जापान की सुशी के बारे में तो सभी ने सुना है… लेकिन क्या आपको इससे भी ज्यादा फेमस चीज साके के बारे में पता है? साके एक तरह की ड्रिंक है जिसे जापान में बड़े ही चाव के साथ पिया जाता है. अब इसी ड्रिंक को यूनेस्को ने मान्यता दे दी है. चावल से बनी इस वाइन को UNESCO ने नई पहचान दी है और इसे "मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत" के रूप में मान्यता दी है.
दरअसल, दुनिया में सभी देशों का खानपान उनके इतिहास से जुड़ा हुआ है. इसी को देखते इन्हें मान्यता भी दी जाती है. ठीक ऐसी ही ड्रिंक साके को जापान में मान्यता मिल गई है. साके केवल एक पेय नहीं है बल्कि यह जापान के इतिहास, परंपरा और शिल्पकला का प्रतीक है. इसे जापानी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा माना जाता है, यहां तक कि यह सुशी से भी ज्यादा ये ड्रिंक जापान का प्रतीक माना जाता है. सदियों से, साके को पर्वतीय इलाकों में तैयार किया जाता रहा है.
जापान के अलग-अलग रेस्टोरेंट और बार जिन्हें izakayas कहा जाता है, में परोसा जाता है. इतना ही नहीं बल्कि फैमिली फंक्शन्स और शादियों में भी इसे परोसा जाता है।. अब, इस चावल की बनी वाइन को एक नई पहचान मिली है. UNESCO ने इसे "मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत" (intangible cultural heritage of humanity) के रूप में मान्यता दी है.
UNESCO की बैठक में लिया गया फैसला
हाल ही में पैराग्वे (अर्जेंटीना, ब्राजील और बोलीविया से घिरा हुआ एक देश) में हुई एक बैठक में, UNESCO की सांस्कृतिक विरासत समिति ने साके को दुनिया भर की 45 नई सांस्कृतिक प्रथाओं और प्रोडक्ट्स की लिस्ट में शामिल किया. इस लिस्ट में फिलिस्तीनी जैतून के तेल का साबुन, कैरेबियाई कसावा ब्रेड और ब्राजीलियन व्हाइट चीज़ जैसे खजाने भी शामिल हैं. यह लिस्ट UNESCO वर्ल्ड हेरिटेज जगहों से अलग है.
साके की कहानी क्या है?
साके की कहानी हजारों साल पुरानी है और यह एशिया में चावल की खेती के विकास से जुड़ी हुई है. जहां चावल से बनी शराब सबसे पहले प्राचीन चीन में उभरी, वहीं जापान ने अपनी विशेष ब्रूइंग तकनीकें 5वीं सदी ईसा पूर्व तक विकसित कर ली थीं. शुरुआती रिकॉर्ड्स में साके का जिक्र अनुष्ठानों के लिए तैयार की गई ड्रिंक और देवताओं को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद के रूप में मिलता है.
8वीं सदी तक, साके का उत्पादन शाही दरबार के तहत औपचारिक रूप से व्यवस्थित किया गया, और कोजी (फफूंदी के बीजाणु) का उपयोग करने की विधियां विकसित की गईं, जो आज भी ब्रूइंग की मूल तकनीक है. शुरू में, साके एक लग्जरी वाली चीज थी, जिसे केवल अमीर लोग और राजा महाराज ही पीते थे. समय के साथ, मंदिरों और मठों में इसका उत्पादन बढ़ा और यह आम जनता के लिए उपलब्ध हो गई.
एक ड्रिंक कैसे बन गई सांस्कृतिक पहचान
एदो काल (1603-1868) के दौरान साके उत्पादन ने नई ऊंचाइयों को छुआ. ब्रूइंग में सुधार, जैसे चावल की पॉलिशिंग और स्टेरलाइजेशन तकनीकों की मदद से बड़े पैमाने पर इसे बांटा जाने लगा. इस समय तक साके केवल एक फंक्शन में परोसी जाने वाली ड्रिंक नहीं रही, बल्कि यह टोक्यो (तब के एदो) जैसे शहरों में घरों का हिस्सा बन गई. रिकॉर्ड्स दिखाते हैं कि प्रति व्यक्ति साके की खपत काफी बढ़ गई थी, और इसे पूरे साल गर्म करके, सुशी और सब्जियों के साथ परोसा जाता था.
आधुनिक युग में साके
20वीं सदी की शुरुआत में, साके को मॉडिफाई किया गया. ब्रूइंग में नई तकनीकों को जोड़ा गया. पारंपरिक देवदार के कास्क की जगह कांच की बोतलों का इस्तेमाल शुरू हुआ. हालांकि, युद्ध के दौरान चावल की कमी के कारण, साके को न्यूट्रल स्पिरिट्स के साथ मिलाकर बेचा जाने लगा. लेकिन 1970 के दशक में आर्थिक उछाल के बाद, साके फिर से बाजार और घरों में देखी जाने लगी.
हाल के दशकों में, गिंजो-शु जैसे प्रीमियम प्रकार, जो अपनी फलदार खुशबू के लिए प्रसिद्ध हैं, ने वैश्विक स्तर पर लोगों का ध्यान खींचा.
जापानी विरासत का वैश्विक प्रतीक
आज, UNESCO की मान्यता ने साके को एक वैश्विक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में स्थापित कर दिया है. अपनी प्राचीन जड़ों से लेकर नए जमाने के मॉडिफिकेशन तक, साके जापान की कारीगरी और परंपरा का हिस्सा बन गई. चाहे शादी हो या पब हो साके जापान के लोगों की आम जिंदगी में शामिल हो गई.