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उज्बेकिस्तान के ऐतिहासिक शहर Samarkand के बारे में, इस बार यहां हो रही है SCO की बैठक

शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की 22वीं बैठक ऐतिहासिक शहर समरकंद में 15 और16 सितंबर को हो रही है. समरकंद, उज्बेकिस्तान के सबसे पुराने शहरों में से एक है. इस शहर का इस्लामिक रूट भी काफी गहरा है.

Samarkand, Uzbekistan. Samarkand, Uzbekistan.
हाइलाइट्स
  • समरकंद में हो रही है एससीओ की बैठक

  • पीएम मोदी भी बैठक में ह‍िस्सा लेने जा रहे हैं समरकंद

उज्बेकिस्तान के शहर समरकंद में 15 और 16 सितंबर को शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन यानी SCO की मीटिंग होने जा रही है. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस मीटिंग में शामिल होने वाले हैं.  इस दौरान पीएम मोदी की मुलाकात रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन से भी होगी. भारतीय विदेश मंत्रालय के मुताबिक पीएम मोदी दो द्विपक्षीय मुलाकातों के दौरान पहली मुलाकात रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ करेंगे, दूसरी मुलाकत उज्बेक राष्ट्रपति शावकत मिर्जियोयेव के साथ होगी.

हर साल होने वाली SCO की यह बैठक वैसे तो हर बार ही चर्चा का विषय बनती है. लेकिन इस बार SCO की मिटिंग उज्बेकिस्तान के जिस शहर में हो रही है वो शहर चर्चा में बना हुआ है. उज्बेक के इस शहर का नाम समरकंद है. ये शहर इस लिए भी खास हो जाता है क्योंकि मुगलिया सल्तनत के बीज इसी शहर से निकले थे, और आज जहां एक तरफ पीएम मोदी की छवि मुस्लिम विरोधी बनाए जाने की हो रही है तो वहीं दूसरी तरफ इस शहर को पीएम मोदी का बेसब्री से इंतजार है. 

समरकंद, उज़्बेक के सबसे पुराने शहरों में से एक है. चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में ये शहर माराकांडा के नाम से जाना जाता है, तब ये शहर सोग्डियाना की राजधानी हुआ करती थी. 329 ईसा पूर्व में सिकंदर ने इस शहर पर कब्जा कर लिया. आगे चल कर इस शहर पर मध्य एशियाई तुर्क, अरब, ईरान के समनिड्स के अलावा मंगोल को जीतने वाला चंगेज खान ने समरकंद को मध्य  एशिया का सबसे बड़ा आर्थिक और सांस्कृतिक केंद्र बना दिया.1500 में समरकंद को उज्बेकों ने जीत लिया, और बुखारा के खानटे का हिस्सा बना दिया. आगे चल कर 18वीं शताब्दी के दौर में इस शहर की लोकप्रियता कम होने लगी और 1720 से लेकर 1770 तक ये शहर खत्म होने के कगार पर आ खड़ा हुआ. 1857 में शहर समरकंद रूसी साम्राज्य की प्रांतीय राजधानी का हिस्सा बन गया. 1924 से लेकर 1936 तक शहर समरकंद उज़्बेक सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक की राजधानी थी.

तैमूर की राजधानी रहा है समरकंद

बतातें चलें कि रूसी सम्राजय का हिस्सा बनने के बाद इस शहर की कई ऊंची दीवारों और फाटकों को तोड़ दिया गया. इस शहर में आज भी 14वीं से 20वीं सदी के मध्य एशियाई वास्तुकला के कुछ बेहतरीन स्मारक मौजूद हैं. इस शहर में आज भी वो इमारतें मौजूद हैं जब समरकंद तैमूर की राजधानी थी. इस शहर में ही बॉबी-खानोम (1399-1404) की मस्जिद है, ये वो इमारात है जिसे तैमूर की चीनी पत्नी ने बनवाया था. इस शहर में तैमूर का मकबरा, गोरा-ए अमीर मकबरा आज भी मौजूद है इस मकबरे को 1405 में बनवाया गया था. इस शहर में आज भी तैमूर के पोते के हाथों बनवाया गए की इस्लामिक मदरसे हैं. 

समरकंद की प्राचीन इमारतों की सबसे बड़ी खासियत इन इमारतों के शानदार दरवाजे, रंगीन गुंबद, और माजोलिका, मोज़ेक, संगमरमर और सोने से लिपटी बाहरी सजावट है. बता दें कि इस ऐतिहासिक शहर को 2001 में यूनेस्को की विश्व धरोहर में भी शामिल किया जा चुका है. 

उजबेक का शहर समरकंद चीन और भारत के व्यापारिक शहरों का जंक्शन  भी माना जाता था, बता दें कि प्राचीन और मध्ययुगीन काल में समरकंद का चीन और भारत के बीच व्यावसायिक महत्व काफी ज्यादा था. 1888 में रेलवे की शुरूआत के साथ, समरकंद  शराब, सूखे और ताजे फल, कपास, चावल, रेशम और चमड़े के निर्यात का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया. हालिया दौर में  शहर का उद्योग मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है, जिसमें कपास की जुताई, रेशम की कताई और बुनाई, फलों की डिब्बाबंदी, और शराब, कपड़े, चमड़े और जूते और तंबाकू की पैदावारी की जाती है. इसी शहर में ट्रैक्टर और ऑटोमोबाइल पार्ट्स  बड़े पैमाने पर बनाए जाते हैं, इसके अलावा समरकंद मध्य एशिया से गुजरने वाले रेशम के कारोबार का सबसे बिजनेस एरिया माना जाता है.


बात इस्लामिक रूट की 

बता दें कि अबू अब्द अल्लाह मुहम्मद अल-बुखारी जिन्हें  इमाम अल बुखारी या इमाम बुखारी कहा जाता है, एक इस्लामिक विद्वान थे, अल-बुखारी का जिक्र कुरान बुखारी शरीफ के नाम से है, ये हदीस सुन्नी मुस्लामानों की सबसे मशहूर हदीसों में से एक मानी गयी है. बता दें कि अल बुखारी  बुखारी शरीफ को उजबेक के शहर बुखारा में लिखा था. शहर बुखारा समरकंद के पास का एक छोटा सा शहर है. 

इस शहर पर आठवीं शताब्दी की शुरुआत में मुस्लिम (मुगलों) ने विजय हासिल कर ली थी. 9वीं शताब्दी तक ये शहर  मुस्लिम शिक्षा का सबसे बड़ा केन्द्र बन गया. तब यहां पर ईरानी मूल के लोग रहते थे. 

समरकंद पर चंगेज खान और उसकी मंगोल सेनाओं ने आक्रमण किया और 1220 में इस क्षेत्र पर जीत हासिल की, तब कई  ऐतिहासिक वास्तुकला खंडहर में बदल गई, और केवल दीवारों के टुकड़े रह गए.