
तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान यानी टीटीपी (TTP) और बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी यानी बीएलए (BLA) ने पाकिस्तानी (Pakistan) को भारी नुकसान पहुंचाया है. अब ऊपर से अफगानिस्तानी तालिबान (Taliban) ने पाकिस्तान पर कहर बरपाना शुरू कर दिया है.
अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच जंग की लकीर खींच चुकी है. डूरंड लाइन के उस पार तालिबानी लड़ाके और इधर पाकिस्तानी फौज तैयार है. तालिबानी लड़ाके जोश में है, क्योंकि उनका दावा है कि उन्होंने पाकिस्तानी सेना की कई चौकियों पर कब्जा कर लिया है. पाकिस्तान का दावा है कि उसने रणनीति के तहत अपनी चौकियों को खाली किया है. आइए जानते हैं आखिर तालिबान और पाकिस्तान में क्यों जंग की नौबत आ गई है.
क्यों बने जंग जैसे हालात
अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच 2640 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा का नाम डूरंड रेखा है. डूरंड लाइन पर जंग जैसे हालात इसलिए बने क्योंकि कुछ दिन पहले पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के चार इलाकों पर एयर स्ट्राइक की थी. पाकिस्तानी हमले में करीब 50 लोग मारे गए थे. पाकिस्तान ने दावा किया कि उसने टीटीपी यानी तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान के आतंकियों को निशाना बनाया लेकिन इसे खुद पर हमला मानते हुए तालिबान ने बदला लेने का ऐलान किया है.
गुरुवार रात पाकिस्तानी सेना ने डूरंड लाइन पर खोश्त प्रांत के दाबगी इलाके पर हमला किया. ये हमला रात करीब डेढ़ बजे किया गया. इसमें पाकिस्तानी सेना ने तालिबानी सेना के ठिकानों पर बेहिसाब रॉकेट दागे. इसके बाद तालिबानी सेना ने भी पलटवार किया और खबर के मुताबिक सुबह 5 बजे तक दोनों के बीच गोलाबारी जारी रही. जानकार मान रहे हैं कि हालात ऐसे रहे तो जल्दी ही बकायदा जंग शुरू हो सकती है.
पाकिस्तानी सेना झेल रही फजीहत
तालिबान ने पाकिस्तान के उन इलाकों पर हमला किया है, जहां से अफगानिस्तान पर हमले किए गए थे. तालिबान का दावा है कि उसने इस हमले में 19 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया. उधर, तालिबान के हाथों अपनी सैन्य चौकियां गंवाकर पाकिस्तानी सेना फजीहत झेल रही है. इसलिए अब वो ताबड़तोड़ हमले की कार्रवाई कर रही है. शहबाज सरकार की मजबूरी ये है कि यदि पलटवार नहीं किया तो तालिबान उसके इलाकों पर कब्जा कर लेगा और यदि तालिबान पर हमले किए तो पाकिस्तान लबी लड़ाई में उलझ सकता है. दोनों ही सूरत में पाकिस्तान का बड़ा नुकसान होना तय है. पाकिस्तान ने तालिबान से निपटने के लिए वाखान प्लान बनाया है.
...तो सीधी लड़ाई हो जाएगी शुरू
पाकिस्तान ने तालिबान को कमजोर करने के लिए प्लान बी बनाया है. उसका दूसरा प्लान दुश्मन का दुश्मन दोस्त से प्रेरित है. खबर है कि पाकिस्तानी सेना तालिबान को कमजोर करने के लिए अफगानिस्तान के वाखान कॉरिडोर पर कब्जा करने की योजना बना रही है, जिसे अफगानिस्तान की चिकिन नेक कहा जाता है. यदि यहां पाकिस्तान का कब्जा हो जाए तो उसकी पहुंच सीधे ताजिकिस्तान तक हो जाएगी. ताजिकिस्तान में नॉर्दन अलाइंस वर्षों से तालिबान का विरोधी रहा है और पाकिस्तान की रणनीति दुश्मन के दुश्मन को दोस्त बनाने की है.
