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कौन हैं श्रुति, जिन्होंने गृहयुद्ध से जूझ रहे सूडान में लगाई कला प्रदर्शनी

आज, दक्षिण सूडान दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है, जहां 80 लाख लोग यानी करीब दो तिहाई आबादी मानवीय सहायता पर निर्भर है.संयुक्त राष्ट्र बाल कोष यानी यूनिसेफ ने भी ये चेतावनी दी थी कि दक्षिण सूडान अब तक का सबसे बुरा मानवीय संकट झेल रहा है. यूनिसेफ ने दक्षिण सूडान की दसवीं वर्षगांठ से पहले प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा था कि अकेले पांच साल से कम उम्र के करीब तीन लाख बच्चों के सामने भुखमरी का खतरा है.

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गुजरात की  श्रुति उपाध्याय इन दिनों गृहयुद्ध से जूझ रहे दक्षिण सूडान में शांति लाने की कोशिश में जुटी हुई हैं. उन्होंने इस काम के लिए अपनी कला जरिया बनाया है, श्रुति उपाध्याय ने अपनी इस पहल का नाम नूर -लेहुमोन रखा है. जिसका मतलब मानवता का उजियारा होता है. इसका मकसद दक्षिण सूडान के अलगल- अलग समाज के लोगों को संवाद के जरिए एक करना है , ताकि शातिं स्थापित करने में मदद मिल सके.  नूर -ले -हुमोन प्रदर्शनी का टाइटल था, जो दक्षिण सूडान की राजधानी में पहली बार लगाई गई. 

इस प्रदर्शनी को इतनी सफलता मिली कि अब यह प्रदर्शनी अगले 10 महीने तक चलेगी. बता दें कि श्रुति बतौर जेंडर स्पेशलिस् यूनाइटेड नेशनल पॉपुलेशन फंड के साथ मलकर काम कर रही हैं. दक्षिण सूडान के अलावा केन्या , युगांडा और रवांडा के अलग-अलग क्षेत्रों में 32 कलाकार इस मंच पर आए हैं. इन सभी कलाकारों ने महिला-पुरुष समानता ही नहीं , मानविय समानता का भी संदेश दिया है.  

आज, दक्षिण सूडान दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है, जहां 80 लाख लोग यानी करीब दो तिहाई आबादी मानवीय सहायता पर निर्भर है.संयुक्त राष्ट्र बाल कोष यानी यूनिसेफ ने भी ये चेतावनी दी थी कि दक्षिण सूडान सबसे बुरा मानवीय संकट झेल रहा है जो अब तक सबसे खतरनाक है. यूनिसेफ ने दक्षिण सूडान की दसवीं वर्षगांठ से पहले प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा था  कि अकेले पांच साल से कम उम्र के करीब तीन लाख बच्चों के सामने भुखमरी का खतरा है. 

आजादी के बाद जातीय संघर्ष

9 जुलाई 2011 को सूडान से अलग हुए दक्षिण सूडान की आजादी के बाद का उत्साह बहुत छोटा था. डेढ़ साल से भी कम समय में, संसाधन संपन्न यह देश खतरनाक गृहयुद्ध में फंस गया जिसने करीब चार हजार लोगों की जान ले ली.अलग -अलग रिपोर्ट ये दावा करती हैं कि  "देश में अलग-अलग जातीय समूहों के नागरिकों के खिलाफ नरसंहार जैसी हिंसा संयुक्त राष्ट्र के सबसे युवा सदस्य राज्य के सामने प्रमुख मुद्दों में से एक है. वर्चस्व  की बनाए रखने की भावना जातीय वर्चस्व के रूप में बदल गई.