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Japan Second World War Atom Bomb: जापान में फटा सेकेंड वर्ल्ड वॉर का बम.... जानिए Fat Man और Little Boy एटम बम की कहानी, जिन्होंने कुछ सेकेंड में हिरोशिमा और नागासाकी को कर दिया था तबाह

Little Boy and Fat Man Atom Bomb: जापान के एयरपोर्ट में सेकेंड वर्ल्ड वॉर का बम (Second World War Bomb Japan) फटा है. अमेरिका ने सेकेंड वर्ल्ड वॉर में जापान के हिरोशिमा (Hiroshima) और नागासाकी (Nagasaki) पर दो एटम बम गिराए थे. इन दोनों एटम बम के नाम हैं लिटिल बॉय (Little Boy) और फैट मैन(Fat Man).

Little Boy and Fat Man Atom Bomb (Photo Credit: AFP) Little Boy and Fat Man Atom Bomb (Photo Credit: AFP)
हाइलाइट्स
  • अमेरिका ने इन दोनों एटम बम को बनाया था

  • बम बनाने के कार्यक्रम को मैनहैट्टन प्रोजेक्ट नाम दिया गया

  • ओपनेहाइमर को इस बम को बनाने का जिम्मा दिया गया था

Little Boy and Fat Man Atom Bomb: जापान में 80 से ज्यादा फ्लाइट्स को कैंसिल करना पड़ा. इसकी वजह है जापान के एक एयरपोर्ट (Second World War Bomb Japan)  पर धमाके का होना. ये घटना जापान के मियाजाकी एयरपोर्ट पर हुई है. मियाजाकी एयरपोर्ट पर सेकेंड वर्ल्ड वॉर का एक बम फटा है जिसे अमेरिका ने इस्तेमाल किया था.

मियाजाकी एयरपोर्ट पर फटा अमेरिका का ये बम 500 पाउंड वजनी था. ये बम जमीन के अंदर दबा हुआ था. इतने साल बाद अब बम का धमाका हुआ है. साल 2023 में जापान में 2348 बमों को डिफ्यूज किया था. 

मियाजाकी एयरपोर्ट 1943 में बना था. 1945 में अमेरिका ने बम से जापान पर हमला किया था.  विश्व युद्ध के बाद इस एयरपोर्ट को अच्छे से बनाया गया था. हो सकता है कि उसी दौरान कुछ बम जमीन के नीचे दब गए हों.

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1945 में सेकेंड वर्ल्ड वॉर में जर्मनी ने अपनी हार मान ली थी. जापान हथियार डालने से इंकार कर रहा था. तब अमेरिका ने जापान के दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी पर दो एटम बम गिराए थे. इस विस्फोट में लाखों लोगों की जान गई थी. अमेरिका के इन दोनों बम के नाम थे फैट मैन (Fat Man Atom Bomb) और लिटिल बॉय (Little Boy). आइए अमेरिका के इन दोनों बम की कहानी जानते हैं.

कैसे बना बम?
साल 1939 में जर्मनी ने पौलेंड पर हमला कर दिया. इस हमले से ही सेकेंड वर्ल्ड वॉर (Second World War 1945) शुरू हो गया था. बाद में इस युद्ध में दुनिया भर के कई देश शामिल हो गए. इस युद्ध में करोड़ों लोगों की जान गई.  

अक्तूबर 1941 में अमेरिकी प्रेसीडेंट फ्रेंकलिन रूजवेल्ट में एटम बम बनाने की मंजूरी दे दी. बम बनाने के प्रोग्राम को मैनहट्टन प्रोजेक्ट नाम दिया गया. जनरल लेस्ली ग्रोव्स को मैनहट्टन प्रोजेक्ट (Manhattan Project) का  डायरेक्टर बनाया गया. बम बनाने का जिम्मा जे. रॉबर्ट ओपेनहाइमर (J. Robert Oppenheimer) को दिया गया.

कोड नेम ट्रिनिटी
इसके लिए मैक्सको के लॉस अलामोस में रिसर्च लैब बनाई गई. तीन साल और हजारों लोगों की मेहनत के बाद पहला एटम बना. इस बम का नाम लिटिल बॉय रखा गया. इसके बाद एक और एटम बम बनाया गया.

Little Boy Bomb

यूएस मिलिट्री का मानना था कि सेकेंड वर्ल्ड वॉर को खत्म करने के लिए एक से ज्यादा एटम बम की जरूरत पड़ेगी. इसी वजह से एक और एटम बम बनाया गया. इसके बाद एटम बम के टेस्ट करने की बारी आई.

लिटिल बॉय बम पहले बना था लेकिन टेस्ट किया गया फैट मैन का. लिटिल बॉय का परीक्षण नहीं किया गया.  बम का परीक्षण 16 जुलाई 1945 को किया गया. ओपेनहाइमर ने इस टेस्ट को ट्रिनिटी कोड नेम दिया गया. टेस्ट सफल हुआ. इसके झटके 160 किमी. दूर तक महसूस किए गए. 

