मंगल, बृहस्पति और शनि ऐसे ग्रह हैं जो हमेशा सुर्खियों में रहते हैं. लेकिन ताजा रिपोर्ट में कुछ ऐसे खुलासे हुए हैं जिससे सौर मंडल के कोने में मौजूद ग्रह यूरेनस और नेपच्यून चर्चा में आ गए हैं. ये बात सुनने में अटपटी जरूर लग सकती है कि किसी ग्रह पर हीरो की बारिश होती है, लेकिन अब वैज्ञानिकों ने ऐसा ही कुछ दावा किया है , मतलब इस कहानी के पीछे कोई फिक्शन नहीं है, इसके पीछे सांइस काम करता है. वैज्ञानिकों का दावा है कि इन ग्रहों पर हीरों (Diamonds) की बारिश होती है और इसके पीछे एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है. दरअसल इन दोनों ग्रहों पर ऐसा हाइड्रोजन, हीलियम और मीथेन जैसी गैसें मौजूद हैं. यहां वातावरणीय दबाव काफी ज्यादा है जो हाइड्रोजन और कार्बन बॉन्ड को तोड़कर अलग कर देता है और कार्बन हीरे के रूप में धरती पर बरसता है.
इस दावे को ऐसे समझिए
वैज्ञानिकों का ये दावा एक प्रयोग के आधार हुआ है. यह प्रक्रिया ठीक वैसी ही है जैसे पृथ्वी पर वायुमंडलीय दबाव के चलते जलवाष्प की प्रक्रिया होती है और बादल व ओले बनते हैं. यूरेनस और नेपच्यून का आकार और संरचना से काफी अलग है. यूरेनस पृथ्वी से 17 गुना तो नेपच्यून 15 गुना बड़ा है. यूरेनस पर मीथेन गैस मौजूद है जिसका रासायनिक नाम CH₄ है. वातावरण के दबाव के चलते इससे हाइड्रोजन (H) अलग हो जाता है और कार्बन (C) हीरे का रूप ले लेता है
तो क्या इंसानों को यहां से हीरे मिलेंगे
वही नेपच्यून पर जमी हुई मीथेन गैस पाई जाती है जिसके बादल यहां उड़ते हैं. नेपच्यून की दूरी सूर्य से सबसे ज्यादा है जिसकी वजह से यहां तापमान -200 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है. यहां चलने वाली हवाओं की रफ्तार करीब 2500 किमी/घंटा है और वायुमंडल में संघनित कार्बन होने के चलते यहां हीरों की बारिश देखने को मिलती हैं. हालांकि अगर इंसान चाहे भी तो अत्यधिक दूरी और चरम परिस्थितियों की वजह से इन ग्रहों पर पहुंच कर हीरों को हासिल नहीं कर सकता.