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यूक्रेन संकट पर दो हिस्सों में बंट सकती है दुनिया, जानें कौन होगा किसके साथ

रूस -यूक्रेन के बीच जारी विवाद को लेकर दुनिया भर के देश दो धड़े में बंटने के कागार पर खड़े हैं, एक तरफ चीन रूस के साथ खड़ा है तो वहीं अमेरिका यूक्रेन का साथ देने पर अमादा है, तो वहीं भारत का रूख पूरी तरह से रूस की तरफ है.

रूस -यूक्रेन संकट रूस -यूक्रेन संकट

रूस और यूक्रेन  (Ukraine-Russia Crisis) के बीच पिछले कुछ महीनों से सब सुछ ठीक नहीं चल रहा था. और आज जो हुआ उसके बाद हम ये कह सकते हैं कि यूक्रेन और रूस के बीच की तनातनी अब तक के सबसे मुश्किल दौर में पहुंच गई है. दरअसल  रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के विद्रोहियों के कब्जे वाले लुहांस्क और डोनेस्टक प्रांत को स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता दे दी है. एक तरह से रूस ने  इन दोनों अलगवावादी क्षेत्रों को दो देश के रूप में मान्यता दे दी है.  रूस ने इन क्षेत्रों में अलगाववादियों की मदद के लिए सेना भेजने का ऐलान भी किया है.

पुतिन ने टेलीविजन संबोधन में यूक्रेन सरकार, नाटो फोर्सेस और अमेरिकी सरकार पर जमकर निशाना साधा. पुतिन ने कहा कि  यूक्रेन अमेरिका की कॉलोनी बन चुका है, जहां कठपुतली सरकार चल रही है. ऐस में जाहिर है कि अब अमेरिका भी चुप नहीं बैठने वाला. यूक्रेन की मदद के लिए नाटो पूरी तरह से तैयार है लेकिन दुनिया के कई बड़े देश रूस के साथ भी खड़े हैं. चीन तो खुले तौर पर रूस का साथ दे रहा है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि कौन देश किस तरफ है, और इस पूरे मामले में भारत का रूख क्या है. 

रूस के खिलाफ नाटो के ये देश

अमेरिका ने 2004 में बुल्गारिया, एस्टोनिया, लाटाविया, लिथुनिया, रोमानिया,स्लोवाकिया और स्लोवानिया को नाटो में शामिल कर लिया था. ऐसे में जाहिर है रूस को इन तमाम देशों से चुनौती मिलने वाली है. 

नाटो से रूस को कितना खतरा 

यूक्रेन मसले पर सबसे ज्यादा प्रतिरोध अमेरिका की तरफ से ही है. बता दें कि अमेरिका ने अपने नौ हजार सैनिकों को यूक्रेन संकट से निपटने के मद्देनजर स्टैंड बाय पर रखा हैं. इसमें 5000 हजार सैनिक नाटो का हिस्सा है. युद्ध होने के हालात बनने पर अमेरिका पहले ही  ने यूक्रेन को साथ देने की बात कह चुका है. हालांकि अमेरिका और नाटो देशों ने कहा है कि वह युद्ध के मकसद से अपनी सैनिकों को सीधे यूक्रेन नहीं भेजेगा  लेकिन दूसरे सहयोग जैसे हथियार, मेडिकल सुविधा जरूर देता रहेगा. इस सिससिले  में नाटो देशों के कई अत्याधुनिक लड़ाकू विमान और हथियार यूक्रेन पहुंच भी रहे हैं.

बाकी यूरोपीय देशों क्यों नहीं अपना रहे सख्त रूख

नाटो के यूरोपीय सदस्य देश  अमेरिका के मुकाबले कम अक्रामक हैं , ऐसा सिर्फ व्यापारिक हित को मद्देनजर रख कर किया जा रहा है. जर्मनी और फ्रांस के प्रमुख ने हाल ही में मास्को की ताबड़तोड़ यात्रा करके विवाद को कम करने की कोशिश की है. यूरोप के कई देशों की निर्भरता रूस पर बढ़ गई है. इसलिए ये देश हर हाल में शांतिपूर्ण समाधान चाहते हैं. यूरोपीय देशों के सामने सबसे बड़ी चुनौती नॉर्ड गैसपाइपलाइन को लेकर है जो रूस से जर्मनी के बीच लगभग तैयार है और इस पाइपलाइन से यूरोप गहराते ऊर्जा संकट के लिए जरूरी मानता है

