म्यांमार की एक अदालत ने 6 दिसंबर को देश की लोकतंत्र समर्थक नेता आंग सान सू की को सार्वजनिक अशांति को भड़काने और COVID नियमों का उल्लंघन करने के आरोप में चार साल जेल की सजा सुनाई है. सू की कई और आरोपों के लिए ट्रायल पर है और अगर उन सभी 11 आरोपों में वो दोषी पाई जाती हैं तो उन्हें 102 साल तक की जेल हो सकती है.
मतदान में धांधली का लगा था आरोप
सू ची को म्यांमार की सेना द्वारा हिरासत में लिया गया था. इस साल की शुरुआत में फरवरी में किए गए तख्तापलट के बाद से उन्हें आधिकारिक तौर पर तातमाडॉ (Tatmadaw)के तौर पर जाना जाने लगा. सैन्य तख्तापलट म्यांमार की संसद के नवनिर्वाचित सदस्यों के शपथ ग्रहण से एक दिन पहले हुआ, जो 2020 के चुनाव के दौरान चुने गए थे. म्यामांर में गत नवंबर में हुए चुनाव में सू ची की पार्टी को एकतरफा जीत मिली थी,जबकि सेना से संबद्ध दल को कई सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था. तब सेना ने उनपर मतदान में धांधली का आरोप लगाया था.
प्रदर्शन के दौरान 1300 लोगों की जान गई
तख्तापलट के बाद, म्यांमार ने लोकतंत्र के समर्थन में विरोध प्रदर्शन किया. इस तख्तापलट के बाद हुए प्रदर्शनों पर सेना ने सख्ती दिखाई और इस कार्रवाई में बड़ी संख्या में लोग मारे गए. रिपोर्टों में कहा गया है कि तख्तापलट के खिलाफ हुए प्रदर्शनों में 1,300 नागरिकों की जान गई, जबकि 10,000 से ज्यादा लोगों को हिरासत में लिया गया.
आंग सान सू की का जन्म म्यांमार के रंगून में 19 जून 1945 को हुआ था. उनके पिता आंग सान को देश में शहीद का दर्जा हासिल है. लोग उन्हें नेशनल हीरो के तौर पर देखते हैं. सू की मां खिन केई म्यांमार की मशहूर राजनयिक रहीं हैं. सू को साल 1991 में नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया था. उनके बेटे एलेक्जेंडर ने उनके लिए इस अवॉर्ड को ग्रहण किया था.
लोकतंत्र के लिए किया लंबा संघर्ष
आंग सान सू म्यांमार, जिसे बर्मा के नाम से भी जाना जाता है वहां की राजनेता हैं. वो बर्मा के राष्ट्रपिता आंग सान की पुत्री हैं, जिनकी 1947 में राजनीतिक हत्या कर दी गई थी. सू की ने बर्मा में लोकतंत्र की स्थापना के लिए लंबा संघर्ष किया. अपने प्रारंभिक जीवन में आंग सान सू की एक लेखिका थी. बाद में उन्हें म्यांमार की राजनीति में भारी गिरावट को देखते हुए वर्ष 1960 ईस्वी में नेपाल और बर्मा के मध्य राजदूत के रूप में नियुक्त हो गई. धीरे-धीरे उनकी लोकप्रियता बढ़ती गई. सू की ने चुनाव लड़ना शुरू किया, जिसमें उन्हें जीत मिली. आंग सान सू की ने धीरे धीरे राजनीति में अपना एक अहम स्थान बना लिया. अब आंग सान सू की को म्यांमार की सबसे बड़ी राजनेता का पद प्राप्त है.
कई बार हुईं नजरबंद
सू की महात्मा गांधी के अहिंसावादी सिद्धांत से काफी प्रभावित थीं. उन्होंने 27 सितंबर 1988 को नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) की स्थापना की. लेकिन 20 जुलाई 1989 को उन्हें घर में नजरबंद कर दिया गया. नजरबंदी के बाद उनकी लोकप्रियता और बढ़ गई. जुलाई 1995 में सू की को नजरबंदी से रिहा किया गया. इसके बाद सेना ने सितंबर 2000 से मई 2002 तक सू की को फिर से नजरबंद कर दिया. उन पर आरोप लगा कि उन्होंने यंगून से बाहर जाकर नियमों का उल्लंघन किया है.
सू की ने जनवरी 2012 में एलान किया था कि वह अपने संसदीय क्षेत्र यंगून से चुनाव लड़ेंगी. फरवरी में उन्हें इसकी मंजूरी दी गई और 1 अप्रैल को हुए चुनाव में उन्हें जीत हासिल हुई. नवंबर 2015 में हुए चुनाव में सू की पार्टी को विशाल जीत मिली.