दुनिया भर में नदियां अपने अलग-अलग रंगों के लिए जानी जाती हैं. उदाहरण के लिए, कोलंबिया का कैनो क्रिस्टेल्स अपने "पांच रंगों" के लिए प्रसिद्ध है, अमेजन की रियो नीग्रो अपने काले पानी के लिए प्रसिद्ध है, और बोस्निया और हर्जेगोविना और सर्बिया के बीच ड्रिना नदी अपने हरे रंग के लिए. हालांकि, नदी का नारंगी रंग काफी असामान्य और चिंताजनक है. अलास्का की नदियां नारंगी रंग की हो रही हैं. जिसे लेकर सभी चिंता में हैं.
हाल ही में, अलास्का की कुछ नदियां नारंगी रंग में बदल गई हैं. इस अनोखी घटना ने शोधकर्ताओं और लोगों का ध्यान खींचा है. हालांकि, ये नारंगी रंग पर्यावरणीय मुद्दों का संकेत हैं. नेचर अर्थ एंड एनवायरनमेंट जर्नल में प्रकाशित नई स्टडी के अनुसार, यह नारंगी रंग जलवायु परिवर्तन का परिणाम है.
75 नदियों के सैंपल लिए गए
शोधकर्ताओं ने पाया कि ये नदियां काफी भीड़-भाड़ वाले क्षेत्रों में हैं. इनमें कोबुक घाटी और आर्कटिक के गेट्स जैसे राष्ट्रीय उद्यान शामिल हैं. इस स्टडी के लिए वैज्ञानिकों ने उत्तरी अलास्का ब्रूक्स पर्वत श्रृंखला के विशाल क्षेत्र में 75 स्थलों से पानी के सैंपल लिए. इन जगहों की सुदूरता के कारण, कई टेस्टिंग क्षेत्रों तक जाने के लिए हेलीकॉप्टरों का उपयोग किया गया था.
नेशनल पार्क सर्विस आर्कटिक इन्वेंटरी एंड मॉनिटरिंग नेटवर्क के डॉ. जॉन ओ'डोनेल ने कहा कि उन्होंने जितना ज्यादा सर्वे किया, उतनी ही ज्यादा नारंगी नदियां और धाराएं उन्हें नजर आईं. यूसी डेविस में पर्यावरण विष विज्ञान के सहायक प्रोफेसर ब्रेट पौलिन के अनुसार, रंग इतना क्लियर है कि कुछ दागदार धब्बे अंतरिक्ष से भी दिखाई देते हैं.
लोहे का होना है ऐसे रंग की वजह
नारंगी रंग के पीछे की वजह नदी में लोहे का होना है. बता दें, पर्यावरण में लोहा सबसे ज्यादा मात्रा वाली धातुओं में से एक है. गर्म तापमान के कारण पर्माफ्रॉस्ट - जमी हुई जमीन - के पिघलने से, उसके अंदर जमा खनिज पानी में निकल जाते हैं. जब ये खनिज, विशेष रूप से धातु अयस्क (Metal Ores), हवा और पानी के संपर्क में आते हैं, तो वे एसिड और धातु छोड़ते हैं. दूषित पानी के सैंपल में लोहा, जिंक, निकल, तांबा और कैडमियम का लेवल ज्यादा दिखाई दिया. पानी के कुछ सैंपल का पीएच 2.3 से भी कम था, जो सामान्य नदी के पीएच (लगभग 8) की तुलना में काफी ज्यादा एसिडिक था.
2018 में दिखा रंग का बदलना
डॉ. जॉन ओ'डोनेल ने पहली बार 2018 में पानी के रंग में बदलाव देखा. हालांकि, 2008 की सैटेलाइट इमेज से संकेत मिलता है कि पानी पहले से ही दूषित होना शुरू हो गया था. ऐसा प्रतीत होता है कि यह मुद्दा समय के साथ धीरे-धीरे छोटी नदियों से लेकर बड़ी नदियों तक फैलता जा रहा है.
पानी में लोहे और दूसरी धातुओं के होने से वो नदी पूरी तरह से टॉक्सिक हो सकती है. इन धातुओं के होने से मछली की आबादी को नुकसान पहुंच सकता है और साथ ही जैव विविधता कम हो सकती है.
ग्रामीणों को भी कर रहा है प्रभावित
पानी की गुणवत्ता केवल उसमें मौजू मछलिओं को ही प्रभावित नहीं कर रहा है, बल्कि इंसानों को भी कर रहा है. खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को. वो समुदाय पीने के पानी के लिए इन नदियों पर निर्भर हैं. इतना ही नहीं धातुओं के पानी में होने की वजह से उसका रंग ही नहीं बल्कि उसका स्वाद भी बदल सकता है.
गौरतलब है कि जैसे-जैसे तापमान गर्म होता रहेगा, पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना जारी रहेगा, जिससे संभावित रूप से नदियों में से खनिज निकलेंगे. इतना ही नहीं ये नदियां इससे भी ज्यादा नारंगी हो सकती हैं और पानी की गुणवत्ता में गिरावट आ सकती है.