अमेरिका में एक बार फिर बड़ा बैंकिंग सकंट खड़ा हो सकता है. अमेरिकी रेगुलेटर ने प्रमुख बैंकों में से एक सिलिकॉन वैली बैंक को बंद करने का आदेश दिया है. CNBC की रिपोर्ट के मुताबिक कैलिफोर्निया के डिपॉर्टमेंट ऑफ फाइनेंशियल प्रोटेक्शन और इनोवेशन की ओर से इस बैंक को बंद करने का आदेश दिया गया है. अचानक आए इस क्राइसेस की वजह से वैश्विक बाजारों को रोक दिया गया है. कंपनियों और निवेशकों से अरबों डॉलर इसमें फंसे हैं. हालांकि फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस कॉरपोरेशन (FDIC) को बैंक का रिसीवर नियुक्त किया गया है. ग्राहकों के पैसों को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी FDIC को दी गई है.
भारतीय शेयर बाजार पर भी दिखा असर
एफडीआईसी से बीमित सिलिकॉन वैली बैंक इस साल डूबने वाला पहला बैंक है. इससे पहले, एफडीआईसी से बीमित आखिरी बैंक अक्टूबर 2020 में डूबा था, जब अलमेना स्टेट बैंक पर ताला लगा दिया गया था. FDIC ने कहा कि सिलिकॉन वैली बैंक का मुख्य कार्यालय और सभी शाखाएं 13 मार्च को फिर से खुलेंगी और सभी बीमित जमाकर्ताओं को सोमवार सुबह तक अपनी बीमाकृत जमा राशि तक पूरी पहुंच होगी. एसवीबी के शेयरों में शुक्रवार को बाजार पूर्व कारोबार में 66 फीसदी गिरावट आ गई. एसवीबी ने नियामकीय कार्रवाई के बारे में कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. इस वजह से बैंकिंग सेक्टर के बेंचमार्क स्टॉक इंडेक्स में अचानक 8.1% गिरावट आ गई. ये गिरावट पिछले तीन सालों में एक दिन में आई सबसे बड़ी गिरावट है. वहीं इसका असर भारतीय शेयर बाजार पर भी देखने को मिला. शुक्रवार को भारतीय शेयर बाजार लाल निशान के साथ बंद हुआ.
क्यों बंद हुआ बैंक?
बैंक की वित्तीय हालात पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं जिसकी वजह से इसे बंद करने का फैसला किया गया. सिलिकॉन वैली बैंक अमेरिका का 16वां सबसे बड़ा बैंक है. बैंक के पास 210 अरब डॉलर से अधिक के एसेट्स हैं. अमेरिका के कई शहरों में इसके ब्रांच हैं. बहुत ज्यादा इंटरेस्ट बढ़ जाने के कारण हालात बिगड़ते गए जिसकी वजह से बैंक को बंद करना पड़ा. सिलिकॉन वैली बैंक टेक कंपनियों और नए वेंचर्स को फाइनेंशियल सपोर्ट देता है और इसका करीब 44 फीसदी कारोबार टेक और हेल्थकेयर कंपनियों के साथ है. अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ओर से ब्याज दरों में लगातार हो रही बढ़ोतरी के चलते इन सेक्टर्स पर बुरा असर पड़ा है. अब निवेशक भी इसमें इन्वेस्ट करने से कतरा रहे हैं, जिसका निगेटिव असर सिलिकॉन वैली बैंक के कारोबार पर भी पड़ा. जिन कंपनियों को बैंक ने कर्ज दिया था, उन्होंने कर्ज की वापसी नहीं की और बैंक पर वित्तिय संकट आ गया.
इससे पहले भी आ चुका है संकट
अब आप सोच रहे होंगे कि हम क्यों दोबारा आर्थिक संकट की बात कर रहे हैं. दरअसल इससे पहले साल 2008 में अमेरिका को बैंकिंग फर्म लेहमन ब्रदर्स के चलते बैंकिंग के सबसे बड़े क्राइसेस से गुजरना पड़ा था. इस वजह से पूरी दुनिया में मंदी का असर देखने को मिला. लेहमन ब्रदर्श समेत अमेरिका के कई बैंकों ने उस दौर पर खूब लोन बांटे थे. साल 2001 से 2006 के बीच अमेरिकी रियल एस्टेट कंपनियों को जमकर लोन दिए गए. उस वक्त अमेरिकी रियल एस्टेट बाजार बुलंदियों पर था जिस वजह से कंपनियों को उनके एसेट्स से ज्यादा लोन दे दिए. मंदी आई, कंपनियां बर्बाद होने लगी और बैंकों का कर्ज डूबने लगा. साल 2008 में लेहमन ब्रदर्स ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया.