कुछ दिनों में भारतीय सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे, नेपाल सेना के 'मानद जनरल' रैंक लेने के लिए काठमांडू जाने वाले हैं. लेकिन इससे पहले ही काठमांडू ने 'अग्निपथ योजना' के तहत भारतीय सेना में गोरखाओं की भर्ती पर सवालिया निशान लगा दिया है. यह परंपरा 75 साल पहले शुरू हुई थी.
दोनों देशों के सेना प्रमुखों के पारस्परिक आधार पर दूसरे पक्ष के मानद जनरल होने की प्रथा उतनी ही पुरानी है जितनी कि भारतीय सेना में गोरखा भर्ती. इस उद्देश्य के लिए 5 सितंबर को जनरल पांडे नेपाल जाने वाले थे. लेकिन इसी के साथ, गोरखाओं की भारतीय सेना में 'अग्निवीर' के रूप में भर्ती पर उभरती अनिश्चितता सामने आ रही है.
नेपाल, भारत और ब्रिटेन के बीच हुआ था त्रिपक्षीय समझौता
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, नेपाल के विदेश मंत्री नारायण खड़का ने नेपाल में भारत के राजदूत नवीन श्रीवास्तव को सूचित किया कि अग्निपथ योजना के तहत गोरखाओं की भर्ती 9 नवंबर, 1947 को नेपाल, भारत और ब्रिटेन द्वारा हस्ताक्षरित त्रिपक्षीय समझौते के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है.
नेपाल सरकार और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच 1816 में सगौली की संधि पर हस्ताक्षर के बाद तत्कालीन ब्रिटिश भारतीय सेना में नेपाल से गोरखाओं की भर्ती शुरू हुई. भारत के स्वतंत्र होने के बाद नवंबर 1947 में यह एक त्रिपक्षीय व्यवस्था बन गई. और नेपाल में गोरखाओं को भारतीय सेना में सेवा देने या यूके जाने का विकल्प दिया गया.
इसके बाद से, भारतीय सेना में लगातार गोरखाओं की भर्ती होती आ रही है. हालांकि, अब नेपाल का कहना है कि 1947 का समझौता अग्निपथ योजना के तहत भारत की नई भर्ती नीति को मान्यता नहीं देता है. और इस तरह नेपाल को “नई व्यवस्था के प्रभाव का आकलन करने की आवश्यकता होगी."
समिति की बैठक हुई स्थगित
नेपाल संसद की राज्य संबंध समिति, जिसे अग्निपथ योजना और गोरखा भर्ती पर इसके प्रभाव सहित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने के लिए निर्धारित किया गया था, कोरम (सदस्यों की वह न्यूनतम संख्या जिसके होने पर ही बैठक में निर्णय लिए जा सकें) की कमी के कारण स्थगित कर दिया गया था.
मंत्री खड़का का कहना है कि प्रमुख राजनीतिक दलों और हितधारकों सहित सभी पक्षों की राय लेना आवश्यक है. हालांकि, कहा जा रहा है कि यह नेपाल सरकार का अंतिम निर्णय नहीं है. व्यापक सहमति बनने के बाद वे भारत से संपर्क करेंगे.
नेपाल अनिश्चित काल के लिए टली भर्ती प्रक्रिया
नई दिल्ली ने कोविड-19 महामारी के कारण दो साल के अंतराल के बाद भर्ती के लिए सहयोग और एप्रुवल के लिए छह सप्ताह पहले काठमांडू से संपर्क किया था. नेपाल में भारतीय सेना की महीने भर की भर्ती प्रक्रिया गुरुवार से शुरू होनी थी और 29 सितंबर को पूरे नेपाल में विभिन्न केंद्रों पर समाप्त होनी थी. लेकिन अब यह अनिश्चित समय के लिए टल गई है.
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, नेपाल पक्ष ने स्पष्ट किया कि अग्निपथ के तहत चार साल की अवधि के लिए मौजूदा भर्ती योजना 1947 के समझौते के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है. नेपाल को चार साल के बाद सेवानिवृत्त होने वाले गोरखा रंगरूटों के भविष्य के बारे में सोचना होगा.