यूक्रेन-रूस युद्ध जारी है. दोनों देशों के बीच चल रही इस लड़ाई का असर अब दुनिया के अलग-अलग देशों में नजर आने लगा है. तमाम देशों की तरफ से लगाई जा रही पांबदियों के बावजूद रूस ने यूक्रेन पर अपनी कार्रवाई को रोकने का कोई संकेत नहीं दिया है. रूस पर लगे वैश्विक प्रतिबंधों के बाद रूस ने खुद भारत-अमेरिका के साथ कई देशों के सामने डिस्काउंट पर क्रूड ऑयल देने की पेशकश की है. लेकिन रूस को लेकर इस समय इंटरनेशनल लेवल पर अब नए समीकरण बनने लगे हैं. इसके अलावा रूस से क्रूड ऑयल लेने पर कई तरह के पेंच हैं जिन्हें समझना जरूरी है.
रूस पर वैश्विक प्रतिबंधों के चलते महंगे क्रूड की धार में फंसे भारत-अमेरिका के अलावा कई देशों के सामने बिगड़ती अर्थव्यवस्था को संभालना बड़ी चुनौती बन गया है. टेंशन इस बात की भी है कि रूस से ऐसे समय में क्रूड ऑयल खरीदना दूसरे देशों खासतौर से अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ संबध बिगाड़ने जैसा होगा. रूस से तेल और गैस एक्सपोर्ट प्रतिबंधों के दायरे में नहीं है, लेकिन खरीदारों के रूसी तेल की खरीद से परहेज से इस समय क्रूड ऑयल 13 साल के उच्चतम स्तर पर यानी 140 डॉलर प्रति बैरल है. ऐसे में ये भी जानना जरूरी है कि रूस ऐसे समय में भारत को कम दाम पर क्रूड ऑयल देने की पेशकश क्यों कर रहा है?
हालांकि रूसी कंपनियां इस वक्त भारत सहित कई देशों को 25-27% छूट देकर क्रूड बेचने का ऑफर दे रही हैं. वहीं सस्ते ऑफर पर भी रूस से भारत के लिए कच्चा तेल लाना मुश्किलों से भरा है. इसमें सबसे बड़ा सवाल टोटल खर्चे का है. यानी वहां से तेल मंगाने में लॉजिस्टिक समेत तमाम खर्च के बाद लागत उतनी ही पड़ेगी, जितनी अभी है. ऐसे में भारत को कोई खास फायदा होता नजर नहीं आ रहा है.
रूस ने कहा खुद ले जाओ तेल
रूस ने भी इस सिलसिले में टैंकर फ्री मॉडल में तेल देने की बात कही है. टैंकर फ्री ऑन बोर्ड मॉडल यानी खुद ले जाइए. बता दें कि भारत 80% तेल पश्चिमी देशों के टैंकर से लाता है. और रूस -यूक्रेन के बीच जारी तनातनी के बीच कई पश्चिमी देश रूस के खिलाफ खड़े हैं . जाहिर है कि ये देश रूस से क्रूड ऑयल लाने के लिए टैंकर नहीं देंगे.
रूसी तेल पर बीमा नहीं देंगे पश्चिमी देश
भारतीय कंपनियां खुद बीमा करती हैं. इसके बाद विदेशी कंपनियों से समर्थन दिया जाता है. प्रतिबंधों के बाद पश्चिमी देशों की कंपनियां रूसी तेल पर बीमा देने को तैयार नहीं है.
भुगतान को लेकर भी बना है सवाल
तेल का कारोबार डॉलर में होता है. अंतरराष्ट्रीय भुगतान प्रणाली स्विफ्ट (SWIFT) तक रूस की पहुंच रोक दी गई है. भारतीय कंपनियां इसके लिए राह तलाशने की कोशिश कर रही हैं. पहले रुपए और रुबल में कारोबारी संभावना पर काम हुआ है.