

सीरिया में विद्रोही बलों ने अलेप्पो के बाद होम्स शहर पर भी कब्जा कर लिया है. और अब वे सीरिया की राजधानी दमिश्क की ओर बढ़ रहे हैं. इस सब के बीच राष्ट्रपति बशर अल-असद के सीरिया छोड़ने की खबरें भी सामने आ रही हैं. और लग रहा है कि सीरिया में सरकार गिरने की कगार पर है.
सीरिया की राजनीतिक परिस्थितियां बदलने के पीछे इसराइल-हिज़्बुल्लाह युद्ध तो कारण है ही, लेकिन इन हालातों का फायदा उठाने के लिए जो एक आदमी जिम्मेदार है, उसका नाम है अबू मोहम्मद अल-जुलानी. कौन है सीरिया के विद्रोही बलों का यह लीडर, आइए डालते हैं एक नजर.
कौन है अबू मोहम्मद अल-जुलानी?
सीरिया में विद्रोही बलों की कमान अबू मोहम्मद अल-जुलानी के हाथ में है. इस संगठन का नाम है हयात तहरीर अल-शम्स (HTS). यह संगठन एक दशक पुराना भी नहीं है लेकिन देखते ही देखते सीरिया का सबसे ताकतवर विद्रोही समूह बन गया है. अगर मौजूदा दौर की बात करें तो अल-जुलानी ने अपने पिछले आठ साल खुद को दूसरे चरमपंथी संगठनों से अलग करने में बिताए हैं.
कभी सीरिया के सबसे विवादित चेहरों में से एक रहे जुलानी अब इस देश को एक 'इस्लामिक गणराज्य' बनाना चाहते हैं. अपने हालिया बयानों में जुलानी ने देश के अल्पसंख्यकों और दूसरे छोटे समूहों को सुरक्षा देने की बात भी कही है. लेकिन उनके अतीत को इतनी आसानी से नहीं मिटाया जा सकता.
पहले अल-कायदा से संबंध, फिर लड़ाई
अबू मोहम्मद अल-जुलानी उर्फ अहमद हुसैन अल-शरा का जन्म 1982 में सऊदी अरब के रियाद में हुआ लेकिन यह परिवार 1989 में सीरिया लौट आया. साल 2003 में इराक पर अमेरिका के हमले से कुछ समय पहले ही अल-जुलानी अल-कायदा का हिस्सा बन गया था. अल-जज़ीरा की एक रिपोर्ट बताती है कि वह अमेरिकी बलों से लड़ने के लिए इराक गया और अल-कायदा का हिस्सा बना.
बहरहाल, इतना तो तय है कि अल-जुलानी अल-कायदा का एक सदस्य था. साल 2006 में अमेरिका ने जुलानी को पांच साल के लिए जेल में बंद किया. कैद से आजाद होने के बाद जुलानी को सीरिया में अल-कायदा की एक ब्रांच 'अल-नुसरा' फ्रंट खोलने की जिम्मेदारी दी गई. देखते ही देखते इस समूह ने इदलीब सहित कई ऐसे क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत की जो विद्रोहियों के कब्जे में थे.
जुलानी ने उन वर्षों में इस्लामिक स्टेट (ISIS) के हेड अबू-बकर अल बगदादी के साथ मिलकर भी काम किया. साल 2013 में बगदादी ने अल-कायदा से अपने संबंध खत्म करने का ऐलान किया. जुलानी को यह बात नागवार गुज़री और वह अल-कायदा का हिस्सा बने रहे.
बाद में हालांकि जुलानी ने खुद को अल-कायदा से भी अलग कर लिया. और बगदादी के भी नहीं हुए. उन्होंने अल-कायदा के वैश्विक साम्राज्य बनाने के आइडिया से दूरी बनाते हुए सीरिया में अपने समूह को मजबूत करने का फैसला किया. साल 2017 की शुरुआत में हजारों विद्रोही अलेप्पो से इदलीब आए. और यहां जुलानी ने सभी समूहों को एचटीएस में शामिल करने की घोषणा कर डाली.
पिछले आठ सालों में एचटीएस ने सीरिया में अल-कायदा और आईएसआईएस से लड़ाई की है. और उन्हें खत्म करने में अहम भूमिका निभाई है. विशेषज्ञ कहते हैं कि जुलानी पश्चिमी देशों के सामने अपनी छवि सुधारने के लिए ऐसा कर रहे हैं. लेकिन अल-कायदा और आईएस जैसे कई संगठनों को हराकर जुलानी ने सीरिया के एक बड़े हिस्से पर एकछत्र राज हासिल किया. और अब वह राजधानी की ओर बढ़ रहे हैं.
कैसा रहा है अल्पसंख्यकों के लिए रुख?
जुलानी इस्लाम धर्म के सु्न्नी पंथ से आते हैं. उनके सत्ता में आने पर सीरिया में शिया मुसलमानों और ईसाइयों की सुरक्षा पर बड़ा प्रश्न चिह्न लग जाएगा. हालांकि बीते कुछ समय में जुलानी के शब्दों में नरमी और उदारता की झलक देखने को मिली है.
साल 2014 में अपने पहले टेलीविज़न इंटरव्यू के दौरान जुलानी ने अल जजीरा से कहा था कि सीरिया पर उनके समूह की “इस्लामी कानून” की व्याख्या के तहत शासन किया जाना चाहिए. और देश के अल्पसंख्यकों, जैसे ईसाइयों और अलावी को इसमें शामिल नहीं किया जाएगा.
लेकिन जैसे-जैसे विद्रोही लड़ाके अलेप्पो पर फिर से कब्ज़ा करके दक्षिण की ओर बढ़ रहे हैं, अल-जुलानी ने सीरिया के अल्पसंख्यकों के प्रति उदार रुख अपनाया है. अलेप्पो पर कब्ज़ा करने के बाद से समूह ने आश्वासन दिया है कि धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यकों की रक्षा की जाएगी.
इस बीच, सोशल एक्टिविस्ट और समाचार रिपोर्टों के अनुसार एचटीएस सख्ती से शासन करता है. और असहमति को बर्दाश्त नहीं करता. स्वतंत्र पत्रकारिता संगठन सीरिया डायरेक्ट की रिपोर्ट है कि एचटीएस कई सामाजिक कार्यकर्ताओं के गायब होने के लिए जिम्मेदार है.
समूह ने कथित तौर पर कई प्रदर्शनकारियों पर गोलियां भी चलाई हैं. और उन लोगों को इदलीब में सुविधाएं देने से इनकार भी किया है जो इसका विरोध करते हैं. अल-जुलानी भले ही अभी सीरिया के अल्पसंख्यकों के लिए मीठे बोल बोल रहे हों, लेकिन उनकी कथनी और करनी का फर्क उनके सत्ता में आने पर ही चलेगा.