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Russia Ukraine Conflict: रूस यूक्रेन विवाद दिलाता है 'क्यूबा मिसाइल संकट' की याद जब दो महाशक्तियों के बीच होने वाले परमाणु युद्ध से घबराई हुई थी दुनिया

बात 1962 की है, जब रूस और यूक्रेन की तरह ही दो पड़ोसी देश जंग के मुहाने पड़ खड़े थे. इन दोनों देशों ने एक दूसरे के खिलाफ मिसाइलें तैनात कर दी थीं. ये दो देश थें -  क्यूबा और अमेरिका. क्यूबा को सबक सिखाने के लिए अमेरिका जहां हमले की योजना बना रहा था तो रूस क्यूबा के बचाव में उतर गया था. अमेरिका और क्यूबा के बीच का ये तनाव पूरी दुनिया के लिए एक बड़ा खतरा बन गया था. 

Cuba Missile Crisis 1962: क्यूबा की तरफ आने और जाने वाले जहाजों को तलाशी के बाद गुजरने दिया जाता था. Cuba Missile Crisis 1962: क्यूबा की तरफ आने और जाने वाले जहाजों को तलाशी के बाद गुजरने दिया जाता था.
हाइलाइट्स
  • 1962 में हो सकता था तीसरा विश्व युद्ध

  • क्यूबा में तख्तापलट की कोशिश से हुई शुरुआत

  • रूस ने तैनात की परमाणु मिसाइलें

  • अमेरिका ने अटलांटिक महासागर में किया हमला

  • ऐन वक्त पर न्यूक्लियर मिसाइल को लॉन्च से रोका गया 

  • 13 दिन चला था ये संकट

रूस और यूक्रेन विवाद में हर दिन नए मोड़ आ रहे हैं. रूस की सेना ने यूक्रेन को हर तरफ से घेर रखा है और इस स्थिति का फायदा उठाते हुए रूस कई मांग कर रहा है. वहीं इस मामले में अमेरिका रूस के आमने-सामने खड़ा है. संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी प्रतिनिधि ने कहा कि यूक्रेन के विद्रोही क्षेत्रों को देशों के रूप में मान्यता देना यूक्रेन पर आक्रमण के लिए एक बहाना बनाने की कोशिश है. ऐसा पहली बार नहीं है जब रूस और अमेरिका एक दूसरे के खिलाफ खड़े हैं. ऐसी ही कुछ स्थिति 6 दशक पहले बनी थी जब दो देशों के बीच परमाणु युद्ध होते-होते रह गया था. 

1962 में हो सकता था तीसरा विश्व युद्ध 

बात 1962 की है, जब रूस और यूक्रेन की तरह ही दो पड़ोसी देश जंग के मुहाने पर खड़े थे. इन दोनों देशों ने एक दूसरे के खिलाफ मिसाइलें तैनात कर दी थीं. ये दो देश थें -  क्यूबा और अमेरिका. क्यूबा को सबक सिखाने के लिए अमेरिका जहां हमले की योजना बना रहा था तो रूस क्यूबा के बचाव में उतर गया था. अमेरिका और क्यूबा के बीच का ये तनाव पूरी दुनिया के लिए एक बड़ा खतरा बन गया था. 

क्यूबा में तख्तापलट की कोशिश से हुई शुरुआत 

अमेरिका और रूस के बीच 1947 से लेकर 1991 तक 'कोल्ड वार' चला. इसकी शुरुआत अमेरिका की क्यूबा में फिदेल कास्त्रो का तख्ता पलटने की नाकाम कोशिश से हुई थी. इस घटना के बाद अमेरिका और क्यूबा के संबंध इतने खराब हो गए कि आज भी क्यूबा के लिए अमेरिका सबसे बड़ा दुश्मन है. इसी शीत युद्ध के समय 1962 में एक ऐसा वक्त भी आया जब दोनों देशों की मिसाइलें एक दूसरे के खिलाफ तन गई थीं. मात्र 13 दिनों में दुनिया परमाणु युद्ध के कगार पर खड़ी हो गई थी. क्यूबा और अमेरिका के बीच जब तनाव बढ़ गया जिससे 'क्यूबा मिसाइल संकट' का उदय हुआ.

