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Lyudmila Pavlichenko: लेडी डेथ के नाम से मशहूर थीं स्नाइपर लुडमिला पावलीचेंको, दूसरे विश्व युद्ध में 309 जर्मन सैनिकों को मार डाला था

Lyudmila Pavlichenko Birth Anniversary: ल्यूडमिला पावलीचेंको इतिहास की सबसे कामयाब स्नाइपर्स में से एक थीं. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ल्यूडमिला ने 309 जर्मन सैनिकों को राइफल से मार डाला था. इसमें जर्मनी के दर्जनों स्नाइपर शामिल थे. बाद में रेड आर्मी की पोस्टर गर्ल के तौर उन्होंने कई देशों की यात्राएं भी की.

लेडी डेथ के नाम से मशहूर थीं स्नाइपर लुडमिला पावलीचेंको (Photo/Wikipedia) लेडी डेथ के नाम से मशहूर थीं स्नाइपर लुडमिला पावलीचेंको (Photo/Wikipedia)

साल 1916 में आज के दिन यानी 12 जुलाई को उस लेडी का जन्म हुआ था, जो दूसरे विश्व युद्ध में जर्मन सैनिकों पर कहर बनकर टूटी थी. उसका नाम ल्यूडमिला पावलीचेंको था. ल्यूडमिला आज के यूक्रेन और उस वक्त के सोवियत संघ की रहने वाली थी. वो रूसी सेना में एक स्नाइपर थी. दूसरे विश्व युद्ध में 24 साल की इस लड़की ने जर्मनी के 309 सैनिकों को एक-एक करके मार डाला था. ल्यूडमिला ने अपने संस्मरण लिखे, जो लेडी डेथ के नाम सामने आया. चलिए आपको लेडी डेथ के नाम से मशहूर रूसी सैनिक की कहानी बताते हैं.

निशानेबाजी का था शौक, बन गई स्नाइपर-
ल्यूडमिला जब 15 साल की थी तो उनको मोहब्बत हो गई. इस छोटी उम्र में ल्यूडमिला मां भी बन गई. जल्द ही वो शादी के बंधन में बंध गई. हालांकि ये शादी ज्यादा दिन नहीं चल पाई. इसके बाद वो हथियार फैक्ट्री में काम करने लगी. ल्यूडमिला को निशानेबाजी का शौक था. जिसकी वजह से वो स्नाइपर स्कूल में शामिल हुईं. उसके बाद सोवियत संघ की रेड आर्मी की 25वीं राइफल डिवीजन में भर्ती हुईं.

तीसरी गोली से किया पहला शिकार-
साल 1941 में जून के महीने में जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने सोवियत संघ को हमला कर दिया. इस युद्ध में ल्यूडमिला को अपने देश की तरफ से लड़ने का मौका मिला. 8 अगस्त 1941 को स्नाइपर के तौर पर युद्ध में शामिल हुई. ल्यूडमिला ने आत्मकथा 'लेडी डेथ' में अपने पहले शिकार का जिक्र किया है. उन्होंने लिखा कि मैंने पहला शिकार तीसरी गोली और दूसरा शिकार चौथी गोली पर किया.

17 गोली से 16 शिकार-
ल्यूडमिला ने अपने संस्मरण में हिटलर के खिलाफ युद्ध के दौरान कई वाक्ये का जिक्र किया है. ल्यूडमिला ने लिखा कि वो जर्मन सैनिकों में भय पैदा करने के लिए उनके पेट में गोली मारती थीं. उनके पैर में भी गोली मारने का जिक्र किया है. जब जर्मनी के सैनिक अपने घायल साथी को लेने आते थे तो ल्यूडमिला उनको ढेर कर देती थीं. जर्मन सैनिक ल्यूडमिला के माइंडगेम को समझ नहीं पाए और शिकार होते रहे. ल्यूडमिला ने ओडेसा और सेवेतोवोल में युद्ध के दो दिन के भीतर 16 जर्मन सैनिकों को मार गिराया. लेकिन सबसे दिलचस्प ये है कि इसके लिए ल्यूडमिला ने सिर्फ 17 फायर किए थे.

महिला स्नाइपर्स ने बरपाया था कहर-
बताया जाता है कि ल्यूडमिला जिस स्नाइपर स्कूल से निकली थीं, उसकी 2 हजार महिला स्नाइपर्स ने करीब 12 हजार जर्मन सैनिकों को मार डाला था. हालांकि सोवियत संघ के 1500 स्नाइपर्स भी मारी गई थीं. साल 1942 से 1945 के दौरान ल्यूडमिला की तस्वीरों वाला एक लाख पोस्टर सोवियत-जर्मन फ्रंट पर तैनात सैनिकों में बंटवाए गए. इसपर एक वाक्य लिखा था- 'दुश्मन को गोली से उड़ा दो, चूको मत'.

अमेरिकी राष्ट्रपति ने की अगवानी-
ल्यूडमिला जब अमेरिका गईं तो उनकी अगवानी राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने किया था. ऐसा पहली बार हुआ था, जब किसी सोवियत महिला का स्वागत अमेरिकी राष्ट्रपति ने किया था. इस यात्रा के दौरान ल्यूडमिला की दोस्ती राष्ट्रपति रूजवेल्ट की पत्नी एलेनोर रूजवेल्ट से हो गई थी.
दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने के बाद ल्यूडमिला सोवियत नौसेना के रिसर्च इंस्टिट्यूट से जुड़ गईं. वो साल 1953 में मेजर रैंक से रिटायर हुईं. ल्यूडमिला को सोवियत संघ की सबसे बड़ा सम्मान हीरो ऑफ सोवियत यूनियन से सम्मानित किया गया. साल 1974 को 58 साल की उम्र में उनका निधन हो गया.

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