फैट मैन के नाम की कहानी
फैट मैन एक प्लूटोनियम बम था. इस एटम बम का टेस्ट किया गया था. इस बम को नागासाकी पर गिराया गया था. फैटमैन का भार 4,70 किलोग्राम था. इसे बनाने में करीब 6.4 किलोग्राम प्लूटोनियम का इस्तेमाल किया गया था. इस वजह से इसे लिटिल बॉय से ज्यादा खतरनाक था.

इस एटम बम को एकदम सीक्रेट रखा गया था. इस बारे में अमेरिका के उपराष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन तक को भनक नहीं लगी थी. फैट मैन बम का नाम मैनहैट्ट्न प्रोजेक्ट से जुड़े रॉबर्ट सेरबर ने रखा था. सेरबर ने ये नाम द माल्टीज फैल्कन नॉवेल के सिडनी ग्रीन स्ट्रीट के कैरेक्टर फैट मैन से लिया.

लिटिल बॉय बम
लिटिल बॉय बम बी-29 सुपरफॉर्टेस बम था. लिटिल बॉय बम एक यूरेनियम बम था. इस बम का वजन लगभग 4,400 किलो था और 10 फीट लंबा था. इस बम को बनाने में 127 अरब से ज्यादा का खर्च आया था.

Fat man

इस बम की शक्ति 12500 टीएनटी के बराबर थी. इसे बम को बनाने में यूरेनियम-235 का इस्तेमाल हुआ था. लिटिल बॉय बम के नाम के पीछ एक कहानी है.  लिटिल बॉय इस बम का एक कोड नेम था. इसका ये नाम इसलिए रखा गया क्योंकि ये साइज में छोटा था. 

कैसे चुने शहर?
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रूमैन जापान की हरकतों से परेशान थे. जापान किसी भी हालत में सरेंडर करने को राजी नहीं था. तब जापान पर एटम बम गिराने की योजना बनाई गई. इसके लिए चार शहरों की लिस्ट बनाई गई.

इस लिस्ट में पहले नागासाकी का नाम नहीं था. इन चार शहरों में कोकोरा, क्यूटो, निईगाता और हिरोशामा थे. क्योटो जापान के सबसे पुराने शहरों में से एक है. इस शहर में कई पुराने मंदिर थे. अमेरिका के वॉर मिनिस्टर स्टिम्सन ने क्योटो में हनीमून मनाया था.

वॉर मिनिस्टर स्टिम्सन नहीं चाहते थे कि उनकी हनीमून वाली जगह को तबाह किया जाए. तब उस लिस्ट से क्योटो को हटा दिया गया. उसकी जगह नागासाकी को शामिल किया गया. बाद में बम गिराने के लिए दो शहरों को चुना गया, हिरोशिमा और नागासाकी.

कितना हुआ असर?
6 अगस्त 1945 को सुबह-सुबह जापान में लोग अपने रोज के काम में लगे थे. सुबह 8.15 मिनट पर हिरोशिमा में बंदूक जैसा दिखने वाला बी-29 बॉम्बर्स से गिराया गया. एनोलो गे से कुछ ही पल में छोटा-सा एटम बम हिरोशिमा में गिरा.  

Hiroshima

कुछ सेकेंड में ही लिटिल बॉय ने हिरोशिमा को तबाह कर दिया. लिटिल बॉय के हमले से हिरोशिमा में 60 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. इस बम का असर हिरोशिमा पर कई दशकों तक देखा गया. जब ये बम गिरा तो टेंपरेचर अनाकर 10 लाख सेंटीग्रेड पहुंच गया. बाद में 1951 में लिटिल बॉय की सभी यूनिट्स को खत्म कर दिया गया.

श्मशान बना शहर
हिरोशिमा पर हमले के बाद भी जापान ने सरेंडर करने से इंकार दिया. अमेरिका ने जापान के हौंसले को पस्त करने के लिए एक और बम गिराया. हिरोशिमा पर हमले के 3 दिन बाद 9 अगस्त 1945 को नागासाकी में फैट मैन एटम बम गिराया गया.

फैट मैन अपने टारगेट से कुछ किमी. दूर गिरा. इसके बावजूद इसका असर 500 किमी. के दायरे में हुआ. इसने पल भर में नागासाकी को राख के ढेर में तब्दील कर दिया. इस हमले में 80 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. इस हमले के बाद जापान ने बिना किसी शर्त के सरेंडर कर दिया. इस तरह से सेकेंड वर्ल्ड वॉर खत्म हो गया.

थिन मैन बम
जापान पर हमले के कुछ दिन बाद ओपेनहाइमर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रूमैन से मिले. उन्होंने प्रेसीडेंट से कहा- मेरे हाथों पर खून लगा है. लिटिल बॉय और फैट मैन से पहले थिन मैन बम बनाया गया था.

थिन मैन एटम बम बनाने का असफल प्रयास था. इसका नाम अमेरिकी राष्ट्रपित रूजवेल्ट से लिया गया था. हिरोशिमा और नागासाकी पर हमले के बाद कभी भी इन बम का इस्तेमाल नहीं किया गया. जापान पर हमले के बाद बाद से ही एटम युग शुरू हो गया था.