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Japan-Nepal Currency Connection: जापान की 'करंसी' उगा रहे हैं नेपाल के किसान, 20 साल बाद बदलने जा रहे हैं नोट

जापान में हर 20 साल में करंसी में बदलाव किया जाता है. लेकिन इस बार जो नए नोट जापान में सर्कुलेशन के लिए आने वाले हैं उनका कनेक्शन नेपाल से है. जी हां, जापान की करंसी के बनाने के लिए नेपाल के किसान खास योगदान दे रहे हैं.

Argeli Plant to make paper for Japanese Currency Argeli Plant to make paper for Japanese Currency
हाइलाइट्स
  • नेपाल के किसान उगा रहे हैं यह खास फूल झाड़ी

  • जापान और नेपाल का करंसी कनेक्शन 

किसी भी देश की करंसी बहुत महत्वपूर्ण होती है और हर एक देश समय-समय पर इससे जुड़े बदलाव करता रहता है. जैसे कई बार नोट की डिजाइन, कलर बदलना तो कभी-कभी इसके लिए इस्तेमाल होने वाला रॉ मैटेरियल बदलना. जैसे कि अब दुनिया के सबसे बड़े इकोनॉमी देशों में से एक जापान ने अपनी करंसी की मैन्यूफैक्चरिंग को लेकर बड़ा फैसला किया है. अब जापान की करंसी एक खास तरह के पेपर पर प्रिंट होगी और यह पेपर जापान से नहीं बल्कि कहीं और से आयात किया जा रहा है. 

नेपाल के किसान उगा रहे हैं यह खास फूल झाड़ी
दुनिया के सबसे ऊंचे पहाड़ों और भारत के दार्जिलिंग जिले के चाय बागानों के बीच, बसे पूर्वी नेपाल के दृश्य बहुत शानदार हैं, जहां दुर्लभ ऑर्किड उगते हैं और लाल पांडा हरी-भरी पहाड़ियों पर खेलते हैं. लेकिन यहां जिंदगी इतनी आसान नहीं है. यहां किसानों की मकई और आलू की फसल को जंगली जावनरों ने नष्ट कर दिया था. जिसके बाद उन्होंने इन फसलों को छोड़कर कम लागत वाले पेड़-पौधे लगाना शुरू किया. 

माउंट एवरेस्ट के पास पैदा हुए किसान पासांग शेरपा अब आर्गेली उगा रहे हैं. यह एक सदाबहार, पीले फूल वाली झाड़ी है जो हिमालय में जंगली रूप से पाई जाती है. किसानों ने इसे बाड़ लगाने या जलाऊ लकड़ी के लिए उगाना शुरू किया था. लेकिन शेरपा को इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि उनकी अर्गेली की छाल उन्हें अच्छे-खासे पैसे और नाम दोनों कमा कर देगी. 

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जापान और नेपाल का करंसी कनेक्शन 
जापान की मुद्रा यानी की करंसी विशेष कागज पर मुद्रित या प्रिंट होती है जिसे अब जापान से ही नहीं लिया जा सकता है. जापानी अपने पुराने ज़माने के येन नोटों को पसंद करते हैं, और इस साल उन्हें ताज़ा नोटों की ज़रूरत है, इसलिए नेपाल के शेरपा और उनके पड़ोसियों के पास अपनी पहाड़ियों पर टिके रहने का अच्छा कारण है. क्योंकि आर्गेली की छाल को प्रोसेस करके ही नेपाल की करंसी बनाई जाएगी.  
शेरपा ने मीडिया से कहा कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वे इस तरह से कच्चा माल जापान को निर्यात करेंगे या वह इस पौधे से पैसे कमाएंगे. नेपाल से 4,600 किमी से ज्यादा दूर ओसाका में स्थित, कनपौ इंक. जापानी सरकार के लिए कागज का उत्पादन करता है. इसके चैरिटेबल काम में से एक हिमालय में नेपाली किसानों को कुएं खोदने में मदद करना है. और यहां के एजेंट्स ने नेपाल में ही जापान की समस्या का हल ढूंढ लिया. 

पारंपरिक कागज की हुई कमी 
दरअसल, जापान में बैंक नोट छापने के लिए इस्तेमाल होने वाले पारंपरिक कागज मित्सुमाता की आपूर्ति कम हो रही थी. पेपर की शुरुआत थाइमेलिएसी फैमिली के पौधों के लकड़ी के गूदे से होती है. घटती ग्रामीण आबादी और क्लाइमेट चेंज के कारण जापान के किसान अपने खेतों को छोड़ रहे हैं. उस समय कनपौ के राष्ट्रपति को पता था कि मित्सुमाता की उत्पत्ति हिमालय में हुई थी. तो, उन्होंने सोचा कि क्यों न इसका रिप्लेसमेंट किया जाए? 

सालों के ट्रायल और एरर के बाद, कंपनी को पता चला कि अर्गेली नामक वैसा ही एक पौधा पहले से ही नेपाल में मौजूद है. इसके किसानों को जापान के सटीक मानकों को पूरा करने के लिए बस ट्रेनिंग की जरूरत है. 2015 में भूकंप से नेपाल में हुई तबाही के बाद एक नई शुरुआत हुई. इस साल, शेरपा ने अपनी फसल की प्रोसेस में मदद करने के लिए 60 स्थानीय लोगों को काम पर रखा है और उन्हें 8 मिलियन नेपाली रुपये ($60,000) कमाने की उम्मीद है. जापान की येन करंसी के लिए यह एक महत्वपूर्ण क्षण है. हर 20 साल में करंसी को नया स्वरूप दिया जाता है. नोट पहली बार 2004 में छापे गए थे - अब उनके रिप्लेसमेंट जुलाई में कैशियर्स के पास आ जाएंगे.