इस प्लान को अंजाम देने के लिए आईएसआई चीफ ताजिकिस्तान पहुंच गए हैं. ताजिकिस्तान से करीबी बढ़ाने के लिए पाकिस्तान उससे बिजली खरीदने की योजना बना रहा है. ये बिजली जिस रास्ते से आएगा वो वाखान कॉरिडोर है, जो कि अफगानिस्तान का हिस्सा है. वाखान कॉरिडोर पर पाकिस्तान की तरफ से कब्जे की खबरें उसकी सेना फैला रही है. वाखान कॉरिडोर के जरिए अफगानिस्तान की सीमा चीन से मिलती है. पाकिस्तान की तरफ से थ्योरी दी जा रही है कि तालिबान को सबक सिखाने के लिए अब पाकिस्तान की सेना इस हिस्से पर कब्जा कर सकती है. इससे उसकी पहुंच तजाकिस्तान तक हो जाएगी. यदि ऐसा हुआ तो फिर पाकिस्तान और तालिबान में सीधी लड़ाई शुरू हो सकती है.
तालिबान के गठन में पाकिस्तान ने निभाई थी बड़ी भूमिका
तालिबान का गठन साल 1994 में अफगानिस्तान के कंधार में हुआ. इसे बनाने और मजबूत करने में पाकिस्तान ने बड़ी भूमिका निभाई. 1990 के दशक के मध्य में अपनी स्थापना के बाद से तालिबान, जिसे तब सोवियत समर्थित शासन को अस्थिर करने के लिए पाला गया था को पाकिस्तान से महत्वपूर्ण समर्थन और सहायता मिली. पाकिस्तान की आईएसआई ने दशकों तक तालिबान के गठन और उसे बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. आईएसआई ने तालिबान को आर्थिक और सैनिक सहायता 1996 में दी.
पाकिस्तान उन तीन देशों में से एक था, जिन्होंने तालिबान के इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान को एक वैध सरकार के रूप में मान्यता दी थी. तालिबान ने शुरुआत में वादा किया था कि वह शांति और सुरक्षा के लिए काम करेगा और अपने सख्त इस्लामी कानून लागू करेगा. इस वादे के कारण तालिबान को शुरुआत में कुछ समर्थन भी मिला लेकिन बीतते वक्त के साथ धीरे-धीरे उनका असली चेहरा सामने आने लगा. दक्षिण-पश्चिमी अफगानिस्तान से तालिबान ने तेजी से अपना प्रभाव बढ़ाया. सितंबर 1995 में तालिबान ने ईरान की सीमा से लगे हेरात प्रांत पर कब्जा कर लिया. ठीक एक साल बाद, तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा जमा लिया और राष्ट्रपति बुरहानुद्दीन रब्बानी के शासन को उखाड़ फेंका.
पाकिस्तान ने तालिबान की सरकार को दी थी मान्यता
रब्बानी अफगान मुजाहिदीन के संस्थापकों में से एक थे, जिन्होंने सोवियत कब्जे का विरोध किया था. 1998 तक तालिबान ने अफगानिस्तान के लगभग 90% हिस्से को अपने कंट्रोल में ले लिया. तालिबान ने अपने शासन में कठोर कानून लागू किए. महिलाओं को शिक्षा से दूर कर दिया और सार्वजनिक रूप से कठोर सजा दी जाने लगी. 2001 में बामियान के बुद्ध प्रतिमाओं को तोड़ना तालिबान के क्रूर शासन का एक बड़ा उदाहरण था, जिसने दुनिया के सामने तालिबान को पूरी तरह से एक्सपोज कर दिया.
पाकिस्तान और तालिबान का रिश्ता पाकिस्तान ने 1996 में तालिबान की सरकार को मान्यता दी और उसे समर्थन दिया. लेकिन आज वही तालिबान पाकिस्तान के लिए सिरदर्द बन चुका है. अब अफगानिस्तान में सत्ता पर काबिज होने के बाद से पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में तालिबानी हमले तेज हो गए हैं. पाकिस्तान ने बार-बार इस बात से इनकार किया है कि वह तालिबान को स्थापित करने में शामिल रहा है. लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि शुरू में आंदोलन में शामिल होने वाले कई अफगानों ने पाकिस्तान के मदरसों में शिक्षा प्राप्त की थी.
