नेपाल में शुक्रवार को आए जोरदार भूकंप से अब तक 128 लोगों की मौत हो गई और दर्जनों घायल हैं. प्रत्यक्षदर्शियों ने कहा कि भूकंप के झटके इतने तेज थे कि इससे सैकड़ों घर ढह गए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घटना पर दुख जताया है. बचाव व राहत कार्य जारी है. आइए जानते हैं अक्सर क्यों हिलती है धरती?
पीएम मोदी ने जताया दुख
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेपाल भूकंप में जानमाल के नुकसान पर दुख जताया है. पीएम मोदी ने एक्स पर पोस्ट कर कहा कि भारत नेपाल के लोगों के साथ एकजुटता से खड़ा है और हर संभव सहायता देने के लिए तैयार है. हमारी संवेदनाएं शोक संतप्त परिवारों के साथ हैं और हम घायलों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करते हैं.
पूरे उत्तर भारत में देखा गया असर
बताया जा रहा है कि शुक्रवार को आए भूकंप के कारण ज्यादातर लोगों की मौत रुकुम पश्चिम और जाजरकोट में हुई है. नेपाल में तबाही मचाने वाले भूकंप की तीव्रता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उसका असर दिल्ली-एनसीआ समेत पूरे उत्तर भारत में देखा गया. बिहार के पटना और मध्य प्रदेश के भोपाल तक भूकंप के हल्के झटके महसूस किए गए. नेपाल के राष्ट्रीय भूकंप मापन केंद्र के मुताबिक भूकंप का केंद्र नेपाल के जाजरकोट जिले के लामिडांडा इलाके में था. इसकी तीव्रता 6.4 आंकी गई. नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' ने भूकंप से हुई लोगों की मौत पर दुख व्यक्त किया है. उन्होंने बचाव और राहत के लिए तीन सुरक्षा एजेंसियों नेपाल सेना, नेपाल पुलिस और सशस्त्र पुलिस बल को तैनात किया है.
2015 में आए भूकंप की भयावह यादें हुईं ताजा
नेपाल में 2015 में 7.8 तीव्रता के भूकंप और उसके बाद आए झटकों के कारण लगभग 9,000 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 22000 अन्य घायल हो गए थे. इस भूकंप के कारण 35 लाख लोग बेघर हो गए थे. आपदा के बाद सरकार की एक आकलन रिपोर्ट में कहा गया है कि भूकंप के लिहाज से नेपाल दुनिया का 11वां संवेदनशील देश है. 25 अप्रैल 2015 को आए विनाशकारी भूकंप में नेपाल की राजधानी काठमांडू में स्थित कई ऐतिहासिक इमारतें ध्वस्त हो गई थीं. बीते एक महीने में यह तीसरी बार है, जब नेपाल में भूकंप के तेज झटके आए हैं.
अक्सर क्यों हिलती है धरती
धरती की ऊपरी सतह सात टेक्टोनिक प्लेटों से मिल कर बनी है. जहां भी ये प्लेटें एक दूसरे से टकराती हैं, वहां भूकंप का खतरा पैदा हो जाता है. भूकंप तब आता है जब ये प्लेट्स एक-दूसरे के क्षेत्र में घुसने की कोशिश करती हैं, प्लेट्स एक-दूसरे से रगड़ खाती हैं, उससे अपार ऊर्जा निकलती है, और उस घर्षण या फ्रिक्शन से ऊपर की धरती डोलने लगती है, कई बार धरती फट तक जाती है, कई बार हफ्तों तो कई बार कई महीनों तक ये ऊर्जा रह-रहकर बाहर निकलती है और भूकंप आते रहते हैं, इन्हें आफ्टरशॉक कहते हैं.
कैसे मापी जाती है तीव्रता
भूकंप को रिक्टर स्केल पर मापा जाता है. रिक्टर स्केल भूकंप की तरंगों की तीव्रता मापने का एक गणितीय पैमाना होता है, इसे रिक्टर मैग्नीट्यूड टेस्ट स्केल कहा जाता है. रिक्टर स्केल पर भूकंप को इसके केंद्र यानी एपीसेंटर से 1 से 9 तक के आधार पर मापा जाता है. ये स्केल भूकंप के दौरान धरती के भीतर से निकली ऊर्जा के आधार पर तीव्रता को मापता है.
तीव्रता के हिसाब से असर
1. 0 से 1.9 रिक्टर स्केल पर भूकंप आने पर सिर्फ सीज्मोग्राफ से ही पता चलता है.
2. 2 से 2.9 रिक्टर स्केल पर भूकंप आने पर हल्का कंपन होता है.
3. 3 से 3.9 रिक्टर स्केल पर भूकंप आने पर कोई ट्रक आपके नजदीक से गुजर जाए, ऐसा असर होता है.
4. 4 से 4.9 रिक्टर स्केल पर भूकंप आने पर खिड़कियां टूट सकती हैं. दीवारों पर टंगे फ्रेम गिर सकते हैं.
5. 5 से 5.9 रिक्टर स्केल पर भूकंप आने पर फर्नीचर हिल सकता है.
6. 6 से 6.9 रिक्टर स्केल पर भूकंप आने पर इमारतों की नींव दरक सकती है. ऊपरी मंजिलों को नुकसान हो सकता है.
नेपाल में बार-बार क्यों आते हैं इतने भयंकर भूकंप
नेपाल उस पर्वत शृंखला पर स्थित है, जहां तिब्बती और भारतीय टेक्टोनिक प्लेट मिलती हैं. दरअसल, इंडो-ऑस्ट्रेलियन और यूरेशियन प्लेट के बीच में नेपाल की लोकेशन है. जब इन दोनों प्लेटों की टक्कर होती है, तो नेपाल में भूकंप के झटके आते हैं. हर साल 5 सेमी की दर से दोनों प्लेटे एक-दूसरे पर चढ़ रही हैं, जिसकी वजह से बार-बार नेपाल में भूंकप आता है. भले ही ये रफ्तार आपको कम नजर आए, लेकिन इसका प्रभाव बहुत ज्यादा होता है. इन दोनों प्लेटों की टक्कर की वजह से 5 करोड़ साल पहले हिमालय के पहाड़ बने थे. नेपाल की एक बड़ी मुसीबत यहां की कमजोर इमारतें हैं, जो भूकंप के तेज झटकों को संभालने के काबिल नहीं है. यही वजह है कि जब भी भूकंप आता है, तो बड़ी संख्या में लोगों को जान गंवानी पड़ती है.