
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मॉरीशस के दो दिन के दौरे पर हैं, जहां राष्ट्रीय दिवस समारोह में मुख्य अतिथि होंगे. पहली बार भारतीय मूल के लोगों को साल 1834 में मॉरीशस में ले जाया गया था. अंग्रेज भारतीय लोगों को गिरमिटिया मजदूर के तौर पर मॉरीशस ले गए थे. जिसके बाद भारतीय मूल के ये लोग इस देश में बस गए. आज इस देश की 70 फीसदी आबादी भारतीय मूल की है. मॉरीशस में हर क्षेत्र में भारतीय मूल के लोगों का दबदबा है.
मॉरीशस में कैसे गए थे भारतीय-
मॉरीशस की खोज साल 1502 में हुई थी. साल 1715 में इसपर फ्रांस ने कब्जा किया था साल 1810 में ब्रिटेन ने द्वीप पर कब्जा कर लिया. इसके बाद अंग्रेजों ने इस द्वीप को विकसित करने का प्लान बनाया. इसके लिए अंग्रेजों ने भारतीय मजदूरों को मॉरीशस ले जाने का फैसला किया. 2 नवंबर 1834 को एटलस जहाज से 36 भारतीय गिरमिटिया मजदूरों को मॉरीशस ले जाया गया था. सबसे पहले पुडुचेरी क्षेत्र से कारीगरों और राजमिस्त्रियों को मॉरीशस ले जाया गया था. साल 1834 से 1924 के बीच भारत से हजारों मजदूरों को मॉरीशस ले जाया गया. इसमें ज्यादातर उस देश में बस गए.
मॉरीशस में किसकी कितनी आबादी-
मॉरीशस की आबादी 12 लाख के करीब है. इसमें से 70 फीसदी आबादी भारतीय मूल की है. इसमें से 50 फीसदी आबादी हिंदू है. जबकि मॉरीशस की 32 फीसदी आबादी ईसाई धर्म को मानती है. जबकि 15 फीसदी आबादी इस्लाम को मानती है. मॉरीशस को मिनी इंडिया कहा जाता है.
हिंदी और भोजपुरी का दबदबा-
मॉरीशस की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है. लेकिन हिंदी और भोजपुरी भी प्रमुखता से बोली जाती है. इस देश में ज्यादातर भारतीय मूल के लोग बिहार और यूपी के हैं. इनको गिरमिटिया मजदूर के तौर पर मॉरीशस ले जाया गया था. मॉरीशस के पहले प्रधानमंत्री शिवसागर रामगुलाम बिहार के भोजपुर जिले के रहने वाले थे. साल 2011 की जनगणना के मुताबिक मॉरीशस की कुल आबादी में 5.3 फीसदी लोग भोजपुरी बोलते हैं.
1968 में मिली आजादी-
साल 1968 में 12 मार्च को मॉरीशस को अंग्रेजों से आजादी मिली थी. आजादी की लड़ाई में शिवसागर रामगुलाम ने अहम भूमिका निभाई थी. वो देश के पहले प्रधानमंत्री बने. मॉरीशस के मौजूदा प्रधानमंत्री नवीनचंद्र इसी फैमिली से आते हैं.