथ यहूदी मुल्क से संघर्ष को फिर से ताजा कर दिया है, जो साल 2006 के बाद से शिथिल पड़ गया था. दोनों तरफ तनाव बढ़ने लगा है. वैसे दोनों पक्षों के बीच अदावत कोई नई बात नहीं है, बल्कि इसकी एक पुरानी कहानी है. यहां आपको लेबनान और इजरायल के संघर्षपूर्ण इतिहास के बारे में बता रहे हैं. 

1948 के पहले क्या थी स्थिति
लेबनान की राजधानी बेरूत स्थित अमेरिकन यूनिवर्सिटी में इतिहास के लेक्चरर मकरम रबाह ने 'अल जजीरा' से कहा- साल 1948 में इजरायल के देश बनने के पहले लेबनान इस बात पर बहस कर रहा था कि फिलिस्तीन में रहने वाले यहूदियों से उनका संबंध किस तरह का होगा. लेबनान को साल 1943 में आजादी मिली थी. नए राज्य के कुछ राष्ट्रवादियों ने लेबनान में अल्पसंख्यक ईसाई और यहूदियों से साथ गठबंधन बनाने में भरोसा जताया.

रबाह कहते हैं कि लेबनान के संस्थापकों - रियाद अल सोल्ह और बेचारा अल खौरी को लगा कि इजरायल के साथ अच्छे संबंध रखकर अरब देशों के साथ अच्छे रिश्ते नहीं रख सकते.

इजरायल की आजादी और अरब का हमला
14 मई 1948 को इजरायल देश अस्तित्व में आया. ठीक इसके अगले दिन मिस्र, सीरिया, जॉर्डन, इराक और लेबनान ने इजरायल के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया. लेबनान के पास अरब देशों की सबसे छोटी सेना थी. इजरायल ने अरब लड़ाकों को खदेड़ दिया और अस्थाई रूप से दक्षिण लेबनान के एक हिस्से पर कब्जा कर लिया. लेकिन 23 मार्च 1949 को युद्धविराम हुआ तो इजरायली सैनिक वापस लौट गई.

फतह के उदय से फिर बदला समीकरण
साल 1965 में फतह नाम का एक फिलिस्तानी नेशनलिस्ट ग्रुप शक्तिशाली बनकर उभरा और इस इलाके में नए सिरे से झड़प होने लगी. बेरूत स्थित अमेरिकन यूनिवर्सिटी के पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर हिलाल खशान ने अल जजीरा को बताया कि युद्धविराम के बाद से साल 1965 तक लेबनान और इजरायल की सीमा पर शांति रही. लेकिन फतह ग्रुप ने धीरे-धीरे हमले शुरू किए.

लेबनानी आर्मी ने फतह के ऑपरेशन को काउंटर करने की कोशिश की. लेकिन लेबनान की जनता की राय भी बंट गई. देश के ज्यादातर मुस्लिम समुदाय और सेकुलर या वामपंथियों ने फिलिस्तीन के मुद्दे पर सहानुभूति दिखाई. लेकिन लेबनान के नेशनलिस्ट और ईसाई बेस वाली पार्टियां एक ऐसे संघर्ष में फंसना नहीं चाहते थे, जिससे उनका कोई सरोकार ना हो.

साल 1967 में 6 दिन का युद्ध
इजरायल और आसपास के अरब देशों के बीच तनाव बढ़ने लगा था. साल 1967 में एक वक्त ऐसा भी आया, जब इजरायल और अरब देश एक और युद्ध में उतर गए. 5 जून को फिर इजरायल और अरब देशों में युद्ध भड़का. प्रोफेसर खशान का कहना है कि एक हफ्ते के भीतर इजरायल ने अरब देशों को घुटनों पर ला दिया और इसका नतीजा ये हुआ कि फिलिस्तीनियों को जेरूसलम, वेस्ट बैंक और गाजा छोड़ना पड़ा.

6 दिन के इस युद्ध में लेबनान की सैन्य भागादारी मामूली थी. लेकिन इसके नतीजे महत्वपूर्ण थे. हजारों फिलिस्तानी शरणार्थी लेबनान चले गए और लेबनान की यहूदी आबादी के खिलाफ हिंसा भड़काई गई. जिसकी वजह से बहुत लोगों ने पलायन किया.

इसके एक साल के बाद यासिर अराफात ने फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (PLO) को अपने कंट्रोल में ले लिया. पीएलओ फिलिस्तीनी लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाला एक बड़ा संगठन था. प्रोफेसर खशान का कहना है कि अब फिलिस्तीनियों ने पीएलओ के तहत 14 ग्रुपों के साथ मिलकर इजरायल के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया.

लेबनान और पीएलओ के बीच काहिरा समझौता
2 नवंबर 1969 को अराफात की अगुवाई में पीएलओ के प्रतिनिधिमंडल और लेबनानी सेना के जनरल इमाइल बुस्टानी ने काहिरा समझौता किया. इसे समझौते के तहत लेबनान के 16 फिलिस्तीनी शरणार्थी कैंपों को पीएलओ की यूनिट फिलिस्तीन आर्म्ड स्ट्रगल कमांड को सौंप दिया गया. प्रोफेसर रबाह का कहना है कि काहिरा समझौता से पीएलओ को लेबनान से फिलिस्तीन में ऑपरेशन लॉन्च करने की आधिकारिक इजाजत मिल गई.

