यूक्रेन पर हमले के बाद पश्चिमी देश रूस पर दबाव बना रहे हैं. यूक्रेन पर रूस के हमले के खिलाफ सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान यूक्रेनी राजदूत सर्गेई क्रिस्लिट्स्या ने रूस को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाने पर ही सवाल उठाया. क्रिस्लिट्स्या ने UN सेक्रेटरी एंतोनियो गुतारेस से एक दस्तावेज सभी सदस्य देशों को बांटने को कहा. साथ ही ब्रिटेन की मंशा रूस से वीटो पावर छीनने की है.
आइए जानते हैं कि रूस से वीटो छीन कर सुरक्षा परिषद से कैसे बाहर किया जा सकता है? और रूस ने किस तरह से सुरक्षा परिषद में सोवियत संघ यानी USSR की जगह ले ली थी?
रूस को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाने के लिए UN महासभा में कोई फैसला ही नहीं लिया गया था. फिर भी रूस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) का मेंबर है.
बता दें कि यूक्रेनी राजदूत सर्गेई क्रिस्लिट्स्या ने जिन दस्तावेज को सभी सदस्य देशों को बांटने को कहा है वो 9 दिसंबर 1991 को संयुक्त राष्ट्र यानी UN के लीगल काउंसिल यानी वकील का लिखा कानूनी ज्ञापन है. इसमें रूस को सोवियत संघ के उत्तराधिकारी के रूप में सुरक्षा परिषद में शामिल करने की अनुमति मांगी थी. इस सिलसिले में यूक्रेन का कहना है कि सोवियत संघ से अलग हुए देशों ने 1991 में घोषित किया था कि सोवियत संघ का अस्तित्व नहीं रहा. ऐसे में यूक्रेन ये सवाल उठा रहा है कि रूस को सोवियत संघ की जगह सुरक्षा परिषद का परमानेंट मेंबर कैसे बना दिया गया. जबकि सोवियत संघ से अलग हुए बाकी देशों का भी स्थायी सदस्य के रूप में शामिल करने का कानूनी दावा बनता था. वहीं, रूस को सुरक्षा परिषद का परमानेंट मेंबर बनाने के लिए UN महासभा ने कभी कोई फैसला नहीं लिया. इसके अलावा सोवियत संघ के टूटने के बाद भी UN चार्टर में बदलाव नहीं किया गया. UN के चार्टर में रूस की जगह सोवियत संघ का नाम है.
दूसरी तरफ रूस सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है. यानी रूस के पास वीटो पावर है. और किसी भी स्थायी सदस्य को UNSC से बाहर करने की कोई सीधी प्रक्रिया ही नहीं है. यहां तक की UN चार्टर में भी इसका कोई जिक्र नहीं है. लेकिन UN से किसी देश को निकालने के लिए एक प्रोसेस है. इस प्रोसेस में सबसे पहले सुरक्षा परिषद की सिफारिश आती है. इस सिफारिश के आधार पर UN महासभा में वोटिंग होती है. लेकिन ऐसा अभी तक नहीं हुआ है. मतलब साफ है कि रूस को निकालने के लिए पहले सुरक्षा परिषद से सिफारिश होनी चाहिए, जबकि रूस कम से कम अपने लिए इस तरह की सिफारिश होने नहीं देगा.
तो क्या रूस को UN सुरक्षा परिषद से बाहर नहीं किया जा सकता है
संयुक्त राष्ट्र महासभा रूस को UN या UNSC से निकालने का प्रस्ताव पारित करे तो तय है कि परमानेंट मेंबर होने के नाते रूस वीटो करके इस प्रस्ताव को रोक देगा. ऐसे में महासभा इसी प्रस्ताव को दोबारा लाए और प्रस्ताव को दो तिहाई सदस्यों का सपोर्ट मिले तो रूस को सुरक्षा परिषद से बाहर किया जा सकता है.
इस मामले को इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में भी ले जाया जा सकता है. अगर इंटरनेशनल कोर्ट ये फैसला सुनाता है कि सुरक्षा परिषद का कोई सदस्य UN चार्टर के खिलाफ जाकर किसी देश के खिलाफ जंग छेड़ता है तो UN में उसकी सदस्यता नहीं मानी जाएगी. अगर ऐसा होता है तो रूस की सदस्यता अवैध घोषित हो सकती है.
इस पूरे मामले पर यूक्रेन के तर्क को अगर मान लिया जाए तो भी रूस की सदस्यता के खिलाफ कार्यवाही शुरू हो सकती है. यूक्रेन का कहना है कि रूस को कभी भी सोवियत संघ का उत्तराधिकारी नहीं बनाया गया था.
रूस की संयुक्त राष्ट्र में सदस्यता इस शर्त का पालन नहीं करती - यूक्रेन
यूक्रेनी राजदूत किस्लिट्स्या का दावा है कि UN चार्टर के आर्टिकल 4 में कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र केवल शांतिप्रिय देशों के लिए है . जबकि रूस के हमला करने से यह पता चलता है कि वह इन शर्तों को तोड़ता है. ऐसे में UNSC की सिफारिश पर महासभा की ओर से रूस को UN से बाहर किया जा सकता है. वहीं रूस का दावा है कि यूक्रेन पर उसकी कार्रवाई सेल्फ डिफेंस के लिए की गई है जो कि चार्टर के क्लॉज 51 के मुताबिक है.