अगर नाटो के यूरोपीय देश पूरी तरह से यूक्रेन का साथ देंगे तो रूस इस पाइपलाइन को रद्द कर सकता है. हालांकि रूस के खिलाफ आर्थिक नाकेबंदी में नाटो के यूरोपीय सदस्य देशों को साथ देना ही होगा. अमेरिका रूसी बैकिंग सिस्टम को चोट पहुंचाने की पूरी कवायद कर चुका है. नाटो के यूरोपीय देशों में ब्रिटेन का रुख ही थोड़ा-बहुत अमेरिका से मिलता है. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा है कि रूस का यह कदम यूक्रेन की संप्रभुता का उल्लंघन करेगा. यह कदम अंधकार की ओर ले जाएगा.

चीन का हाथ रूस के साथ

चीन के  हिसाब से अमेरिका के नेतृत्व वाला नेटो, रूस और चीन जैसे देशों की संप्रभुता के ख़िलाफ़ काम कर रहा है. वो इन देशों की संप्रुभता की रक्षा के अधिकार का सम्मान नहीं कर रहा है.यानी साफ है कि चीन रूस के साथ खड़ा है . चीन के ग्लोबल टाइम्स अख़बार ने दावा किया है कि  रूस और चीन के बीच रिश्ते सबसे क़रीबी दौर में हैं और ये दोनों ऐसे डिफेंस पावर हैं जो ''वर्ल्ड ऑर्डर'' की रक्षा करते हैं.  बता दें कि दोनों देशों के बीच मजबूत आर्थिक और सैन्य संबंध है. स्पेस के क्षेत्र में दोनों एक-दूसरे का साथ देता रहा है. इसलिए चीन हर हाल में रूस का साथ देगा.चीन का मजबूत सहयोगी उत्तर कोरिया भी रूस का ही साथ देगा.

रूस को पांच पड़ोसी देशों का समर्थन

 दूसरी तरफ पांच ऐसे देश हैं जो रूस पर हमला होने के हालात में खुद पर हमला मानेंगे, ये सभी देश  सोवियत संघ से अलग हुए देश हैं, इनमें आर्मिनिया, कजाखस्तान, किर्गिजस्तान, तजिकिस्तान और बेला रूस  शामिल हैं.  वहीं बात ईरान की करें तो जब  ईरान और अमेरिका के बीच न्यूक्लियर डील फेल हुआ तब से रूस ईरान का साथ दे रहा है और ईरान और अमेरिका के बीच तनातनी बनी हुई है. ऐसे में ये साफ है कि ईरान और रूस एक साथ है. 

भारत का रूख क्या है 

भारत और रूस के बीच 50 सालों की दोस्ती का नायाब किस्सा है. हालांकि पिछले सात साल में मोदी सरकार ने दोस्ती के इस रिश्ते को और ज्यादा मजबूत करने के साथ ही उसे नये मुकाम तक ले जाने की भरपूर कोशिश की है. दोनों देशों के बीच ना सिर्फ सैन्य नाते हैं बल्कि एक-दूसरे देशों के लोगों के बीच प्रगाढ़ सांस्कृतिक संबंध है. 

बता दें कि भारतीय सेनाओं के पास 86 प्रतिशत हथियार रूसी मूल के हैं. दोनों देशों के बीच रिश्तों को मज़बूत करने का दूसरा अहम क्षेत्र ऊर्जा है. इसमें सिर्फ हाइड्रोकार्बन (तेल और गैस) ही नहीं शामिल है बल्कि परमाणु ऊर्जा भी शामिल हैं. ऐसे में जाहिर है अगर रूस -यूक्रेन के बीच जंग होती है तो भारत का रूख रूस की तरफ होना चाहिए. लेकिन ये भी साफ रहा है कि भारत हर मसले को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने की कोशिश करता रहा है .बता दें कि हाल ही में भारत ने संयुक्त राष्ट्र में कहा है कि इस मुद्दे का शांतिपूर्ण समाधान निकालने के लिए कूटनीतिक संवाद ही सबसे बेहतर तरीका है.