रूस ने तैनात की परमाणु मिसाइलें

दरअसल, इटली और तुर्की में अमेरिका ने अपनी परमाणु मिसाइलें तैनात की थीं, इस कदम से रूस बौखलाया हुआ था. अमेरिका की दादागिरी का जवाब देने के लिए रूस भी आगे आया. क्यूबा के कास्त्रो एवं रूस के उस  समय के राष्ट्रपति के निकिता ख्रुश्चेव के बीच एक खुफिया बैठक हुई. इस बैठक में यह तय हुआ कि रूस न केवल क्यूबा की सैन्य मदद करेगा बल्कि उसके यहां परमाणु मिसाइलें भी तैनात करेगा. इसके बाद रूस ने मिसाइलों की खेप क्यूबा पहुंचानी शुरू कर दी. जब इसकी भनक अमेरिका खूफिया एजेंसी सीआईए को लगी तब अमेरिकी सैन्य अधिकारियों ने राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी को क्यूबा पर हमला करने की सलाह दी. 

अमेरिका ने अटलांटिक महासागर में किया हमला 

केनेडी ने सैन्य अधिकारियों की बात तो नहीं मानी लेकिन क्यूबा के समुद्री सीमा की घेराबंदी कर दी गई. क्यूबा की तरफ आने और जाने वाले जहाजों को तलाशी के बाद गुजरने दिया जाता था. रूस ने इसे उकसाने वाली कार्रवाई माना और अपनी पनडुब्बियों को अटलांटिक महासागर में जाने का आदेश दे दिया. अमेरिका ने क्यूबा और रूस से अपनी मिसाइलें हटाने के लिए कहा लेकिन दोनों देशों ने यह कहते हुए मना कर दिया कि यह कदम उन्होंने आत्मरक्षा के लिए उठाया है. इसके बाद अमेरिका युद्ध करने को आतुर हो गया. तभी अटलांटिक महासागर में रूस की एक पनडु्ब्बी के पास एक अमेरिकी बम गिरा. उस वक्त रूसी पनडुब्बी गहरे समुद्र में थी. 

ऐन वक्त पर न्यूक्लियर मिसाइल को लॉन्च से रोका गया 

इस धमाके की वजह से रूसी पनडुब्बी में मौजूद अधिकारियों को लगा कि युद्ध की शुरुआत हो चुकी है. रूसी पनडुब्बी में मिसाइल युक्त तारपीडो को लॉन्च के लिए ट्यूब के अंदर डाला जा चुका था और बस बटन दबाने की देर थी कि एक अधिकारी ने न्यूक्लियर तारपीडो को लॉन्च करने से मना कर दिया. इस अधिकारी ने अगर अनुमति दे  दी होती तो अमेरिका पर परमाणु हमला हो गया होता. इसके बाद तबाही का जो सिलसिला शुरू होता, उसकी बस कल्पना की जा सकती है. 

13 दिन चला था ये संकट 

इसके बाद अमेरिका और रूस के बीच एक महत्वपूर्ण बैठक हुई जिसमें कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए. आखिरकार  28 अक्टूबर 1962 को अमेरिका इटली और तुर्की से और रूस क्यूबा से अपनी मिसाइलें हटाने को राजी हो गया. इसके अलावा रूस ने अमेरिका से तय वादा भी लिया कि वह क्यूबा पर हमला नहीं करेगा. यह तनाव की स्थिति जिसे 'क्यूबा मिसाइल संकट' का नाम दिया गया, 16 अक्टूबर 1962 से 28 अक्टूबर 1962 तक चला था.