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21 साल से कोमा में है ‘Sleeping Prince’, फिर भी नहीं टूटी पिता की आस! 36वें जन्मदिन पर दुआओं से भर गया इंटरनेट

किंग अब्दुलअज़ीज़ मेडिकल सिटी, रियाद का वह अस्पताल जहां अल-वलीद का इलाज चल रहा है, वहां एक पूरी टीम केवल इसी एक मरीज की देखरेख के लिए तैनात है. हर दिन की तरह उनका बिस्तर ठीक से लगाया जाता है, उनके शरीर की मालिश की जाती है, दवाइयां दी जाती हैं, मॉनिटरिंग होती है. 

Sleeping Prince (Photo/X) Sleeping Prince (Photo/X)

सऊदी अरब का एक शहजादा, जो पिछले 21 सालों से एक अस्पताल के बिस्तर पर है, न बोल सकता है, न सुन सकता है… न मुस्कुरा सकता है, न ही रो सकता है. लेकिन वो ‘मरा’ नहीं है. वो जिंदा है. सांसें चल रही हैं. उसका दिल धड़क रहा है. डॉक्टर हैरान हैं, वैज्ञानिक चुप हैं, लेकिन उसका पिता- प्रिंस खालिद बिन तलाल- अब भी हर दिन उसके सिरहाने बैठे रहते हैं, मानो कह रहे हों, “बेटा, मैं आज भी तेरा इंतजार कर रहा हूं.”

ये कहानी है सऊदी अरब के प्रिंस अल-वलीद बिन खालिद बिन तलाल की, जिसे दुनिया अब ‘Sleeping Prince’ के नाम से जानती है. और 18 अप्रैल 2025 को, इस ‘सोते हुए शहजादे’ ने अपना 36वां जन्मदिन भी मना लिया… या यूं कहें कि दुनिया ने उसकी जिंदगी की जंग को सलाम किया.

हादसा जिसने जिंदगी को ‘पॉज’ पर डाल दिया
साल था 2005, जब प्रिंस अल-वलीद लंदन की एक मिलिट्री कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे. जवान खून, रॉयल लाइफस्टाइल और सपनों से भरा भविष्य. लेकिन एक कार एक्सिडेंट ने सबकुछ छीन लिया. सिर में गंभीर चोट, ब्रेन हैमरेज, और उसके बाद कोमा.

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लेकिन पिता ने कहा-"नहीं, मेरा बेटा लौटेगा..."

दुनिया के डॉक्टर हारे, लेकिन पिता का भरोसा नहीं
पिछले 21 सालों में, अल-वलीद के इलाज के लिए अमेरिका और स्पेन से दिग्गज डॉक्टर बुलाए गए. हर बार उम्मीद बंधी, फिर टूटी. शरीर में थोड़ी-बहुत हलचल देखी गई- कभी उंगली हिली, तो कभी सिर थोड़ा सा घूमा. लेकिन सचेत अवस्था में लौटने के कोई संकेत नहीं मिले.

फिर भी उनके पिता ने न उनका वेंटिलेटर हटाने दिया, न ही उनकी देखरेख में कोई कसर छोड़ी. प्रिंस खालिद बिन तलाल ने एक बार कहा था, “अगर खुदा चाहता कि वो उस हादसे में मर जाए, तो कब का चला गया होता… लेकिन उसने आज तक उसकी रूह को थामा हुआ है. वह उसे जरूर ठीक करेगा.”

36वें जन्मदिन पर इंटरनेट पर बही दुआओं की बाढ़
इस साल 18 अप्रैल को, जब प्रिंस अल-वलीद ने जीवन के 36 साल पूरे किए, तो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पहले ट्विटर) पर लोग टूट पड़े दुआओं और भावनाओं के साथ. एक यूजर ने लिखा, “हे खुदा, अल-वलीद को और हर बीमार मुसलमान को शिफा दे.” वहीं किसी ने इसे “सब्र का चमत्कार” कहा.

प्रिंसेस रीमा बिन्त तलाल, जो अल-वलीद की रिश्तेदार हैं, उन्होंने शहजादे की बचपन की तस्वीरें शेयर कीं और लिखा, “21 साल से तू हमारे दिलों में जिंदा है, और हम हर रोज़ तेरे लिए दुआ करते हैं. हे अल्लाह, अपने बंदे को शिफा दे. तेरे सिवा उसके दर्द को कोई नहीं जानता.”

रियाद के अस्पताल में आज भी जिंदा है उम्मीद
किंग अब्दुलअज़ीज़ मेडिकल सिटी, रियाद का वह अस्पताल जहां अल-वलीद का इलाज चल रहा है, वहां एक पूरी टीम केवल इसी एक मरीज की देखरेख के लिए तैनात है. हर दिन की तरह उनका बिस्तर ठीक से लगाया जाता है, उनके शरीर की मालिश की जाती है, दवाइयां दी जाती हैं, मॉनिटरिंग होती है. 

क्या कभी होगा चमत्कार?
वैज्ञानिकों का मानना है कि इतने लंबे समय तक कोमा में रहने के बाद किसी का सामान्य जीवन में लौट आना बेहद मुश्किल है. लेकिन साइंस भी मानता है-“जहां चाह होती है, वहां राह होती है.”

और प्रिंस अल-वलीद का मामला, सिर्फ एक मेडिकल केस नहीं है- ये इंसानी जज्बात, पिता की मोहब्बत और उम्मीद की मिसाल है.

दरअसल, यह कहानी हर उस माता-पिता की है, जो अपने बीमार बच्चों को लेकर मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारों में सिर झुकाते हैं. हर उस शख्स की है, जो डॉक्टर की “अब कोई उम्मीद नहीं बची” वाली लाइन के बावजूद, हर सुबह फिर से उम्मीद लेकर उठता है.