साल 1970 में फिलिस्तीनी लड़ाकों का जॉर्डन में विद्रोह असफल रहा. इसके बाद सितंबर महीने में जॉर्डन के किंग ने फिलिस्तीनियों को जॉर्डन ने निकाल दिया. इसे ब्लैक सितंबर के नाम से जाना जाता है. इसके बाद पीएलओ ने अपना मुख्यालय जॉर्डन से हटाकर बेरूत में शिफ्ट कर लिया. जबकि सैन्य मुख्यालय दक्षिण लेबनान में ट्रांसफर कर दिया गया. 

लेबनान में इजरायल का ऑपरेशन
साल 1973 में 9 अप्रैल की रात को इजरायली स्पेशल फोर्स लेबनानी समुद्री तटों पर पहुंची और एक ऑपरेशन को अंजाम दिया. ये ऑपरेशन 10 अप्रैल की सुबह तक चलता रहा. इजरायली फोर्स ने 3 पीएलओ नेताओं की हत्या कर दी. ये इजरायल के ऑपरेशन रैथ ऑफ गॉड का हिस्सा था. अरबी में इसे वर्दून नरसंहार के नाम से जाना जाता है.

लेबनान के फिलिस्तीनी लड़ाके लगातार सीमा पार हमले करते रहे. लेकिन मार्च 1978 में इजरायल ने लेबनान पर हमला कर दिया. इसके बाद यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी काउंसिल ने एक प्रस्ताव पास किया और इजरायली सेना को फौरन वापस लौटने को कहा गया. इसके बाद लेबनान में यूएन अंतरिम फोर्स को तैनात किया गया, जो आज भी काम कर रहा है. साल 1979 में इजरायल और मिस्र के बीच शांति समझौता हुआ. इस समझौते ने मिडिल ईस्ट में शक्ति संतुलन को बदल दिया.

प्रोफेसर खशान का कहना है कि इसके बाद अरब देश इस नतीजे पर पहुचे कि वे मिस्र के बिना इजरायल पर हमला नहीं कर सकते हैं. 6 जून 1982 को इजरायल ने एक बार फिर पीएलओ के छापामार हमले को रोकने के बहाने लेबनान पर हमला कर दिया. इस हमले के कारण एक सितंबर को मल्टीनेशनल पीसकीपिंग फोर्स की देखरेख में पीएलओ को लेबनान छोड़ना पड़ा. साल 1985 में इजरायल साउथ लेबनान के लितानी नदी से हट गया और इस इलाके को सिक्योरिटी जोन घोषित कर दिया. साउथ लेबनान पर इजरायल का कब्जा साल 2000 तक बना रहा.

इजरायल का ऑपरेशन अकाउंटेबिलिटी
साल 1993 में हिजबुल्लाह के हमले में इजरायल के कम से कम 5 सैनिकों की मौत हो गई. इसके बाद इजरायल ने लेबनान में ऑपरेशन अकाउंटेबिलिटी लॉन्च किया. इसे 7 दिन के युद्ध के नाम से भी जाना जाता है. इजरायल ने हजारों इमारतों पर बमबारी की. जिसमें 118 लेबनानी मारे गए और 500 से अधिक जख्मी हुए.

साल 1996 आते-आते लेबनान और इजरायल की सीमा पर हताहतों की संख्या बढ़ने लगी थी. जिसके बाद 11 अप्रैल को ऑपरेशन ग्रेप्स ऑफ रैथ लॉन्च हुआ. इजरायल की सेना ने लेबनान पर गोले दागे और हवाई हमले किए. जिसमें 37 बच्चों समेत 100 से अधिक लोगों की मौत हुई. 
24 मई 2000 को इजरायल ने यूएन के घोषित बॉर्डर ब्लू लाइन पर वापस लौटने का ऐलान किया. इस फैसले से साउथ लेबनान पर इजरायली कब्जा खत्म हो गया. इसके बाद से लेबनान में 25 मई को राष्ट्रीय छुट्टी होती है. लेबनान में कब्जे का इजरायल में बड़े पैमाने पर विरोध हुआ था.

2006 में हिजबुल्लाह का हमला
साल 2006 में हिजबुल्लाह ने इजरायल के 3 सैनिकों को मार डाला और दो सैनिकों को पकड़ लिया. हिजबुल्लाह ने इजरायली सैनिकों के बदले में लेबनानी कैदियों की रिहाई की मांग की. लेकिन जब हिजबुल्लाह ने रॉकेट दागे तो इजरायली सेना ने इसका जवाब दिया और हवाई हमले किए. 34 दिनों तक दोनों तरफ से हमले होते रहे. इस दौरान 1200 लेबनानी मारे गए और 4400 जख्मी हो गए. इस दौरान इजरायल के 158 लोगों की मौत हुई. जिसमें ज्यादातर सैनिक थे.

लेक्चरर रबाह का कहना है कि साल 2006 में इजरायल और लेबनान के बीच उतना ज्यादा युद्ध नहीं हुआ था, जितना हिजबुल्लाह और इजरायली के बीच हुआ था. 7 अक्टूबर 2023 के हमले से पहले इजरायल-लेबनान बॉर्डर करीब-करीब शांत ही रहा. कभी-कभार लेबनान की तरफ से इजरायल में ड्रोन और रॉकेट से हमले होते रहे हैं. जबकि इजरायल ने साल 2007 से 2022 तक 22 हजार बार लेबनानी वायुसीमा का उल्लंघन किया है. जैसे-जैसे इजरायल और हिजबुल्लाह के हमले हो रहे हैं, वैसे-वैसे मौतों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है. इस हमले में एक लेबनानी पत्रकार, एक बुजर्ग लेबनानी दंपति और एक इजरायली नागरिक की मौत हुई है.

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