
वैज्ञानिकों ने प्रलय का टाइम सेट कर दिया है. जी हां, कयामत की घड़ी (Doomsday Clock) या जिसे डूम्सडे क्लॉक भी कहा जाता है आगे बढ़ा दी गई है. बता दें, ये एक प्रतीकात्मक घड़ी है, जो यह दिखाती है कि मानव जाति अपनी ही बनाई खतरनाक तकनीकों से दुनिया के विनाश के कितने करीब है. इसे "बुलेटिन ऑफ एटॉमिक साइंटिस्ट्स" (Bulletin of the Atomic Scientists) नाम का संगठन कंट्रोल करता है. ये संगठन दुनियाभर में न्यूक्लियर हथियारों, जलवायु परिवर्तन, जैविक हथियारों, महामारी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसी उभरती खतरनाक तकनीकों पर रिसर्च करता है.
2025 में कयामत की घड़ी
29 जनवरी 2025 को, बुलेटिन ऑफ एटॉमिक साइंटिस्ट्स ने कयामत की घड़ी को एक सेकंड आगे बढ़ाकर 89 सेकंड्स कर दिया. यह पहली बार है जब पिछले तीन साल में घड़ी को आगे बढ़ाया गया है, और यह संकेत देता है कि विश्व पहले से कहीं ज्यादा अपने विनाश के करीब है. बुलेटिन ऑफ एटॉमिक साइंटिस्ट्स के विज्ञान और सिक्योरिटी बोर्ड के अध्यक्ष डेनियल होल्ज ने कहा, "यह हमारा आकलन है कि दुनिया ने उन खतरों को दूर करने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए हैं जो पूरे मानवता के अस्तित्व के लिए खतरा बन सकते हैं. इसलिए, हम घड़ी को आगे बढ़ा रहे हैं."
कयामत की घड़ी क्या है?
कयामत की घड़ी केवल एक साधारण घड़ी नहीं है, बल्कि यह एक चेतावनी संकेत है, जो बताती है कि हम विनाश के कितने करीब हैं. यह चार प्रमुख रूपों में काम करती है:
कयामत की घड़ी जितनी आधी रात यानी 12 बजे के करीब होती है, उतना ही यह मानवता के खत्म होने का संकेत देती है.
किन कारणों से कयामत की घड़ी आगे बढ़ाई गई?
कयामत की घड़ी को आगे बढ़ाने के पीछे कई कारण होते हैं. 2025 में इसे 89 सेकंड्स तक लाने के प्रमुख कारण यह रहे:
कयामत की घड़ी को कैसे सेट किया जाता है?
हर साल, बुलेटिन ऑफ एटॉमिक साइंटिस्ट्स का एक विशेष बोर्ड घड़ी की समय सीमा को निर्धारित करता है. इस बोर्ड में एटॉमिक साइंस, जलवायु परिवर्तन और सिक्योरिटी एक्सपर्ट विशेषज्ञों सहित 10 नोबेल पुरस्कार विजेता भी शामिल होते हैं.
यह वैज्ञानिक और सिक्योरिटी एक्सपर्ट वर्तमान वैश्विक खतरों की स्थिति का आकलन करते हैं और फिर तय करते हैं कि घड़ी को आधी रात के करीब ले जाना है या दूर करना है. बुलेटिन ऑफ एटॉमिक साइंटिस्ट्स अपनी प्रक्रिया को एक डॉक्टर का किसी बीमारी का विश्लेषण करने की तरह मानता है.
वे विभिन्न डेटा, रिपोर्ट्स और परिस्थितियों का अध्ययन करते हैं और यह तय करते हैं कि अगर सरकारें और नागरिक इन खतरों को कम करने के लिए उचित कदम नहीं उठाते, तो इसका क्या परिणाम होगा.
क्या कयामत की घड़ी कभी पीछे गई है?
हां कुछ ऐतिहासिक घटनाओं के दौरान घड़ी को पीछे भी किया गया है.
सबसे बड़ी घटना 1991 में हुई थी, जब अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज एच. डब्ल्यू. बुश और सोवियत नेता मिखाइल गोर्बाचेव ने "स्ट्रेटेजिक आर्म्स रिडक्शन ट्रीटी" (START) पर साइन किए थे. इस संधि के तहत दोनों देशों ने अपने न्यूक्लियर हथियारों की संख्या कम करने का निर्णय लिया था. परिणामस्वरूप, कयामत की घड़ी को 7 सेकंड पीछे कर दिया गया, जिससे यह आधी रात से 17 मिनट पहले आ गई. यह अब तक का सबसे लंबा समय था जब घड़ी को आधी रात से दूर किया गया था.
इसके अलावा, 1953 में, जब अमेरिका और सोवियत संघ ने हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया, तो घड़ी को 2 मिनट पहले कर दिया गया था.
कयामत की घड़ी कब बनाई गई थी?
कयामत की घड़ी की शुरुआत 1947 में हुई थी, जब वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन, जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर और यूजीन रैबिनोविच सहित शिकागो यूनिवर्सिटी के दूसरे विद्वानों ने बुलेटिन ऑफ एटॉमिक साइंटिस्ट्स की स्थापना की. 1947 में, यह घड़ी 7 मिनट आधी रात से पहले सेट की गई थी. लेकिन 1949 में, जब सोवियत संघ ने अपना पहला न्यूक्लियर टेस्ट किया, तो इसे 3 मिनट पहले कर दिया गया. 2018 में, जलवायु परिवर्तन और वैश्विक परमाणु तनाव के कारण इसे 2 मिनट पहले कर दिया गया.
क्या हमें कयामत की घड़ी से डरना चाहिए?
कयामत की घड़ी कोई वास्तविक घड़ी नहीं है, बल्कि यह एक प्रतीकात्मक चेतावनी है. इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को यह समझाना है कि अगर हम न्यूक्लियर हथियारों, जलवायु परिवर्तन, महामारी और तकनीकी खतरों को कंट्रोल नहीं करते, तो मानवता खतरे में आ सकती है.
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