जंग की असली शुरुआत हुई लाल मस्जिद ऑपरेशन से
पाकिस्तान सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के साथ उन तीन देशों में से एक था, जिसने अफगानिस्तान में पहली बार सत्ता में आने पर तालिबान को मान्यता दी थी. इसके साथ ही पाकिस्तान अफगानिस्तान के साथ राजनयिक संबंध तोड़ने वाला अंतिम देश भी था. लाल मस्जिद ऑपरेशन जिससे हुई इस जंग की शुरुआत तालिबान और पाकिस्तान के बीच तनाव या फिर कह सकते हैं जंग की असली शुरुआत 2007 में लाल मस्जिद ऑपरेशन से हुई.
इस्लामाबाद स्थित लाल मस्जिद उस समय कट्टरपंथी इस्लामिक गतिविधियों के केंद्र में थी. यहां से आतंकी संगठनों को समर्थन मिलता था. 2007 में लाल मस्जिद के छात्रों ने इस्लामाबाद के एक मसाज सेंटर पर हमला कर वहां काम करने वाले नौ लोगों का अपहरण कर लिया. इसके बाद पाकिस्तान की सेना ने लाल मस्जिद को चारों ओर से घेर लिया.
ऑपरेशन साइलेंस किया शुरू
3 जुलाई 2007 को पाक सेना ने 'ऑपरेशन साइलेंस' शुरू किया. मस्जिद के अंदर से आतंकियों ने फायरिंग शुरू कर दी और सरकारी इमारतों में आग लगा दी. यह खून खराबा 7 जुलाई को तब और बढ़ गया जब मस्जिद के अंदर से एक स्नाइपर ने सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट कर्नल हारून इस्लाम को गोली मार दी. इस ऑपरेशन में 100 से ज्यादा लोग मारे गए, जिनमें सेना के जवान और मस्जिद में बैठे आतंकी शामिल थे.
लाल मस्जिद ऑपरेशन के बाद पाकिस्तान में इस्लामी कट्टरपंथियों ने तत्कालिन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. इसके बाद पाकिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) का जन्म हुआ, जिसने पाकिस्तान में आतंकी हमलों की झड़ी लगा दी. लाल मस्जिद ऑपरेशन के बाद के एक साल में पाकिस्तान में 88 बम धमाके हुए, जिनमें 1,100 से अधिक लोग मारे गए और 3,200 से ज्यादा घायल हुए. बढ़ते दवाब के कारण परवेज मुशर्रफ को इस्तीफा देना पड़ा.
आज की स्थिति
अमेरिका के अफगानिस्तान छोड़ते ही तालिबान ने अगस्त 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता पर एक बार फिर कब्जा कर लिया. कुछ ही सप्ताह के भीतर तालिबान ने पूरे अफगानिस्तान पर नियंत्रण कर लिया. तालिबान जो कि 1996 से 2001 के बीच सत्ता में रहा, तब भी वह पूरे अफगानिस्तान पर कंट्रोल करने में कामयाब नहीं हो सका था. वह अब पूरी तरह अफगानिस्तान पर काबिज है लेकिन तालिबान और पाकिस्तान के बीच संबंध अब पूरी तरह से खराब हो चुके हैं.
तालिबान पाकिस्तान को 'एक हमला करने वाला देश' मानता है और पाकिस्तान तालिबान को अपनी सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा. पाकिस्तान ने तालिबान को अपने फायदे के लिए बनाया लेकिन अब वही तालिबान पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ी समस्या बन गया है. 2007 के लाल मस्जिद ऑपरेशन से शुरू हुई यह जंग अब दोनों देशों के बीच एक खतरनाक मोड़ लेती दिख रही है.