मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान गुरुवार को राज्य के खंडवा जिले के ओंकारेश्वर मंदिर शहर में मांधाता पर्वत पर आदि शंकराचार्य की विशाल 108 फीट की प्रतिमा का अनावरण करेंगे. आठवीं सदी के भारतीय दार्शनिक और धर्मशास्त्री, शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत के सिद्धांत को समेकित किया. उनकी बहु-धातु एकात्मता की प्रतिमा (एकता की प्रतिमा) का अनावरण - एक महत्वाकांक्षी एकात्म धाम परियोजना के पहले चरण की शुरुआत का प्रतीक है.
आने वाले समय में इस परियोजना में अद्वैत लोक संग्रहालय का विकास शामिल होगा, जिसमें अद्वैत वेदांत के संदेश को दर्शाते प्रदर्शनों के माध्यम से आचार्य शंकर (आदि शंकराचार्य) के जीवन और दर्शन को प्रदर्शित किया जाएगा. अद्वैत वेदांत का आचार्य शंकर अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, जो अद्वैत वेदांत के अध्ययन और प्रचार के लिए समन्वय, अनुसंधान और संसाधन केंद्र के रूप में काम करेगा, को भी मल्टी-फेज प्रोजेक्ट के हिस्से के रूप में देखा गया है.
आपको बता दें कि पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समारोह की अध्यक्षता करने की उम्मीद थी लेकिन 18 से 22 सितंबर तक संसद के विशेष सत्र के कारण यह संभव नहीं हो पाया. अनावरण की तारीख भी बारिश के कारण 18 सितंबर से 21 सितंबर कर दी गई है.
साल 2021 में हुई थी प्रोजेक्ट की घोषणा
मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने 2021 में अद्वैत वेदांत दर्शन के योगदान पर प्रकाश डालते हुए ओंकारेश्वर परियोजना एकात्म धाम के तहत एक संग्रहालय और शैक्षणिक संस्थान की घोषणा की थी. परियोजना के डिज़ाइन को जनवरी 2022 में अंतिम रूप दिया गया था. मध्य प्रदेश कैबिनेट ने ओंकारेश्वर में स्टैच्यू ऑफ वननेस, शंकराचार्य को समर्पित एक संग्रहालय और एक अंतर्राष्ट्रीय अद्वैत वेदांत संस्थान के निर्माण के लिए ₹2,141 करोड़ की मंजूरी दी. यह प्रोजेक्ट साल 2026 तक पूरा होना है.
आदि शंकराचार्य ने की थी 1600 किमी की पैदल यात्रा
आचार्य शंकर का जन्म केरल के कलाडी गांव में हुआ था और 8 वर्ष की आयु में वे गुरु की खोज में निकले और ओंकारेश्वर आये. यह प्रतिमा भी 12 वर्ष के आदि शंकराचार्य को चित्रित कर रही है क्योंकि इसी उम्र में ओंकारेश्वर में उनके गुरु गोविंदपाद ने सोचा था कि शंकर प्रमुख आध्यात्मिक ग्रंथों पर टिप्पणियां लिखने के लिए तैयार है.
आदि गुरु शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत के सिद्धांत के माध्यम से देश को सांस्कृतिक रूप से एक किया. उन्होंने 1600 किमी की पैदल यात्रा करने के बाद ओंकारेश्वर में अपने गुरु से आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया था. ओंकारेश्वर में अपने गुरु से ज्ञान प्राप्त करने के बाद उन्होंने काशी की ओर प्रस्थान किया. अद्वैत वेदांत (जिसे बाद में स्वामी विवेकानन्द सहित अन्य हिंदू आध्यात्मिक विद्वानों ने अपनाया) के उनके सिद्धांत को संरक्षित और बढ़ावा देने के लिए ओंकारेश्वर में न केवल स्टैच्यू ऑफ वननेस का अनावरण किया जाएगा, बल्कि एकात्म धाम की नींव भी रखी जाएगी.
समय से पहले पूरा हुआ प्रतिमा का काम
बताया जा रहा है कि प्रतिमा का काम इस साल अक्टूबर तक पूरा होना था, लेकिन सरकार के निर्देश पर काम में तेजी ला दी गई. दो बहुराष्ट्रीय कंपनियों के 100 से अधिक विशेषज्ञ और 50 से अधिक राज्य सरकार के अधिकारियों ने मिलकर प्रतिमा की स्थापना का काम पूरा करने के लिए 24x7 काम किया है. मूर्ति स्थापित होने के बाद स्थल पर सौंदर्यीकरण का काम शुरू हो जाएगा. अद्वैत दर्शन, संग्रहालय और संस्थान के भित्ति चित्र और पेंटिंग का काम 2026 तक पूरा हो जाएगा.
परियोजना के वास्तुकार कौशलेंद्र सिंह मीडिया को बताया कि प्रतिमा कांसे से बनी है और आंतरिक भाग उच्च गुणवत्ता वाले स्टेनलेस स्टील का है. प्रतिमा 16 फीट ऊंचे कमल पर स्थापित की जा रही है जो 75 फीट ऊंचे आसन पर होगी. मुंबई के प्रसिद्ध चित्रकार वासुदेव कामत ने आचार्य शंकर की पेंटिंग बनाई और फिर भारत के 11 प्रसिद्ध मूर्तिकारों को मूर्ति डिजाइन बनाने के लिए चुना गया. उनमें से बड़ी मूर्तियां बनाने के लिए कौशलेंद्र सिंह का चयन किया गया. मूर्तिकार भगवान रामपुरे ने अंतिम मूर्ति डिजाइन तैयार किया है.
महत्वपूर्ण बात यह है कि स्टैच्यू ऑफ वननेस के अनावरण से पहले, उत्तरकाशी के स्वामी ब्रहोंद्रानंद और 32 संन्यासी प्रस्थानत्रय भाष्य पारायण और दक्षिणाम्नाय श्रृंगेरी शारदा पीठ के मार्गदर्शन में लगभग 300 देश के वैदिक अर्चकों के साथ उसी मांधाता पर्वत पर वैदिक अनुष्ठान पूजा और 21 कुंडीय हवन किया जा रहा है. 21 सितंबर का आयोजन दक्षिणाम्नाय श्रृंगेरी शारदा पीठ के मार्गदर्शन में किया जाएगा.
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