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क्या हैं Rules of war जिन्हें जो बाइडेन इजरायल को फॉलो करने की दे रहे हैं सलाह

सबसे पहले रेड क्रॉस के फाउंडर हेनरी ड्यूनेंट ने 1864 में, जिनेवा कन्वेंशन की स्थापना में मदद की. ये एक अंतरराष्ट्रीय संधि जैसी थी जिसके तहत सेनाओं को युद्ध के मैदान में बीमारों और घायलों की देखभाल करने की बात कही गई थी. इसे सबसे पहले 12 यूरोपीय देशों ने अपनाया था.

इजरायल-हमास इजरायल-हमास
हाइलाइट्स
  • नागरिकों को निशाना नहीं बनाना

  • अस्पतालों और सहायता कर्मियों पर कोई हमला नहीं होना चाहिए 

इजरायल पर हमास के आतंकवादी हमले से पूरी दुनिया सकते में है. ऐसे में कई देश इजरायल के सपोर्ट में आए हैं. फिलिस्तीनी आतंकवादियों के क्रूर हमले के बाद इजरायली प्रधानमंत्री ने हमास को खत्म करने की कसम खा ली है. इसी कड़ी में अब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बुधवार को बेंजामिन नेतन्याहू से युद्ध के नियमों (Rules of war) का पालन करने का आग्रह किया है.

बता दें, अमेरिका ने इजरायल को सपोर्ट करने के लिए यूएस एयरक्राफ्ट भेजा है. साथ ही ने हमास-समर्थक ईरान को भी सावधान रहने की चेतावनी दी है.

क्या सच में होते हैं लड़ाई के कुछ नियम?

दरअसल, किसी भी युद्ध में कुछ नियम (Rules of War) होते हैं. जो लड़ाई लड़ रहे लोगों को फॉलो करने होते हैं. हालांकि, इजरायल में इन्हीं युद्ध के नियमों पर हमला हो रहा है. छोटे बच्चों से लेकर महिलाओं तक को बक्शा नहीं जा रहा है. युद्ध के नियम या रूल्स ऑफ वॉर जिनेवा कन्वेंशन का हिस्सा हैं और इन्हें पहली बार 19वीं सदी में बनाया गया था. इसके तहत यह सुनिश्चित किया जाता है कि लड़ाई के दौरान क्या किया जा सकता है और क्या नहीं. इनका उद्देश्य उन लोगों की रक्षा करना होता है जो लड़ाई में नहीं हैं. 

क्या है रूल्स ऑफ वॉर? 

हालांकि, जिनेवा कन्वेंशन में कई नियम शामिल हैं. लेकिन इनमें भी सबसे ज्यादा जरूरी ये 6 नियम हैं. 

1. नागरिकों को निशाना नहीं बनाना

जानबूझकर नागरिकों, स्कूलों या घरों जैसी इमारतों और पानी के स्रोतों या स्वच्छता सुविधाओं जैसे बुनियादी ढांचे को निशाना बनाना गलत है. किसी ऐसे व्यक्ति को मारना या घायल करना जिसने आत्मसमर्पण कर दिया है या वह अब लड़ने में सक्षम नहीं है, भी मना होता है. हमलों को केवल सैन्य उद्देश्यों पर निर्देशित किया जाना चाहिए. ऐसा करना कानूनी तौर पर गलत है. 

2. बंदियों के साथ न हो कोई अत्याचार या अमानवीय व्यवहार 

अत्याचार और दूसरी तरह के क्रूर, अपमानजनक या दुर्व्यवहार नहीं होना चाहिए. अगर किसी को बंदी बनाया गया है तो उसके जीवन, अधिकार और सम्मान की रक्षा की जानी चाहिए. उन्हें भोजन और पानी दिया जाना चाहिए, हिंसा से बचाया जाना चाहिए और अपने परिवारों के साथ संवाद करने की अनुमति दी जानी चाहिए. 

3. अस्पतालों और सहायता कर्मियों पर कोई हमला नहीं होना चाहिए 

घायलों और बीमारों को देखभाल का अधिकार है, भले ही वे जंग में किसी की भी तरफ हों. इन क्षेत्रों में ड्यूटी पर तैनात मेडिकल या ऐड वर्कर्स दोनों तरफ अपनी सेवा दे सकते हैं. इसलिए, जो भी लड़ाई लड रहे हैं उन सभी के द्वारा उन्हें संरक्षण मिलना चाहिए. साथ ही घायलों और बीमारों को इकट्ठा करने और उनकी देखभाल करने की अनुमति दी जानी चाहिए. 

4. नागरिकों को जाने के लिए एक सुरक्षित मार्ग मिले 

जंग में शामिल पक्षों को उन क्षेत्रों से नागरिकों को निकालने के लिए सभी उचित कदम उठाने चाहिए जहां लड़ाई चल रही है. नागरिकों को भागने से कभी नहीं रोका जाना चाहिए.

5. मानवीय संगठनों को एक्सेस मिलना चाहिए 

सिविलियन और मिलिटेंट्स जो अब लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं, उन्हें आवश्यक सहायता प्राप्त करने का अधिकार है, चाहे वह हेल्थकेयर हो, भोजन हो, पानी हो या रहने की जगह. जानबूझकर भुखमरी पैदा करना एक वॉर क्राइम है. 

6. कोई गैर जरूरी नुकसान नहीं होना चाहिए 

लड़ाई में इस्तेमाल में लाए जाने वाली रणनीति और हथियार एक निश्चित सैन्य उद्देश्य तक ही सीमित होने चाहिए. जिनेवा कन्वेंशन के अनुसार, अंधाधुंध हथियारों का उपयोग मना है. उदाहरण के लिए, बारूदी सुरंगों का उपयोग नहीं होना चाहिए. हालांकि ये बैन नहीं है लेकिन ये बड़े लेवल पर नागरिकों को नुकसान पहुंचा सकता है. 

1864 में सबसे पहले बनाए गए थे नियम 

सबसे पहले रेड क्रॉस के फाउंडर हेनरी ड्यूनेंट ने 1864 में, पहले जिनेवा कन्वेंशन की स्थापना में मदद की. ये एक अंतरराष्ट्रीय संधि जैसी थी जिसके तहत सेनाओं को युद्ध के मैदान में बीमारों और घायलों की देखभाल करने की बात कही गई थी. इसे सबसे पहले 12 यूरोपीय देशों ने अपनाया था. अगले 85 सालों में, कई देशों के राजनयिकों ने बहस की और समुद्र में लड़ाकों और युद्धबंदियों के साथ होने वाले व्यवहार पर बात की. जिसके बाद इन नियमों में कई संशोधनों और संधियों को अपनाया गया. 

इसके बाद साल 1949 में, दूसरे विश्व युद्ध के बाद, राजनयिक चार संधियों को अपनाने के लिए जिनेवा में फिर से इकट्ठा हुए, और इन नियमों में कुछ और नियम जोड़े. अब इन्हें सामूहिक रूप से 1949 के जिनेवा कन्वेंशन के रूप में जाना जाता है और इसमें युद्ध के सबसे महत्वपूर्ण नियम शामिल हैं.